आप के असंतुष्ट नेता योगेंद्र यादव ने संकेत दिया है कि वे प्रशांत भूषण के साथ मिलकर एक नया राजनीतिक दल बना सकते हैं। यादव ने एक तरह से राजनीति छोड़ने की बात से इनकार किया और विकल्प के संबंध में जनता की राय भी मांगी है।

आम आदमी पार्टी की शीर्ष इकाइयों से निकाले जाने के खिलाफ किसी तरह की कानूनी कार्रवाई की संभावना खारिज करते दिखाई दे रहे यादव ने ‘एक नई राजनीति की दिशा? शीर्षक से लिखे निबंध में सवाल किया है कि ‘आप को जन्म’ देने वाले भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को किसी वैकल्पिक राजनीति का एजंट बनाना चाहिए या इसे सामान्य राजनीतिक विकल्प तक सीमित कर देना चाहिए।

अरविंद केजरीवाल नीत पार्टी के नेतृत्व पर हमला करते हुए यादव ने कहा कि वह और भूषण नहीं चाहते कि लोग उन पर आंदोलन के नैतिक पतन का मूकदर्शक बने रहने का आरोप लगाएं। यादव ने लिखा, ‘हमारे सामने एक तरफ एकता बनाए रखने की और दूसरी तरफ आंदोलन की आत्मा को संरक्षित रखने की चुनौती थी।’

अपने सामने मौजूद विकल्पों के गुण-दोषों पर विचार करते हुए यादव ने कहा कि राजनीति छोड़ना लोकतंत्र को कमजोर करने के समान होगा, वहीं आप के भीतर बदलाव लाने का प्रयास करना संभव नहीं है क्योंकि किसी भी तरह के मतभेद को पार्टी ने ‘विद्रोह’ कह डाला। नए दल के विचार को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कई तरह के सवालों के साथ जनता की राय मांगी है। उन्होंने कहा कि यह कदम ‘स्वराज’ आंदोलन के सिद्धांत पर होगा।

यादव ने पूछा, ‘सवाल यह है कि वह राजनीति कैसी होगी? इसका वैचारिक दृष्टिकोण क्या होगा? अचानक सफलता के लालच को किस तरह दूर रखा जाएगा? क्या नैतिक विचारधारा से समझौता किए बिना सफलता पाई जा सकती है? और क्या जनता इन नई पहल के साथ खुद को जोड़ेगी।’

यादव ने कहा कि उनके दिमाग में लंबे समय से ये सवाल बने हुए हैं क्योंकि पार्टी का उसके बुनियादी सिद्धांतों से हटना साफ जाहिर है। उन्होंने लिखा, ‘इन मुद्दों को उठाते हुए कई लोग पहले ही पार्टी छोड़ चुके हैं।’ आप के प्रवक्ता पद से हटाए जाने और उससे पहले पार्टी की राजनीतिक मामलों की समिति से हटाए जाने के बारे में यादव ने कहा कि इन घटनाक्रमों ने जनता के सामने उक्त सवाल खड़े किए हैं।

उन्होंने कहा, ‘इस बात में कोई संदेह नहीं है कि 28 फरवरी को राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जो हुआ, वह पार्टी के संविधान और लोकतंत्र के खिलाफ है लेकिन क्या इस मामले को संपत्ति विवाद की तरह सालों के लिए अदालत में ले जाना चाहिए?

लोकतांत्रिक राजनीति में जनता सबसे बड़ी अदालत है।’ उन्होंने कहा, ‘देश भर में बदलाव लाने का संकल्प लेने वाले लोग क्या दिल्ली की क्षेत्रीय पार्टी बने रहेंगे। क्या स्वराज के मंत्र के साथ शुरू हुई यात्रा एक आदमी तक सीमित रहेगी?’