भारत के पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने मंगलवार (29 जनवरी) को डीएचएफएल द्वारा कथित रुप से 31000 करोड़ रुपये के फर्जीवाड़े की जांच की मांग की है। उन्होंने कहा कि शेल कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई की सरकारी दावे की पोल खुल चुकी है। इस फर्जीवाड़े की जांच के लिए कोर्ट की निगरानी में एसआईटी का गठन होना चाहिए। दरअसल, कंपनी को यह लोन एसबीआई और बैंक ऑफ बड़ौदा सहित अन्य सरकारी बैंकों से मिला था। कोबरापोस्ट ने खुलासा किया है कि दीवान हाऊसिंग फायनांस काॅरपोरेशन लिमिटेड (डीएचएफएल) ने 96,000 करोड़ रुपये के कुल बैंक लोन में 31,000 करोड़ रुपये का कथित रूप से शेल कंपनियों के माध्यम हेरफेर किया। हालांकि, कंपनी ने इस रिपोर्ट को दुर्भावना से ग्रसित बताया है।

पीटीआई के अनुसार, सिन्हा ने कोबरापोस्ट के खुलासे के बाद कहा, “इसमें राजनीतिक चंदा देने समेत अन्य बातें बातें सामने आयी हैं। यदि सरकार राजनीतिक फंडिंग सहित अन्य पहलुओं के आरोपों की तत्काल जांच का आदेश नहीं देती है कि इससे उसकी की नीयत व मंशा पर सवाल खड़ा होगा। मैं अदालत की निगरानी में एक एसआईटी जांच की मांग करता हूं।” डीएचएफएल ने एक बयान में बताया कि वह एक सूचीबद्ध कंपनी है। यह भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड, राष्ट्रीय आवास बैंक और अन्य नियामकों की निगरानी में काम करती है। बयान में कहा गया है कि कोबरापोस्ट द्वारा की गई यह कार्रवाई कंपनी की छवि को नुकसान पहुंचाने की दुर्भावना से प्रेरित है जिससे कंपनी के शेयरों की कीमत प्रभावित होती है।

सिन्हा ने कहा कि इस घटना का खुलासा होने से सरकार के लाखों फर्जी कंपनियों को खत्म करने के दावे पर भी सवाल खड़े होते हैं। उन्होंने कहा कि सरकार के सभी नियामक और एजेंसियां इन खोटे सौदों को पकड़ने में नाकाम रही हैं। यह आरोप लगने के बाद से डीएचएफएल के शेयर में गिरावट जारी है। बीएसई पर कंपनी का शेयर मंगलवार को 8.01 प्रतिशत गिरकर 170.05 रुपये पर बंद हुआ। वहीं एनएसई पर यह 8.22 प्रतिशत घटकर 169.70 रुपये प्रति शेयर पर बंद हुआ। पिछले दो दिन में कंपनी का शेयर 18.71 प्रतिशत घटा है। बता दें कि भारतीय रिजर्व बैंक  ने गैर बैंकिंग वित्‍तीय कंपनियों को लेकर बेहद सख्‍त प्रावधान कर दिए हैं। सरकार की ओर से लगातार नियमों में ढील देने का दबाव डाला जा रहा है।