दिल्ली से सटे दो बड़े शहर- नोएडा और गुरुग्राम – हर बार बारिश के बाद अलग तस्वीर दिखाते हैं। सोमवार को गुरुग्राम में सिर्फ 100 मिमी बारिश हुई और देखते ही देखते शाम के व्यस्त समय में सड़कों पर कई किलोमीटर लंबा जाम लग गया। इससे लोग कुछ दूरी जाने के लिए घंटों फंसे रहे। स्थानीय लोगों का कहना था कि जलभराव की वजह से वे घंटों तक जाम में फंसे रहे। यह परेशानी एक बार फिर गुरुग्राम की शहरी योजना और विकास पर सवाल खड़े करती है। यहां रहने वाले लोग साल दर साल शिकायत करते हैं कि जरा-सी भी बारिश के बाद ट्रैफिक व्यवस्था बिगड़ जाती है।

इसके उलट, एनसीआर का ही दूसरा उपनगरीय शहर नोएडा ऐसे हालात में अपेक्षाकृत कम प्रभावित होता है। इस शहर की नींव 1975 में आपातकाल के दौरान रखी गई थी, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी ने राष्ट्रीय राजधानी से उद्योगों को बाहर स्थानांतरित करने की योजना बनाई थी।

नोएडा को 1976 में औद्योगिक टाउनशिप की तरह विकसित किया गया था

नया ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण (नोएडा) के अधीन यह शहर उत्तर प्रदेश औद्योगिक क्षेत्र विकास अधिनियम, 1976 के तहत एक औद्योगिक टाउनशिप के रूप में विकसित किया गया और धीरे-धीरे राज्य की आर्थिक शक्ति का केंद्र बन गया।

विशेषज्ञों के अनुसार, नोएडा एक योजनाबद्ध “ग्रीनफील्ड” शहर था, जिसे पूरी तरह नई और अविकसित जमीन पर बसाया गया। दिल्ली स्थित स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर में हाउसिंग के प्रोफेसर पी.एस.एन. राव बताते हैं कि विकास प्राधिकरण ने पहले भूमि अधिग्रहण किया और उसके बाद सड़कें, सीवर, ड्रेनेज पाइप, फुटपाथ और स्ट्रीट लाइट जैसी बुनियादी संरचनाएं खड़ी कीं।

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इसके बाद निजी डेवलपर्स मैदान में उतरे और साझा बुनियादी ढांचे को और विस्तार दिया। लगभग पचास साल पहले अधिग्रहित इस जमीन में 50 गांव शामिल थे, जिनका कुल क्षेत्रफल 14,915 हेक्टेयर (36,841 एकड़) था। आज इसमें 81 गांव और करीब 20,316 हेक्टेयर भूमि आ चुकी है।

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गुरुग्राम में बारिश से सड़क पर जाम लगने के घंटों वाहन फंसे रहे। (फोटो- पीटीआई)

राष्ट्रीय शहरी मामलों के संस्थान और नीति अनुसंधान केंद्र की पूर्व शोधकर्ता मुक्ता नाइक कहती हैं, “नोएडा के लिए व्यवस्थित योजना बनाई गई थी, इसलिए यहां जल निकासी और सड़क नेटवर्क का निर्माण उसी अनुपात में हुआ जैसा बुनियादी ढांचे की ज़रूरत थी।”

राव बताते हैं, “इसके विपरीत गुरुग्राम का विकास सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल के तहत हुआ। यहां अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न आकार की जमीनें निजी डेवलपर्स ने अधिग्रहित और विकसित कीं, जिनमें सबसे प्रमुख नाम डीएलएफ का है।” उनके अनुसार, “बाहरी बुनियादी ढांचा तो राज्य सरकार ने विकसित किया, लेकिन आंतरिक ढांचे को उससे सही तरीके से नहीं जोड़ा गया।”

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हरियाणा सरकार ने 1970 के दशक से कई ऐसे कानून बनाए, जिनसे निजी कंपनियां बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहण करके टाउनशिप विकसित कर सकीं। लेकिन यह प्रक्रिया एक समान ढंग से नहीं चली, नतीजतन जगह-जगह अनियमित भूखंड और अधूरी सड़कें बनीं, जिनका कोई ठिकाना नहीं था।

रिपोर्ट यह भी बताती है कि गुरुग्राम के दक्षिण में अरावली पर्वतमाला शहर की प्राकृतिक ऊंचाई है। वहां से जंमीन उत्तर की ओर ढलान वाली है, जो अपेक्षाकृत नीची है। इसी वजह से गुरुग्राम का बरसाती पानी सामान्यतः दक्षिण से उत्तर की ओर बहता है और अंततः पश्चिमी दिल्ली की नजफगढ़ झील तक पहुंचता है। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि अब प्राकृतिक जलनिकासी मार्ग लगभग खत्म हो चुके हैं और बेतरतीब शहरी विस्तार में शहर की भौगोलिक वास्तविकता की अनदेखी की गई है।

विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि गुरुग्राम का अव्यवस्थित सड़क नेटवर्क इस समस्या को और बढ़ा देता है। नाइक के मुताबिक, स्पष्ट और संगठित सड़क नेटवर्क की कमी ट्रैफिक जाम और जलभराव, दोनों की समस्या को कहीं अधिक गंभीर बना देती है।