वास्तविकता यह है कि 19 राज्यों की विधानसभाओं में महिला विधायकों का प्रतिनिधित्व 10 फीसद से भी कम है। पूरे देश में विधानसभाओं में महिला विधायकों का औसत केवल आठ फीसद है। इस बार हिमाचल में एक ही महिला विधायक बनी हैं जबकि गुजरात में 8.2 फीसद महिला विधायक चुनी गई हैं।
कांग्रेस ने 12 नवंबर को हुए हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की। इसने तीन महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, जिनमें सभी हार गर्इं। इस तरह सुखविंदर सिंह सुक्खू की अगुआई वाली सरकार में किसी महिला के मंत्री बनने को लेकर संशय है। हिमाचल प्रदेश में हर बार विधानसभा चुनाव में महिला मतदाताओं का मतदान फीसद पुरुषों की तुलना में अधिक रहा है। इस बार 76.8 फीसद महिलाओं ने मतदान किया जबकि पुरुष मतदाताओं का फीसद 72.4 रहा।
हिमाचल में 2017 में चार महिलाएं विधानसभा में पहुंची थीं। 12 नवंबर को हुए चुनाव में हारने वालों में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री और कांगड़ा के शाहपुर से चार बार विधायक रहीं सरवीन चौधरी, कांग्रेस की वरिष्ठ नेता और डलहौजी से छह बार की विधायक आशा कुमारी (जो मुख्यमंत्री पद की दावेदार थीं), इंदौरा से भाजपा विधायक रीता धीमान, मंडी से कांग्रेस के दिग्गज नेता कौल सिंह की बेटी चंपा ठाकुर शामिल हैं।
कांगड़ा के जयसिंहपुर (अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित), हमीरपुर के भोरंज (अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित) और शिमला जिले के जुब्बल-कोटखाई के तीन निर्वाचन क्षेत्रों में महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों से अधिक रही। 68 निर्वाचन क्षेत्रों में से 19 में पुरुष और महिला मतदाताओं के बीच का अंतर 1,000 से कम है और 42 निर्वाचन क्षेत्रों में पुरुषों की तुलना में महिला मतदान का फीसद अधिक था।
लोकसभा में नौ दिसंबर 2022 को विधि एवं न्याय मंत्री किरेन रिजीजू द्वारा पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार आंध्र प्रदेश, असम, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, केरल, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, ओड़ीशा, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा, पुदुचेरी, मिजोरम, नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश की विधानसभाओं में महिला विधायकों की संख्या 10 फीसद से कम है। आंकड़ों के अनुसार, जिन राज्यों की विधानसभाओं में महिला विधायकों की संख्या 10 फीसद से अधिक है, उनमें बिहार (10.70), छत्तीसगढ़ (14.44), हरियाणा (10), झारखंड (12.35) पंजाब (11.11), राजस्थान (12), उत्तराखंड (11.43), उत्तर प्रदेश (11.66), पश्चिम बंगाल (13.70), दिल्ली (11.43) शामिल हैं।
तृणमूल कांग्रेस के सांसद अभिषेक बनर्जी ने संसद एवं राज्य विधानसभाओं में महिला सांसदों/विधायकों के प्रतिनिधित्व एवं महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की जानकारी मांगी थी। उन्होंने पूछा था कि क्या सरकार का महिला आरक्षण विधेयक लाने का विचार है? केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री किरेन रिजीजू नकहा था, ‘लैंगिक न्याय सरकार की एक महत्त्वपूर्ण प्रतिबद्धता है। इस मुद्दे पर संसद के समक्ष विधेयक लाने से पहले सभी राजनीतिक दलों को सहमति के आधार पर विचार विमर्श करने की आवश्यकता है।’
हाल में बीजू जनता दल, शिरोमणि अकाली दल, जनता दल यूनाइटेड, तृणमूल कांग्रेस जैसे राजनीतिक दलों ने सरकार से महिला आरक्षण विधेयक को नए सिरे से संसद में पेश करने एवं पारित कराने की मांग की है। इस विषय पर बीजू जनता दल के राज्यसभा सदस्य डा सस्मित पात्रा ने कहा कि उनकी पार्टी ने संसद के वर्तमान शीतकालीन सत्र के दौरान महिला आरक्षण विधेयक को पारित कराने की सरकार से मांग की है। उन्होंने कहा, ‘सरकार विधेयक लाती है तो उनकी पार्टी इसका समर्थन करेगी।’ उन्होंने कहा कि महिलाओं के सशक्तीकरण के विषय पर ओड़ीशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक बार-बार अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त कर चुके हैं।
गौरतलब है कि लंबे समय से महिला आरक्षण विधेयक को पारित कराने की मांग हो रही है। इस विधेयक को पहली बार 1996 में संसद में पेश किया गया था। इसके बाद इसे कई बार पेश किया गया। साल 2010 में इस विधेयक को राज्यसभा में पारित किया गया था, लेकिन 15वीं लोकसभा के भंग होने के बाद इस विधेयक की मियाद खत्म हो गई।