भारत का सिरमौर कहे जाने वाले कश्मीर में श्रीनगर से लेह के बीच स्थित वो इलाका जो करीब 6 महीने तक बर्फ से ढका रहता है। इसी वजह से वहां कोई आबादी नहीं रहती। क्योंकि बर्फ से ढके होने के दौरान वहां पर आवागमन संभव नहीं होता। इसके बावजूद यह स्थान भारत का मुकुट है। इसी भूभाग पर अपना कब्जा जमाने की नापाक कोशिश पाकिस्तान ने 1999 में की थी।
1947 में भारत-पाकिस्तान बंटवारा हुआ। उस दौरान भारत ने बड़े भाई की तरह पाकिस्तान को अपने आजाद मुल्क बनाने के लिए आर्थिक सहयोग किया। लेकिन पाकिस्तान ने उसके बदले हमेशा जख्म दिए। चाहें 1948 में हुए कश्मीर कबायली हमला हो या फिर 1965 का युद्ध। या फिर 1971 का युद्ध हो या फिर 1999 में हुआ कारगिल युद्ध। हर बार पाकिस्तान ने भारत में घुसपैठ करने की कोशिश की।
आज कारगिल युद्ध के 25 साल हो गए हैं। साल था 1999, उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान से पुरानी यादों को भुलाकर नई शुरुआत करने के लिए दिल्ली-लाहौर सदा-ए-सरहद बस सेवा शुरू करने की पहल की। 20 फरवरी 1999 को अटल बिहारी वाजपेयी ने हरी झंडी दिखाकर बस को रवाना किया था। लेकिन उनको क्या पता था कि जिस पाकिस्तान और उसके प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को साथ लेकर चलने की कोशिश कर रहे हैं। वो ही उनके साथ विश्वासघात करेगा। शरीफ और उसके सेनाध्यक्ष ने 6 महीने के भीतर ही कारगिल पर हमला करवा दिया।
शरीफ के नाक के नीचे ही मुशर्रफ ने रच दी कारगिल हमले की साजिश?
एक तरफ जहां अटल बिहारी वाजपेयी दोनों देशों की बीच अमन और भाईचारा का ख्वाब देख रहे थे। उसी दौरान पाकिस्तान के तत्कालीन सेनाध्यक्ष परवेज मुशर्रफ भारत के मुकुट कश्मीर में घुसपैठ की तैयारी कर रहा था। ऐसा बताया जाता है कि कारगिल युद्ध को लेकर नवाज शरीफ को कोई जानकारी नहीं थी। बल्कि उनके नाक के नीचे ही परवेज मुशर्रफ ने इस युद्ध की साजिश रची। जिसकी भनक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शरीफ को भी नहीं थी। हालांकि युद्ध के बाद परवेज मुशर्रफ के बयानों को याद करें तो ये समझ में आता है कि इस युद्ध में मुशर्रफ और शरीफ की मिली भगत थी। उस दौरान मुशर्रफ ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत के खिलाफ खूब जहर उगला था।
मुशर्रफ ने हमले से पहले किया था दौरा
साल 1998 में ही मुशर्रफ ने कारगिल इलाके में घुसपैठ को लेकर रणनीति बनानी शुरू कर दी थी। इसको लेकर मुशर्रफ ने अक्तूबर 1998 में पाकिस्तान के कब्जे वाले काश्मीर के उत्तरी इलाके का दौरा भी किया था। जिसके बाद मुशर्रफ ने सर्दी का मौसम खत्म होने के बाद बर्फ कम होते ही साल 1999 में घुसपैठ चालू करवा दिया। अप्रैल 1999 आते-आते पाक सेना के कई घुसपैठी कारगिल इलाके में भारतीय नियंत्रण रेखा में दाखिल होना शुरू हो गए।
श्रीनगर से लेह-लद्दाख सड़क को नष्ट करने की थी साजिश
पाकिस्तानी आर्मी 1999 में आगे बढ़ते-बढ़ते श्रीनगर से लेह-लद्दाख को जोड़ने वाली सड़क नेशनल हाइवे 1A के करीब पहुंच गई थी। पाकिस्तानी फौज का यही इरादा था कि इस सड़क को ही अपने कब्जे में लेकर बाधित कर दिया जाए तो लेह भारत से कट जाएगा और ऊपर स्थित भारतीय सैनिकों के पास खाने से लेकर युद्ध से जुड़ी सामाग्री भी पहुंचने में परेशानी बढ़ जाएगी। हालांकि पाकिस्तानी फौज इसमें सफल होती इससे पहले ही भारतीय सेना के जांबाज रणबांकुरों ने उनके मंसूबों को नाकाम कर दिया।
वहीं अगर कारगिल हमले के पीछे पाकिस्तान के मंसूबों की बात करें तो उसका इरादा यही था कि लद्दाख में पहुंचने वाले रसद आपूर्ति को ही रोक दिया जाए। जिससे द्रास और कारगिल पर आराम से कब्जा किया जा सके। इसके साथ-साथ पाकिस्तान घाटी, बाल्टिन और तुतुर्क क्षेत्र की पहाड़ियों पर अपना आधिपत्य जमाकर भारत को सियाचिन से पीछे हटने का मजबूर करने का खयाली पुलाव बना रहा था। पाकिस्तान का सपना शिमला समझौते को खत्म करते हुए कश्मीर को अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बनाकर भारत की किरकिरी कराना था।
पाकिस्तान पर भारत ने किया चौतरफा हमला
कब्जे की रणनीति से भारत में घुसपैठ करने वाली पाकिस्तानी फौज को जहां उलटे पांव अपने देश वापस लौटना पड़ा वहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी पाकिस्तान की खूब थू-थू हुई। पाकिस्तानी सैनिकों के भारतीय सीमा में घुसपैठ की भनक लगते ही भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन विजय’, जलसेना ने ‘सफेद सागर’ और वायुसेना ने ‘ऑपरेशन तलवार’ की शुरुआत करते हुए पाकिस्तान और घुसपैठियों पर चौतरफा प्रहार करना शुरू किया। खराब मौसम की वजह से यह युद्ध जरूर दो महीनें तक चला लेकिन भारतीय सैनिकों के बुलंद हौसले के दम पर पाकिस्तान एक बार फिर चारों खाने चित्त हुआ। भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा कब्जा किए हुए सभी प्वाइंट पर तिरंगा फहराया।
अमेरिका ने पाकिस्तान की लगाई थी क्लास
इस दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन हर ओर से पाकिस्तान को निराशा ही हाथ लगी। अमेरिका समेत अन्य देशों ने भी पाकिस्तान को लताड़ते हुए स्पष्ट संकेत दिए कि अगर पाकिस्तान युद्ध चाहता है तो भारत भी पीछे नहीं हटेगा और अमेरिका भारत का समर्थन करेगा।
14 जुलाई 1999 को वायपेयी ने ऑपरेशन विजय की जीत की घोषणा की। 26 जुलाई को जब पाकिस्तानी घुसैपठी पूरी तरह से भारतीय सीमा से बाहर हुए तब भारत ने उस दिन को जश्न के रूप में मनाते हुए हर साल विजय दिवस के रूप में मनाने का ऐलान किया गया। हालांकि युद्ध में भारत ने अपने जाबाज 634 जवानों को खो दिए। लेकिन उनकी शहादत पर देश ने फक्र के साथ उनको सलाम किया और उनके इस शौर्य गाथा को जन्मों-जन्मों के लिए अजर-अमर कर दिया।