Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक बात पर हैरानी जताई कि एक ट्रायल कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत बलात्कार के अपराध के लिए केवल तीन वर्ष के कारावास की सजा सुनाई, जबकि इस अपराध के लिए निर्धारित न्यूनतम सजा सात वर्ष के कारावास (2013 के संशोधन से पहले) थी।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, शीर्ष अदालत ने यह देखकर भी आश्चर्यचकित था कि गुजरात हाई कोर्ट ने दोषसिद्धि के खिलाफ दोषी की अपील तथा सजा बढ़ाने की राज्य की अपील को खारिज करते समय इस तथ्य पर ध्यान नहीं दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जबकि हाई कोर्ट को ट्रायल कोर्ट द्वारा की गई गलती का पता था, फिर भी उसने इसे सुधारने के लिए कुछ नहीं किया।
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जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि हम यह समझने में असफल हैं कि ट्रायल कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 376 के तहत दंडनीय बलात्कार के अपराध के लिए तीन साल के कठोर कारावास की सजा कैसे दे सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यहां तक कि हाई कोर्ट ने भी अपीलकर्ताओं द्वारा दायर आपराधिक अपील को खारिज करते हुए इस तथ्य पर ध्यान नहीं दिया कि निचली अदालत भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत दंडनीय बलात्कार के अपराध के लिए तीन साल की सजा कैसे दे सकती है, जबकि न्यूनतम सजा सात साल है।
कोर्ट ने यह टिप्पणी दोषी की दोषसिद्धि के विरुद्ध अपील पर विचार करते हुए की। जब न्यायालय ने गुजरात राज्य की स्थायी वकील स्वाति घिल्डियाल को सजा में विसंगति के बारे में बताया, तो उन्होंने माना कि यह ट्रायल कोर्ट की ओर से एक “गंभीर त्रुटि” थी। लेकिन उन्हें यह भी समझ में नहीं आया कि इस स्थिति को कैसे सुधारा जाए, क्योंकि राज्य ने हाई कोर्ट के फैसले के विरुद्ध कोई अपील दायर नहीं की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह इस पहलू की बारीकी से जांच करना चाहता है तथा मामले की सुनवाई 23 जनवरी, 2025 तक स्थगित कर दी।
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