प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कच्चाथिवु द्वीप को लेकर हाल ही में कांग्रेस और डीएमके पर निशाना साधा था। केंद्र सरकार इस मामले को पुरजोर तरीके से उठा रही है। सोमवार को विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी कांग्रेस पर हमला बोला। ऐसे में सवाल उठने लगा कि क्या मोदी सरकार कच्चाथिवु को लेकर कोई बड़ा फैसला लेने वाली है? क्या भारत कच्चाथिवु को वापस लेने जा रहा है। इस संबंध में श्रीलंका की ओर से बयान सामने आया है। श्रीलंका के मंत्री ने कहा कि भारत की ओर से अभी इस मामले में कोई आधिकारिक आदेश नहीं मिला है।

श्रीलंका के राष्ट्रपति रनिल विक्रमसिंघे के मंत्रिमंडल में तमिल मूल के मंत्री जीवन थोंडामन ने बताया कि कच्चाथिवु के मामले में जहां तक श्रीलंका का सवाल है तो वह इलाका श्रीलंका के नियंत्रण में आता है। वर्तमान समय में श्रीलंका के भारत के साथ रिश्ते काफी अच्छे हैं। भारत की ओर से अभी तक कच्चाथिवु द्वीप को लौटाने की और आधिकारिक सूचना नहीं आई है। अगर भारत ऐसा कदम उठाता है तो विदेश मंत्रालय उसका जवाब देगा। उन्होने एक सवाल के जवाब में कच्चाथिवु को भारत को लौटाने की किसी भी संभावना से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सीमाओं को बदला नहीं जा सकता है।

पीएम मोदी ने कांग्रेस पर साधा था निशाना

बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी ने रविवार को इसे लेकर कांग्रेस और डीएमके पर हमला बोला। इसके बाद सोमवार को विदेश मंत्री एस जयशंकर ने प्रेस कांफ्रेंस कर कांग्रेस पर हमला बोला। उन्होंने कहा कि कांग्रेस और DMK ने इस मामले को इस तरह से लिया है मानो इस पर उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं है। जयशंकर ने 1974 में हुए उस समझौते की बात दोहराते हुए कहा कि उस साल भारत और श्रीलंका के बीच एक समझौता हुआ था। दोनों देशों ने उसपर हस्ताक्षर किए थे। उसके बाद कांग्रेस की तब की सरकार ने एक समुद्री सीमा खींची और समुद्री सीमा खींचने में कच्चाथीवू को सीमा के श्रीलंकाई पक्ष पर रखा गया।

इंदिरा गांधी ने 1974 में किया था समझौता

बता दें कि 1974 तक कच्चाथीवू भारत का हिस्सा था लेकिन श्रीलंका भी इस आइलैंड पर अपना दावा करती रही। यह द्वीप, नेदुन्तीवु, श्रीलंका और रामेश्वरम (भारत) के बीच स्थित है। साल 1974 में भारत सरकार और श्रीलंका सरकार के बीच में समझौता होने के बाद भारत सरकार ने कच्चाथीवू आइलैंड का स्वामित्व श्रीलंका को सौंप दिया। इससे पहले दोनों देशों के मछुआरे काफी समय से बिना किसी विवाद के एक दूसरे के जलक्षेत्र में मछली पकड़ते रहे। इस समझौते से भारत और श्रीलंका के बीच अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा निर्धारित हो गई। हालांकि इसके बाद भी विवाद कम नहीं हुआ। 1991 में तमिलनाडु विधानसभा ने प्रस्ताव पास किया और इस द्वीप को वापस लेने की मांग की गई।