Mission Yamuna Cleanup: दिल्ली में यमुना की सफाई को लेकर दिल्ली सरकार पूरी तरह से एक्शन मोड है। दिल्ली सरकार ने अब इसको लेकर अपनी कवायद और तेज कर दी है। यमुना सफाई से जुड़े पूरे प्रोजेक्ट पर सरकार 3140 करोड़ रुपए की भारी भरकम राशि खर्च करेगी।
आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, व्यय वित्त समिति (ईएफसी) के एजेंड़े में 27 केंद्रीयकृत सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (डीएसटीपी), टर्मिनल सीवेज पंपिंग स्टेशन (एसपीएस) का निर्माण करने के अलावा दिल्ली गेट पर 10 एमजीडी क्षमता का एक अलग से सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) भी तैयार किया जाना शामिल है। इस पूरे प्रोजेक्ट के संबंधित कार्यों और 10-12 साल के संचालन और रखरखाव आदि को भी शामिल किया गया है। केंद्रीकृत सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के अंतर्गत सीवर लाइन उपलब्ध कराना और बिछाना, घरों में सीवर कनेक्शन मुहैया करना आदि भी प्रमुख रूप से शामिल किया गया हैं। इन सभी कार्यों के लिए पूरे प्रोजेक्ट पर 3140 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत का अनुमान लगाया गया है। इस राशि को आज होने वाली ईएफसी की अहम बैठक में मंजूरी दिए जाने की प्रबल संभावना है।
सूत्रों का कहना है कि दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता, जो वित्त मंत्री भी हैं, उनकी अध्यक्षता में आज शाम को एक्सपेंडिचर फाइनेंस कमेटी (ईएफसी) की पहली बैठक बुलाई गई है। वित्तीय वर्ष 2025 26 के लिए व्यय वित्त समिति (एएफसी) की यह पहली बैठक आयोजित की जाएगी।
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आधिकारिक सूत्र बताते हैं कि बैठक में दिल्ली के मुख्य सचिव, अतिरिक्त मुख्य सचिव (शहरी विकास), विशेष सचिव (शहरी विकास), वित्तीय विभाग के प्रिंसिपल सेक्रेटरी, सेक्रेटरी, दिल्ली जल बोर्ड की सीईओ और अन्य के बैठक में शामिल होने की संभावना है।
इस बीच देखा जाए तो दिल्ली सरकार यमुना की सफाई को लेकर अलग-अलग स्तर पर काम कर रही है जिसमें सबसे पहले दिल्ली के 22 बड़े नालों को जो कि सीधे यमुना नदी में गिरते हैं, उनकी साफ सफाई और डीसिल्टिंग का काम तेजी से कर रही है। दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता, उपराज्यपाल वीके सक्सेना के साथ यमुना नदी की साफ सफाई से जुड़े कार्यों को लेकर कई बार निरीक्षण कर चुकी हैं। खासकर तीन बड़ी ड्रेनों बारापूला ड्रेन, कुशक नाला और सुनहरी नाले के कई दौरे किए जा चुके हैं।
बता दें, दिल्ली में भाजपा सरकार ने अपने पहले दिन से ही यमुना की सफाई पर जोर देते हुए कई सारे योजनाएं और परियोजनाओं को शुरू किया। इतना ही नहीं इस वक्त यमुना की सफाई के लिए कई मशीन भी लगाई हैं, लेकिन यमुना की सफाई मशीनों से कितनी हो पाएगी और यमुना की सफाई में आने वाली वह कौन सी चुनौतियां हैं। चलिए इस रिपोर्ट में हम जानते हैं।
जानें यमुना नदी की स्थिति
दिल्ली की प्रमुख नदियों में से यमुना नदी एक है। ऐसे में यमुना नदी गंदगी और प्रदूषण से जूझ रही है। यमुना नदी दिल्लीवासियों के लिए न केवल एक जल स्रोत थी, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व भी रखती है, लेकिन अब यमुना का पानी प्रदूषण से इस हद तक संक्रमित हो चुका है कि यह न केवल पीने योग्य नहीं रहा, बल्कि नदी का अस्तित्व भी खतरे में है। यमुना नदी में बहने वाली गंदगी, फैक्ट्री का कचरा इसे एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या बना चुका है।
