Maharashtra Assembly Polls: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव को लेकर मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए नेता इमोशनल कार्ड भी खेल रहे हैं। ऐसा ही कुछ गुरुवार को एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार को याद करते हुए भावुक बयान दिया। ठाकरे ने मौजूद जनता से कहा कि एक बात तो तय है पीएम मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह मुझे घर पर नहीं बैठा सकते। लेकिन, अगर आप मेरा साथ नहीं देंगे तो मैं संन्यास ले लूंगा।

शिवसेना के गढ़ों में से एक छत्रपति संभाजीनगर में ठाकरे द्वारा की गई भावनात्मक बातचीत उनके अन्य जगहों के भाषणों से अलग है। ठाकरे अपने पूरे अभियान के दौरान भाजपा और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अगुआई वाली शिवसेना पर तीखे हमले करते रहे हैं, लेकिन लोकसभा में हार और जिले की पांच विधानसभा सीटों पैठण, सिल्लोड, औरंगाबाद सेंट्रल, औरंगाबाद वेस्ट और वैजापुर को फिर से हासिल करने की चुनौती ने उन्हें अपने भाषण का लहजा बदलने पर मजबूर कर दिया है।

2019 के विधानसभा चुनावों में अविभाजित शिवसेना और भाजपा ने छत्रपति संभाजीनगर, जिसे उस समय औरंगाबाद के नाम से जाना जाता था। उसकी सभी नौ विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की। भाजपा ने फुलंबरी (हरिभाऊ बागड़े), गंगापुर (प्रशांत बम्ब) और औरंगाबाद पूर्व (अतुल सवे) में जीत हासिल की थी।

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अविभाजित सेना ने कन्नड़ (उदयसिंह राजपूत), सिल्लोड (अब्दुल सत्तार), औरंगाबाद सेंट्रल (प्रदीप जायसवाल), औरंगाबाद पश्चिम (संजय शिरसाट), पैठण (संदीपन भुमारे) और वैजापुर (रमेश बोरनाले) सीटें जीतीं। कन्नड़ विधानसभा सीट से राजपूत को छोड़कर सभी पांच विधायकों ने ठाकरे के खिलाफ विद्रोह के बाद शिंदे से हाथ मिलाना चुना।

1998 और 2014 के लोकसभा चुनावों को छोड़कर अविभाजित सेना 1989 से यहां आम चुनाव जीतती आ रही है। 1998 में कांग्रेस के रामकृष्ण पाटिल ने चुनाव जीता था। विभाजन के बाद सेना यूबीटी ने पूर्व सांसद चंद्रकांत खैरे को मैदान में उतारा, जबकि शिंदे के नेतृत्व वाली सेना ने संदीपन भुमारे को मैदान में उतारा। दोनों ने एआईएमआईएम के मौजूदा इम्तियाज जलील के खिलाफ चुनाव लड़ा।

मराठा सामाजिक कार्यकर्ता मनोज जरांगे-पाटिल के नेतृत्व में आंदोलन के बाद पैदा हुई लहर पर सवार होकर भुमरे ने लोकसभा चुनाव जीता और 1998 के बाद से इस निर्वाचन क्षेत्र के पहले मराठा सांसद बने।

विधानसभा चुनाव में भी पार्टी को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा था। औरंगाबाद सेंट्रल से उसके उम्मीदवार किशनचंद तनवानी ने आखिरी समय में अपना नाम वापस ले लिया था, जिसके बाद पार्टी को शहर प्रमुख बालासाहेब थोरात को मैदान में उतारना पड़ा था।

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कन्नड़ सीट को छोड़कर शिंदे सेना के मौजूदा विधायकों को चुनौती देने के लिए सेना यूबीटी ने नए चेहरों को टिकट दिया है। तीन बार के विधायक संजय शिरसाट का मुकाबला एसएस-यूबीटी के राजू शिंदे से है, जिन्होंने 2019 के चुनावों में निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ा था।

वैजापुर में रमेश बोरनाले को चुनौती देने के लिए पूर्व भाजपा नेता दिनेश परदेशी एसएस-यूबीटी में शामिल हो गए हैं, जबकि सिल्लोड में मंत्री अब्दुल सत्तार के खिलाफ़ सुरेश बनकर ठाकरे के उम्मीदवार हैं। 2019 के चुनावों में अविभाजित एनसीपी के उम्मीदवार दत्ता गोर्डे पैठण में लोकसभा सांसद संदीपन भुमारे के बेटे विलास भुमारे के खिलाफ़ उम्मीदवार हैं।

ठाकरे ने कहा कि इससे (लोकसभा की हार से) मुझे दुख पहुंचा है। मैं इस तथ्य को पचा नहीं पा रहा हूं कि इस शहर के लोगों ने ऐसे व्यक्ति को वोट दिया जिसने पार्टी की पीठ में छुरा घोंपा। जिस पार्टी ने उन्हें राजनीतिक पहचान और करियर दिया।

(आलोक देशपांडे की रिपोर्ट)