झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सुनवाई ही नहीं की और नाराजगी भी जताई। जिसके बाद उनके वकीलों ने याचिका वापस ले ली।
हेमंत सोरेन ने इस उम्मीद में याचिका लगाई थी कि उन्हें भी दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की तरह लोकसभा चुनाव के दौरान प्रचार करने का मौका मिल जाएगा। झारखंड की 7 सीटों पर आखिर के दो चरणों (25 मई, 1 जून) में मतदान होना है।
बुधवार को जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच द्वारा मामले की सुनवाई से इनकार करने के बाद सोरेन के वकीलों ने याचिका वापस ले ली। अब सवाल यह है कि अरविंद केजरीवाल की याचिका क्यों सुनी गई और क्यों हेमंत सोरेन को कोर्ट से झटका लगा?
अरविंद केजरीवाल का केस?
दिल्ली के मुख्यमंत्री को 21 मार्च को दिल्ली शराब नीति मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तार किया गया था। दो दिनों के भीतर, केजरीवाल ने गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया था। यह एक महत्वपूर्ण कदम था।
एक नॉर्मल प्रोसेस में जमानत याचिका सबसे पहले ट्रायल कोर्ट में दर्ज की जाती है। जिसके बाद हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक याचिका पहुंचती है। हालांकि धन-शोधन निवारण अधिनियम (PMLA)जैसे मामलों में जमानत मिलना लगभग असंभव होता है। PMLA का सेक्शन 45 जो जमानत की प्रक्रिया से जुड़ा है। इसके मुताबिक आरोपी को कोर्ट को भरोसे में लेना होता है और यह साबित करना होता है कि आरोप सीधे तौर पर उसपर नहीं होते हैं और संभावना होती है कि वह जमानत के दौरान के दौरान कोई अपराध नहीं करेगा।
उसे कोर्ट को यह समझाना होगा कि संबधित मामले में कोर्ट बिना उसे गिरफ्तार किए भी केस चला सकता है और उसकी गिरफ्तारी में PMLA का गलत उपयोग हुआ है।
अवैध गिरफ्तारी के खिलाफ एक याचिका संवैधानिक अदालत के समक्ष दायर की जाती है। इसका मतलब यह है कि आरोपी सीधे हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकता है, जिससे जमानत मांगने में ट्रायल कोर्ट के समक्ष खर्च होने वाला समय बच जाता है।
अरविंद केजरीवाल के मामले में 9 अप्रैल को दिल्ली हाई कोर्ट ने उनकी गिरफ्तारी को बरकरार रखा था जिसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। चूंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में था और सुनवाई में समय लगना था तो कोर्ट ने उन्हें चुनाव के दौरान प्रचार के लिए अंतरिम जमानत दे दी।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जमानत देकर वह राजनेताओं के लिए विशेष परिस्थितियाँ पैदा नहीं कर रहा है।
हेमंत सोरेन को क्यों नहीं मिली जमानत?
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री को ज़मीन घोटाले से संबंधित मामले में मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में 31 जनवरी को गिरफ्तार किया गया था। उसी दिन सोरेन के वकीलों ने गिरफ्तारी की वैधता को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में एक रिट याचिका दायर की थी। तब हाईकोर्ट ने सुनवाई की और 28 फरवरी को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था और दो महीने बाद फैसला सुनाते हुए जमानत नहीं दी थी।
जिस दौरान हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा हुआ था तब सोरेन के वकीलों ने ट्रायल कोर्ट में याचिका दायर कर दी थी लेकिन वहां से भी याचिका खारिज कर दी।
अब जब सुप्रीम कोर्ट में मामला गया तो कोर्ट ने एक साथ दो कोर्ट में याचिका दायर किए जाने और इस तथ्य को कोर्ट के सामने नहीं रखने के लिए सोरेन के वकीलों से नाराजगी जताई। जिसके बाद हेमंत सोरेन के वकीलों ने जमानत याचिका वापस ले ली।
अरविंद केजरीवाल की AAP के उलट हेमंत सोरेन की JMM एक राष्ट्रीय पार्टी नहीं है। गिरफ्तारी से पहले सोरेन ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था और वह अपनी पार्टी के अध्यक्ष भी नहीं हैं।