कोशिश और योजनाएं
यमुना की सफाई के लिए कई योजनाएं और परियोजनाएं चलायी गई हैं, लेकिन अधिकतर प्रयासों को सफलता नहीं मिल पाई है। दिल्ली सरकार और केंद्रीय सरकार दोनों ही यमुना की सफाई के लिए कई बार घोषणा कर चुकी हैं। यमुना एक ऐसे क्षेत्र से बहती है। जहां कई राज्य जुड़े हुए हैं। इसलिए यह समस्या सिर्फ दिल्ली तक सीमित नहीं है, बल्कि उत्तर भारत के अन्य हिस्सों में भी इसका प्रभाव देखा जा सकता है। अब देखना होगा मौजूदा सरकार यमुना की सफाई में आगे कितना ठोस कदम उठाती है। फिलहाल सरकार ने दिल्ली में सरकार बनाते ही यमुना की सफाई पर जोर देते हुए कई मशीनों को यमुना की सफाई के लिए उतार दिया है।
जानें चुनौतियां और समाधान
यमुना को साफ करने के रास्ते में कई चुनौतियां हैं। सबसे बड़ी समस्या यह है कि सीवेज सिस्टम की सफाई और औद्योगिक कचरे के निस्तारण के लिए पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर का अभाव है। इसके अलावा दिल्ली में बढ़ती जनसंख्या और अव्यवस्थित शहरीकरण भी इस समस्या को बढ़ा रहे हैं। नदी की सफाई के लिए गंभीर और जल्दी प्रयासों की आवश्यकता है, जिसमें बेहतर जल और कचरा प्रबंधन के साथ-साथ नदियों को बचाने के लिए जागरूकता फैलाने की जरूरत है।
31 साल में सिर्फ राजनीति
बता दें, दिल्ली में यमुना की सफाई को लेकर राजनीति चलती रही है। दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले अरविंद केजरीवाल ने भाजपा पर यह आरोप लगाया कि उनकी हरियाणा सरकार ने दिल्ली को आपूर्ति किए जाने वाले यमुना के पानी में “जहर” मिलाया है। केजरीवाल के दावे पर हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी खुद यमुना पहुंचे और पानी पिया था। वहीं, इस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हमला किया था। पीएम मोदी ने केजरीवाल के दावों को ‘घृणित’ कहा और दावा किया कि वह 11 वर्षों से यमुना का पानी पी रहे।
यमुना को लेकर पिछले 31 सालों से लगभग हर सरकार राजनीति कर रही है। साफ-सफाई के नाम पर कई हजार करोड़ रुपए बहा दिए गए। इसके बावजूद ना नदी साफ हुई और ना पानी की स्थिति में कोई सुधार आया, बल्कि गंदे पानी से यमुना की स्थिति खराब ही हुई है। स्थानीय लोग कहते हैं कि साल 1984 से पहले तक दिल्ली में यमुना नदी साफ और स्वच्छ हुआ करती थी, लेकिन उसके बाद गंदगी फैलनी शुरू हो गई और फिर आज ये हालात बन गए हैं कि लोग आचमन भी नहीं करना चाहते हैं।
कब आया यमुना एक्शन प्लान?
यमुना नदी की सफाई को लेकर पहला यमुना एक्शन प्लान 1993 में आया। उसके बाद 2003 में दूसरा एक्शन प्लान आया। तीसरा फेज 2012 में आया। इसका मुख्य उद्देश्य यमुना नदी को प्रदूषण मुक्त बनाना था। भारत और जापान सरकार के बीच द्विपक्षीय प्रोजेक्ट पर 1993 में मुहर लगी। जापान सरकार ने जापान बैंक फॉर इंटरनेशनल कोऑपरेशन (JBIC) के जरिए इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए वित्तीय सहायता दी, जिसे राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय, पर्यावरण और वन मंत्रालय और भारत सरकार द्वारा क्रियान्वित किया जा रहा है।
क्या तैयारी थी?
