दिल्ली उच्च न्यायालय ने आप नेता सौरभ भारद्वाज को फटकार लगाई है। हाई कोर्ट ने क्लिनिकल प्रतिष्ठानों को रेगुलेट करने के लिए कानून बनाने पर न्यायिक आदेशों का पालन नहीं करने पर स्वास्थ्य मंत्री सौरभ भारद्वाज और स्वास्थ्य सचिव एसबी दीपक कुमार को चेतावनी दी। साथ ही दिल्ली हाई कोर्ट ने सौरभ भरद्वाज को गुरुवार को चेतावनी दी कि इसके लिए उन्हें जेल भेजा जा सकता है। अदालत ने कार्यवाही के दौरान दोनों से कहा कि वे सरकार के सेवक हैं और अहंकार नहीं रख सकते हैं।
दरअसल, फरवरी 2024 में कोर्ट ने एक ईमेल देखने के बाद भारद्वाज और कुमार को उसके समक्ष उपस्थित होने के लिए कहा था। उस मेल में कहा गया था कि दिल्ली स्वास्थ्य प्रतिष्ठान (पंजीकरण और विनियमन) विधेयक पर चर्चा के दौरान मंत्री को लूप में नहीं रखा गया था।
हमारे साथ ऐसा मत करो नहीं तो दोनों जेल जाओगे- दिल्ली हाई कोर्ट
सुनवाई के दौरान कहा गया कि परेशान करने वाली बात यह है कि याचिकाकर्ता एक आम आदमी की दुर्दशा को उजागर कर रहा है। वह हमें बता रहा है कि सभी प्रकार की लैब रिपोर्ट तैयार की जा रही हैं जो सच नहीं हैं और आम आदमी पीड़ित है। यह आपका खेल है, आप दोनों के बीच और विभिन्न गुटों के बीच जो चल रहा है, वह अदालत के लिए अस्वीकार्य है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत पीएस अरोड़ा की पीठ ने कहा, ”आपको व्यावहारिक होना होगा और यह भी सुनिश्चित करना होगा कि इन दो लोगों के बीच की लड़ाई से दलालों को फायदा न हो।”
पीठ ने कहा कि अगर मंत्री और सचिव मुद्दों को संभालने में असमर्थ हैं और झगड़ते रहते हैं तो कोर्ट किसी तीसरे पक्ष को चीजों को संभालने के लिए कहेगी या क्या करना है इसके बारे में आदेश पारित करेगी। पीठ ने आगे कहा, “हमारे साथ ऐसा मत करो नहीं तो आप दोनों जेल जाओगे अगर इससे आम आदमी को फायदा होगा तो हमें आप दोनों को जेल भेजने में कोई हिचकिचाहट नहीं होगी। आप दोनों अहंकार नहीं कर सकते, आप दोनों सरकारी सेवक हो। सरकार और आप दोनों को यह सुनिश्चित करना होगा कि आम आदमी को फायदा हो, आप क्या कर रहे हैं? लोगों को उनके ब्लड सैंपल की गलत रिपोर्ट मिल रही है।”
सौरभ भारद्वाज पर भड़की अदालत
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि राजधानी में अनधिकृत प्रयोगशालाएं और डायग्नोस्टिक केंद्र अयोग्य तकनीशियनों के साथ काम कर रहे थे और मरीजों को गलत रिपोर्ट दे रहे थे। मंत्री ने कहा कि दिल्ली स्वास्थ्य विधेयक को मई 2022 में ही अंतिम रूप दे दिया गया था, कोर्ट ने पूछा कि इसे अभी तक मंजूरी के लिए केंद्र के पास क्यों नहीं भेजा गया। कोर्ट ने कहा कि अगर इसमें समय लगेगा, तो दिल्ली सरकार को केंद्र सरकार के कानून- क्लिनिकल प्रतिष्ठान (पंजीकरण और विनियमन) अधिनियम, 2010 को लागू करने पर विचार करना चाहिए।
सौरभ भारद्वाज ने दलील दी थी कि कोर्ट की कृपा से सरकार को विधेयक को अधिनियमित करने में मदद मिलेगी। जिस पर कोर्ट नाराज हो गया और कहा, “आपको लगता है कि हम इस खेल में एक मोहरा हैं और आप इसे रणनीति के तौर पर इस्तेमाल करेंगे। हम किसी के प्यादे नहीं हैं। इस ग़लतफहमी को दूर करो कि तुम अदालत की प्रक्रिया का उपयोग करोगे।”