निजामुद्दीन स्थित हुमायूं के मकबरे के पास शुक्रवार शाम को बारिश की वजह से दरगाह शरीफ पत्ते वाली की 50 साल पुरानी दीवार व छत गिर गई। इसके मलबे में दबने से 6 लोगों की मौत हो गई। अनीता सैनी भी मृतकों में से एक थीं। उसका बड़ा बेटा शिवांग एम्स ट्रामा सेंटर के बाहर अनीता के शव का इंतजार कर रहा था।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, शिवांग ने कहा, “वह पहले कभी दरगाह नहीं गई थी। वह आज मेरे भाई के एक्सीडेंट की वजह से वहां गई थी। वह उसके लिए बहुत परेशान थी।” उसके पास में खड़ा उसका भाई ऋषभ कुछ बोल भी नहीं पा रहा था। नदीम अपने दोस्त मोइनुद्दीन के साथ छुट्टी के दिन दरगाह गए थे। उन्होंने बताया, “हम बस स्कूटी से घूमने की सोच रहे थे। जब हम निजामुद्दीन पहुंचे, तो मोइन ने मुझसे कहा कि वह एक मौलवी को जानते हैं और हमें उनसे मिलना चाहिए।”

दोनों दोस्त कम से कम 15 मिनट तक दरगाह के बाहर इंतजार करते रहे, जबकि कर्मचारी परिसर की सफाई कर रहे थे। नदीम ने बताया, “मोइनुद्दीन मुझसे पहले दरगाह में दाखिल हुआ था। मैं पीछे था, कुछ लोगों के पीछे। जल्द ही, जिस कमरे में मोइनुद्दीन दाखिल हुआ था उसकी दीवार ढह गई। मैं अभी भी बाहर था और उसका नाम पुकारते हुए कमरे की खिड़की की ओर दौड़ा।”

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मलबे और लाशों में फर्क नहीं हो रहा था – शोएब

नदीम और मोइनुद्दीन के दोस्त शोएब ने कहा, “वहां सन्नाटा पसरा हुआ था। मलबे और लाशों में फर्क नहीं हो रहा था। जब हमें मोइनुद्दीन मिला, तब हमें एहसास हुआ कि हम उसके शरीर के ऊपर से कई बार गुजरे थे, तब हमें एहसास हुआ कि यह मलबा नहीं, बल्कि एक इंसान है।” मुस्तफाबाद के बैग बनाने वाले आशिक भी अपनी पत्नी रफत परवीन के साथ दरगाह पर आए थे।

आशिक ने इंडियन एक्प्रेस को बताया, “जब हम दरगाह पहुंचे तो वहां एक कमरे में लगभग 10-12 लोग बैठे थे। मेरी पत्नी को पानी चाहिए था, इसलिए मैं बाहर निकला। तभी मुझे एक जोरदार आवाज सुनाई दी। छत और दीवार गिर गई थी। मैं इमारत के पिछले हिस्से की ओर भागा। तब तक कुछ स्थानीय लोग भी आ गए थे। हमने खुदाई शुरू की और लोगों को बाहर निकाला। मेरी पत्नी मलबे में फंसी हुई थी। जल्द ही पुलिस और एंबुलेंस आने लगीं।” उत्तराखंड में फिर दोहराया केदारनाथ जैसा मंजर