नए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के निर्माण पर जोर दिया गया। पुराने प्लांट की क्षमता के विस्तार पर काम का दावा हुआ और विशेष रूप से दिल्ली और आगरा में ट्रीटमेंट कैपिसिटी बढ़ाने के लिए सीवर बिछाने और उनका पुनर्वास किए जाने की बात कही गई। प्लान था कि इन कार्यों से स्वच्छता की स्थिति में सुधार होगा। इसके बावजूद यमुना पर कोई असर नहीं पड़ा। जानकार कहते हैं कि यमुना में 200 से ज्यादा ड्रेनेज का पानी पहुंच रहा है। पर्यावरण एक्सपर्ट कहते हैं कि यमुना में झाग की मोटी परत देखी जाती है। ये झाग नालियों और औद्योगिक कचरे से निकलने वाले अमोनिया और फॉस्फेट जैसे प्रदूषकों के कारण होता है। इससे श्वसन और त्वचा संबंधी कई गंभीर बीमारियां फैल सकती हैं।
सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के जरिए यमुना में गिरने वाले गंदे पानी को साफ करके छोड़ना था। नालों को ट्रीट या डायवर्ट किया जाना था, ताकि नदी में गिरने वाले 22 बड़े नालों (मुख्य रूप से दिल्ली में) को रोका जाए। औद्योगिक कचरे को नियंत्रित किया जाना था ताकि फैक्ट्रियों से निकलने वाले जहरीले केमिकल और गंदगी को ट्रीट करके ही डिस्चार्ज किया जा सके। सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के जरिए नदी में कूड़ा-कचरा और प्लास्टिक जाने से रोकना था। बायोडाइवर्सिटी बहाल के जरिए नदी किनारे पेड़-पौधे लगाने और जलीय जीवन को सुरक्षित रखना था। सामुदायिक भागीदारी के जरिए स्थानीय लोगों को जागरूक करने और नदी को गंदा करने से रोकने पर जोर दिया जाना था। नदी में जल प्रवाह बनाए रखने के लिए पहाड़ों से आने वाले पानी को रोके बिना बहने देना था, ताकि नदी में हमेशा साफ पानी रहे।
यमुना एक्शन प्लान का सफर कैसा रहा?
यमुना सफाई को लेकर पहला चरण 1993 से 2003 तक चला। पहले चरण में शुरुआती सफाई प्रयासों पर फोकस रखा गया। 2002 तक लगभग 12 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाए गए। औद्योगिक कचरे पर आंशिक नियंत्रण किया गया। दूसरा चरण 2003 से 2013 तक चला। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा में नदी सफाई पर ध्यान दिया गया। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाए गए, लेकिन नाले और सीवेज का बहाव जारी रहा। यमुना में साफ पानी के प्रवाह को बनाए रखने में असफलता हाथ लगी। तीसरा चरण 2013 से 2024 तक चला। केंद्र सरकार की ‘नमामि गंगे योजना’ के तहत इसे आगे बढ़ाया गया। दिल्ली में 10,000 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हुए, लेकिन यमुना अब भी प्रदूषित है. 2024 में भी नदी में 80% गंदा पानी दिल्ली से ही आता है।
क्या हुआ यमुना एक्शन प्लान का?
32 साल बाद भी यमुना एक्शन प्लान के नतीजे मनमुताबिक नहीं मिले। यमुना में अब भी 90% प्रदूषण दिल्ली से आता है। 22 में से सिर्फ 6 नाले ट्रीट किए गए, बाकी अब भी नदी में गिरते हैं। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता 3,800 MLD (मिलियन लीटर प्रति दिन) है, लेकिन दिल्ली 6,000 MLD से ज्यादा गंदा पानी छोड़ती है। औद्योगिक और घरेलू कचरा रोकने में नाकामी हाथ लगी। एक्शन प्लान का टारगेट यमुना को साफ और स्वच्छ बनाना था, लेकिन 32 साल बाद भी यमुना दिल्ली में गंदी पड़ी है। एक्सपर्ट कहते हैं कि जब तक सरकार, उद्योग और जनता मिलकर जिम्मेदारी नहीं लेंगे, यह समस्या बनी रहेगी।
यमुना सफाई में बड़ी मुश्किलें?
