सुप्रीम कोर्ट ने स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) पर प्रतिबंध के खिलाफ दायर याचिकाओं की तत्काल सुनवाई का अनुरोध मंगलवार को ठुकरा दिया। जस्टिस एसके कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच ने मामले को सूचीबद्ध करने का आग्रह करने वाले वकील को संविधान के अनुच्छेद-370 के मुद्दे पर सुनवाई पूरी होने के बाद शीर्ष अदालत का रुख करने का निर्देश दिया।

हालंकि एडवोकेट ने बेंच से कहा कि मामला 18 जनवरी को सुनवाई के लिए आया था। तब से सूचीबद्ध नहीं किया गया है। केंद्र सरकार ने सिमी पर सबसे पहले 2001 में प्रतिबंध लगाया गया था। तब से प्रतिबंध की अवधि लगातार बढ़ाई जाती रही है। जनवरी 2019 को एक अधिसूचना जारी कर सिमी पर लगाया गया प्रतिबंध पांच साल के लिए बढ़ा दिया था। जनवरी 2019 में संगठन पर लगाया गया प्रतिबंध आठवीं बार बढ़ाया गया था।

केंद्र ने हलफनामे में कहा- सिमी से जुड़े लोग फिर से हो रहे हैं सक्रिय

केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत से कहा था कि भारत में इस्लामी शासन स्थापित करने के सिमी के मकसद को पूरा नहीं होने दिया जा सकता। उसने कहा था कि प्रतिबंधित संगठन के सदस्य अब भी विघटनकारी गतिविधियों में शामिल हैं। ये लोग जो देश के लिए खतरा हैं। अपने हलफनामे में केंद्र ने कहा था कि सिमी के सदस्य अन्य देशों में मौजूद अपने आकाओं के लगातार संपर्क में हैं। उनकी गतिविधियां भारत की शांति में खलल डाल सकती हैं। सिमी का उद्देश्य भारत में इस्लाम के प्रचार-प्रसार और जिहाद के लिए छात्रों व युवाओं का समर्थन हासिल करना है।

हलफनामे के मुताबिक सितंबर 2001 को प्रतिबंधित किए जाने के बावजूद सिमी के सदस्य एकजुट हो रहे हैं। वो बैठक करके साजिश रच रहे हैं। हथियार और गोला-बारूद हासिल कर उन गतिविधियों में शामिल हो रहे हैं जो विघटनकारी प्रवृत्ति की हैं। हलफनामे में कहा गया था कि सिमी के अपने सदस्यों के जरिये पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सऊदी अरब, बांग्लादेश और नेपाल में संपर्क हैं।

1977 में हुई थी सिमी की स्थापना, यूपी में पहली बार बना था संगठन

सिमी 25 अप्रैल 1977 को अस्तित्व में आया था। उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में जमात-ए-इस्लामी हिंद (JEIH) में आस्था रखने वाले युवाओं और छात्रों के संगठन के रूप में इसकी स्थापना की गई थी। 1993 में ये स्वतंत्र संगठन बन गया।