नई संसद के उद्घाटन का मसला तूल पकड़ता जा रहा है। पहले विपक्षी दलों ने सरकार को इस बात के लिए घेरा कि उद्घाटन राष्ट्रपति के बजाए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्यों कर रहे हैं। अब एक एडवोकेट ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके इस मसले पर न्याय की गुहार लगाई है।
एडवोकेट सीआर जया सुकीन ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि वो लोकसभा सचिवालय को आदेश जारी करे कि नई संसद का उद्घाटन पीएम के बजाय राष्ट्रपति के हाथों कराया जाए। उनका कहना है कि राष्ट्रपति संवैधानिक तौर पर सरकार का मुखिया होता है। ऐसे में मोदी सरकार नई संसद के उद्घाटन का काम द्रोपदी मुर्मु के हाथों क्यों नहीं करवा रही है। यहां तक कि उनको समारोह में बुलाया तक नहीं गया।
एडवोकेट बोले- संविधान के आर्टिकल 79 का उल्लंघन कर रही सरकार
याचिका में कहा गया है कि संविधान का आर्टिकल 79 कहता है कि पार्लियामेंट का मतलब राष्ट्रपति और दो सदनों से होता है। राष्ट्रपति देश के पहले नागरिक होते हैं। उनके ही बुलावे पर संसद के दोनों सदन काम करना शुरू करते हैं। यहां तक कि प्रधानमंत्री और सरकार के तमाम मंत्रियों को नियुक्त करने का काम भी राष्ट्रपति का ही दायित्व है। सरकार अपने सारे काम राष्ट्रपति के नाम पर ही करती है। कोई भी बिल जो कि संसद से पारित होता है वो राष्ट्रपति के दस्तखत के बगैर कानून की शक्ल नहीं ले सकता है। कुल मिलाकर सरकार राष्ट्रपति के नाम पर ही चलती है। उनका कहना है कि उद्घाटन समारोह में राष्ट्रपति को न बुलाना एक तरह से उनका अपमान है। ये भारत के संविधान की भी सीधे तौर पर अवज्ञा है।
19 विपक्षी दल पहले ही कर चुके हैं उद्घाटन समारोह का बहिष्कार
ध्यान रहे कि 18 मई को लोकसभा सचिवालय ने जो आदेश जारी किया है उसके हिसाब से पीएम नरेंद्र मोदी नई संसद का उद्घाटन 28 मई को करने जा रहा हैं। 19 विपक्षी दलों ने संसद के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करने का फैसला लिया है। उनका भी कहना है कि राष्ट्रपति को न बुलाया जाना संविधान का सरासर अपमान है। उनका कहना है कि संसद राष्ट्रपति के बगैर काम भी नहीं कर सकती। लेकिन सरकार उद्घाटन समारोह में ही उनको नहीं बुलाने जा रही है। विपक्षी दलों का कहना है कि मोदी सरकार लोकतंत्र को पूरी तरह से खत्म करने पर तुली हुई है।