आम आदमी पार्टी (आप) में हुए ताजा विवाद में पहली बलि वरिष्ठ नेता योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण की हुई। पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने बहुमत से दोनों नेताओं को राजनीतिक मामलों की समिति (पीएसी) के सदस्य से हटाने का फैसला किया। बैठक में आठ सदस्यों ने इन दोनों को हटाने के विरोध में जबकि 11 सदस्यों ने हटाने के समर्थन में वोट किया। वहीं इस विवाद से नाराज पार्टी संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का संयोजक पद से दिया गया इस्तीफा नामंजूर कर दिया गया। दिल्ली-गुड़गांव सीमा पर कापसहेड़ा में करीब छह घंटे चली कार्यकारिणी की बैठक में खुद केजरीवाल मौजूद नहीं थे। योगेंद्र यादव अब पार्टी प्रवक्ता भी नहीं रहेंगे।

कार्यकारिणी ने इस बैठक में कई और फैसले लिए जिसकी जानकारी पार्टी के महासचिव पंकज गुप्ता और वरिष्ठ नेता कुमार विश्वास ने पत्रकारों को दी। दोनों नेताओं ने कहा कि निजी मतभेदों से पार्टी टूटेगी नहीं। पार्टी में सभी से संवाद बढ़ाने की कोशिश की जाएगी। सभी नेता और कार्यकर्ता पार्टी की बेहतरी के लिए काम करते रहेंगे। कार्यकारिणी में कुल 21 सदस्य हैं। इसमें आमंत्रित सदस्य भी बुलाए गए थे। बैठक में उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव, प्रोफेसर आनंद कुमार, पंकज गुप्ता, कुमार विश्वास, इलियास आजमी, गोपाल राय और सुनील आर्य आदि नेता मौजूद थे। बैठक शुरू होने से पहले बाहर इकट्ठा हुए सैकड़ों पार्टी समर्थकों ने नेताओं के एकजुट रहने को लेकर नारेबाजी की। बैठक के बाद भी बड़ी तादाद में पार्टी कार्यकर्ता और मीडिया का जमावड़ा वहां लगा रहा।

कुछ दिनों पहले यादव और प्रशांत भूषण ने पार्टी संयोजक और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की दोहरी जिम्मेदारी पर सवाल उठाए थे। वैसे मुख्य विवाद पार्टी को दिल्ली से बाहर ले जाने, दिल्ली विधानसभा चुनाव में दागदार लोगों को टिकट देने, चंदा लेने में पारदर्शिता न रखने जैसे मुद्दों पर था। लोकसभा चुनाव में पार्टी की अपेक्षित जीत न होने से विवाद की बुनियाद पड़ी थी। तब भी यादव और केजरीवाल के करीबी मनीष सिसोदिया के बीच हुए पत्रों के विवाद ने उनके संबंधों में खटास बढ़ाने का काम किया था। पार्टी के स्थापना से जुड़े पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ नेता शांति भूषण के विधानसभा चुनाव के दौरान और उसके बाद के दिए बयानों ने भी इस विवाद को हवा दी। शांति भूषण ने केजरीवाल के बजाए योगेंद्र यादव को संयोजक बनाने की मांग की थी।

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पार्टी की 21 सदस्यीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में आप संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के समर्थकों ने यादव और भूषण को आठ के मुकाबले 11 वोटों से पीएसी से बाहर करने का फैसला किया.

 

पार्टी में इस स्तर तक अविश्वास बढ़ गया था कि एक-दूसरे के खिलाफ न केवल पत्र लिखे जाने लगे बल्कि सोशल मीडिया पर एक-दूसरे के बारे में तीखी टिप्पणी होने लगी। विवाद सार्वजनिक होने से पहले ही 26 फरवरी की कार्यकारिणी की बैठक के समय ही केजरीवाल ने संयोजक पद से इस्तीफा दिया था। केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया उस बैठक में शामिल नहीं हुए थे। लेकिन अपना इस्तीफा कार्यकारिणी को भेज दिया था। इस बार कार्यकारिणी की बैठक से ठीक पहले केजरीवाल अपना इलाज कराने दिल्ली से बाहर चले गए और जाने से पहले कहा कि वे इस विवाद में पड़ना नहीं चाहते और उनका सारा ध्यान दिल्ली की जनता की उम्मीदों को पूरा करने में लगा रहेगा। उनके जाने के बाद बुधवार को उनके संयोजक पद से इस्तीफे की जानकारी मीडिया में आई।