यमुना में प्रदूषण के प्रमुख कारणों में सीवेज और औद्योगिक कचरा शामिल हैं। दिल्ली में प्रतिदिन लाखों लीटर गंदा पानी यमुना नदी में गिरता है, जिससे नदी का जल स्तर प्रदूषित होता है। इसके अतिरिक्त, शहर के विभिन्न हिस्सों में स्थित फैक्ट्रियां भी अपने अपशिष्ट पदार्थों को बिना किसी प्रक्रिया के नदी में छोड़ देती हैं। इन सबका नतीजा यह हुआ है कि नदी के पानी में न केवल गंदगी और बदबू है, बल्कि यह जीव-जंतुओं के लिए भी खतरे का कारण बन चुकी है।
अधिक गंदा पानी और सीवेज: दिल्ली, नोएडा और अन्य शहरों का सीवेज बिना ट्रीटमेंट के नदी में गिरता है।
औद्योगिक कचरा: केमिकल फैक्ट्रियों से भारी मात्रा में जहरीला कचरा यमुना में छोड़ा जाता है।
अवैध अतिक्रमण और अर्बनाइजेशन: नदी के किनारे पर बेतरतीब निर्माण और कूड़ा डंपिंग से प्रदूषण बढ़ा है।
नाले और ड्रेनेज सिस्टम की खराब स्थिति: यमुना में गिरने वाले 22 बड़े नालों का ट्रीटमेंट सही तरीके से नहीं हो रहा है।
सरकारी विभागों में तालमेल की कमी: सरकारें और स्थानीय एजेंसियां मिलकर प्रभावी काम नहीं कर पा रही हैं।
कम्युनिटी अवेयरनेस की कमी: लोग नदी में पूजा सामग्री, प्लास्टिक और कचरा डालते रहते हैं।
क्लाइमेट चेंज और जल प्रवाह की समस्या: बरसात के अलावा सालभर नदी में साफ पानी का प्रवाह नहीं रहता है।
औद्योगिक इकाइयों पर भी कार्रवाई के आदेश
मशीनें जैविक और प्लास्टिक कचरे को इकट्ठा कर रही है। दिल्ली सरकार ने नदी के किनारे औद्योगिक इकाइयों पर भी कार्रवाई करने का आदेश दिया, जो पानी में गंदगी डाल रहे थे।
सरकारों ने क्या एक्शन प्लान बनाए?
दिल्ली की सरकार ने 2025 तक यमुना को साफ करने का लक्ष्य रखा था और दावा किया था कि 5 पॉइंट का एक्शन प्लान यमुना को साफ करने में मदद करेगा। हालांकि, यमुना आज भी गंदी ही है। दिल्ली सरकार का कहना था कि नजफगढ़, सप्लीमेंट्री और शाहदरा ड्रेन में 9-10 अलग-अलग जगहों पर वेस्टवॉटर ट्रीटमेंट्स जोन बनाए जाएंगे। इन जोन में ड्रेन की सफाई के लिए इन-सीटू ट्रीटमेंट विधि के साथ-साथ फ्लोटिंग बूम, वियर्स (पानी रोकने के लिये छोटे बांध), एरिएशन डिवाइसिज, फ्लोटिंग वैटलेंड लगाए जाएंगे। इसके अलावा वेस्टवॉटर में मौजूद फॉस्फेट को कम करने के लिए केमिकल डोजिंग की जाएगी। जोन में एरिएशन डिवाइस लगाए जाएंगे, जिससे पानी के अंदर एरिएशन बढ़ेगी। पानी में ऑक्सीजन घुलेगा और पानी को और साफ कर देगा। इस तरह यह पानी प्राकृतिक तरीके से साफ होते हुए यमुना तक पहुंचेंगे।
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(जनसत्ता के लिए भूपेन्द्र पांचाल की रिपोर्ट/एजेंसी इनपुट्स/मीडिया रिपोर्ट्स)