Mumbai Court: मुंबई की एक सेशन कोर्ट ने हाल ही में एक शख्स की सजा को बरकरार रखते हुए फैसला सुनाया। जिसने पूर्व महिला पार्षद को आपत्तिजनक मैसेज भेजे थे। कोर्ट ने कहा कि आप पतली हैं। आप बहुत स्मार्ट दिखती हैं। आप गोरी हैं, मैं आपको पसंद करता हूं, आप शादीशुदा हैं या नहीं?” जैसे संदेश किसी अज्ञात महिला को व्हाट्सऐप पर भेजना, वह भी देर रात को, उसकी गरिमा का अपमान करने के बराबर होगा।’
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश डीजी ढोबले ने रिकॉर्ड से नोट किया कि 26 जनवरी 2016 को, पीड़िता, जो उस समय मुंबई के बोरीवली इलाके से एक मौजूदा नगरसेवक थे। उसके व्हाट्सएप पर संदेश मिले, “क्या आप सो रही हैं? क्या आप शादीशुदा हैं या नहीं? आप स्मार्ट दिख रही हैं। आप बहुत गोरी हैं। मैं आपको पसंद करता हूं। मेरी उम्र 40 वर्ष है। कल मिलते हैं।’
जज ने आगे कहा कि जैसे ही उसने अपने पति को सूचित किया और ‘अज्ञात’ नंबर पर कॉल करने की कोशिश की, तो नरसिंह गुडे ने कॉल रिसीव नहीं की और इसके बजाय कुछ ‘अश्लील’ तस्वीरों और संदेशों के साथ संदेश भेजे – “क्षमा करें, रात में कॉल स्वीकार नहीं की जाएगी। मुझे व्हाट्सएप चैटिंग पसंद है, ऑनलाइन आएं”।
18 फरवरी को पारित आदेश में न्यायाधीश ने कहा कि संदेश और तस्वीरें वास्तव में ‘अश्लील’ थीं और यह भी कहा कि आरोपी गुडे और पीड़िता या उसके पति, जो कि पूर्व पार्षद थे। उसके बीच कोई संबंध नहीं था।
न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा कि कोई भी विवाहित महिला या उसका पति, जो प्रतिष्ठित और पार्षद है, अपने मोबाइल पर शाम के समय 11 बजे से 12.30 बजे के बीच भेजे गए ऐसे व्हाट्सएप संदेश और अश्लील तस्वीरें बर्दाश्त नहीं करेगा, खासकर तब, जब भेजने वाले के साथ उसका कोई संबंध न हो। कथित संदेश, शब्द, कृत्य महिलाओं की गरिमा का अपमान करने के बराबर होंगे (आईपीसी की धारा 509 के तहत)।
कोर्ट ने यह भी माना कि अश्लील तस्वीरें और आपत्तिजनक संदेश भेजने का कृत्य सूचना एवं प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम की धारा 67 (इलेक्ट्रॉनिक रूप में अश्लील सामग्री का प्रसारण) और 67ए (इलेक्ट्रॉनिक रूप में यौन रूप से स्पष्ट सामग्री का प्रसारण) के तहत दंड के लिए पर्याप्त था।
शिकायतकर्ता के अनुसार, उसने पुलिस से संपर्क किया क्योंकि वह उन संदेशों को प्राप्त करने के बाद ‘शर्मिंदा’ और ‘नाराज’ महसूस कर रही थी। हालांकि, बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि ऐसी कोई घटना नहीं हुई थी और शिकायतकर्ता और उसके पति की आरोपी के साथ ‘राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता’ थी और इसलिए अपने ‘राजनीतिक प्रभाव’ का इस्तेमाल करके शिकायतकर्ता ने झूठा मामला दर्ज करवाया।
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हालांकि, कोर्ट ने उनकी दलील को खारिज कर की। उसने कहा कि कोई भी महिला किसी आरोपी को झूठे मामले में फंसाकर अपनी गरिमा को दांव पर नहीं लगा सकती। इसलिए, शिकायतकर्ता और उसके पति के मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्य से यह साबित होता है कि उसे संबंधित दिन आरोपी से संदेश और अश्लील तस्वीरें मिली थीं।
जहां तक अभियुक्त के इस तर्क का सवाल है कि उसने संदेश नहीं भेजा था। न्यायाधीश ने कहा कि चूंकि अपीलकर्ता को अपने फोन के उपयोग के बारे में विशेष जानकारी थी, इसलिए उसे यह स्पष्ट करना था कि संदेश उसके नंबर से कैसे आए। कोई भी उचित स्पष्टीकरण देने में उसकी विफलता न्यायालय को प्रतिकूल निष्कर्ष निकालने की अनुमति देती है। प्रेषक की पहचान स्वतः ही नहीं मानी जाती है, बल्कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य, दस्तावेजी प्रमाण और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के तहत प्रतिकूल अनुमान के माध्यम से स्थापित की जाती है, जिसे अभियोजन पक्ष द्वारा विधिवत स्थापित किया जाता है।”
इसलिए, अदालत ने गुडे पर लगाए गए तीन महीने के साधारण कारावास और जुर्माने की राशि को बरकरार रखा। इन टिप्पणियों के साथ, अदालत ने बोरीवली में मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट अदालत द्वारा गुडे को दी गई सजा और दोषसिद्धि के खिलाफ दायर अपील को खारिज कर दिया।
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