विवाद को कम करने के लिए पिछले दो दिनों से ज्यादातर नेता अपने पहले के बयानों से पलटते दिखे। जहां योगेंद्र यादव ने केजरीवाल की अगुआई में पार्टी के लिए काम करने की इच्छा जताई वहीं शांति भूषण ने केजरीवाल को संयोजक बनाए रखने की बात कही। अलबत्ता प्रशांत भूषण अपने बयान पर कायम रहे।

उनका कहना था कि पार्टी अन्य दलों से भिन्न है इसलिए इसमें हाईकमान कल्चर या व्यक्तिवादी नहीं होना चाहिए। उनपर आरोप लगाने वाले आशीष खेतान ने भी बुधवार को सफाई देकर भूषण परिवार पर लगाए गए आरोप के लिए खेद जताया। आशुतोष की भी भाषा नरम पड़ गई। संजय सिंह शुरू से ही केजरीवाल के बचाव में लगे रहे और वे खुलकर किसी पर आरोप लगाने से बचते रहे। खेतान ने बुधवार को कहा कि भूषण बंधुओं के खिलाफ मैंने जो कुछ भी सार्वजनिक तौर पर कहा वह मुझे नहीं कहना चाहिए। हमने कई सार्वजनिक मुद्दों पर साथ में लड़ाइयां लड़ी हैंं और उम्मीद है कि आगे भी हम एक टीम की तरह काम जारी रखेंगे। मैंने अपने ट्वीट्स हटा लिए हैं। मैं हर आखिरी कार्यकर्ता के लिए जवाबदेह हूं और पार्टी की मजबूती के लिए मैं हमेशा काम करता रहूंगा।

कार्यकारिणी के फैसले के बाद योगेंद्र यादव ने कहा कि वे पार्टी के एक अनुशासित सिपाही हैं और पार्टी जो जिम्मेदारी देगी उसे निभाएंगे। बैठक से निकलने के बाद प्रशांत भूषण ने केवल इतना भर कहा कि मैं और योगेंद्र अब पीएसी के सदस्य नहीं रहेंगे। बाकी बातें पार्टी के अधिकृत प्रवक्ता बताएंगे।

बताया जा रहा है कि योगेंद्र को महाराष्ट्र के संयोजक पद का प्रस्ताव दिया गया है। यह भी कहा गया कि पीएसी से बाहर किए जाने के साथ-साथ योगेंद्र यादव अब प्रवक्ता पद पर भी नहीं रहेंगे। पार्टी की मैराथन बैठक के बाद प्रशांत भूषण ने मीडिया से कहा कि जो भी फैसला किया गया है वह बहुमत से किया गया है।

उसमें इतना है कि मैं और योगेंद्र यादव अब पीएसी के सदस्य नहीं रहेंगे। बाकी चीजें आपको अधिकृत प्रवक्ता आकर बता देंगे। जबकि बैठक के बाद योगेंद्र यादव ने पत्रकारों से कहा कि मुझे केवल इतना ही कहना है कि राष्ट्रीय कायर्कारिणी में बहुमत से जो फैसला हुआ है उसकी आधिकारिक घोषणा आधिकारिक प्रवक्ता करेंगे। मैं घोषणा करने के लिए अधिकृत नहीं हूं। मैं केवल इतना कहना चाहता हूं कि इस देश के हजारों कार्यकर्ताओं के खून-पसीने से बनी यह पार्टी है। यह पार्टी देश में न जाने कितने लोगों की आशा का पुंज है और चाहे जो हो यह आशा नहीं टूटनी चाहिए। मैं पार्टी के एक अनुशासित कार्यकर्ता की तरह पार्टी जो आदेश देगी और जो भूमिका देगी उसे निभाने के लिए तैयार हूं।