Ajey: The Untold Story of a Yogi: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के जीवन पर आधारित फिल्म इस वक्त काफी चर्चा में है। वहीं, बॉम्बे ने हाई कोर्ट कहा है कि न्यायाधीश उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के जीवन पर आधारित इस फिल्म देखेंगे, जिसके प्रदर्शन में देरी का आरोप केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) पर लगाया गया है।
कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि वह फिल्म निर्माताओं द्वारा दायर याचिका पर कोई आदेश देने से पहले “अजय: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ़ ए योगी ( Ajey: The Untold Story of a Yogi )” देखेगी। इस मामले की सुनवाई 25 अगस्त को फिर से होगी।
निर्माता सम्राट सिनेमैटिक्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (Samrat Cinematics India Pvt Ltd) ने कहा है कि यह फिल्म शांतनु गुप्ता (Shantanu Gupta) की पुस्तक द मॉन्क हू बिकेम चीफ मिनिस्टर (The Monk Who Became Chief Minister): द डेफिनिटिव बायोग्राफी ऑफ योगी आदित्यनाथ (2017) (The Definitive Biography of Yogi Adityanath (2017)) से प्रेरित है, जिसे यूपी के मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा आधिकारिक रूप से समर्थन दिया गया है।
निर्माताओं ने अपनी याचिका में कहा है कि फिल्म का उद्देश्य न केवल सार्वजनिक सेवा में एक नेता की यात्रा को चित्रित करना है, बल्कि तथ्य और ईमानदारी पर आधारित कथा के माध्यम से राष्ट्र के युवाओं को प्रेरित और प्रोत्साहित करना भी है।
सम्राट सिनेमैटिक्स का आरोप है कि उसने इसी साल 5 जून को फिल्म के प्रमाणन के लिए आवेदन किया था। प्रमाणन नियमों के अनुसार, सीबीएफसी को सात दिनों के भीतर आवेदन की जांच करनी थी और 15 दिनों के भीतर उसे जांच समिति के समक्ष प्रस्तुत करना था।
हालांकि, जब सीबीएफसी ने एक महीने से ज़्यादा समय तक कोई कार्रवाई नहीं की, तो याचिकाकर्ता ने प्राथमिकता योजना के तहत फिर से आवेदन किया। याचिका के अनुसार, सीबीएफसी ने 7 जुलाई को स्क्रीनिंग निर्धारित की, लेकिन इसे रद्द कर दिया गया।
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चूंकि उन्हें सीबीएफसी से कोई और पत्राचार नहीं मिला, इसलिए फिल्म निर्माताओं को मजबूरन हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा ताकि सीबीएफसी को फिल्म की रिलीज पर जल्द से जल्द निर्णय लेने का निर्देश दिया जा सके।
फिल्म निर्माता के अनुसार, सेंसर बोर्ड द्वारा फिल्म, इसके टीज़र, ट्रेलर और प्रचार गीत के लिए आवेदन पर कार्रवाई करने में देरी “अनुचित” और “अस्पष्टीकृत” है।
16 जुलाई को जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे और नीला के. गोखले की खंडपीठ ने मौखिक रूप से टिप्पणी की थी कि सीबीएफसी को कानून के तहत निर्धारित समय के भीतर प्रमाणन जारी करना अनिवार्य है। अगले दिन, बोर्ड ने हाई कोर्ट को आश्वासन दिया कि आवेदन पर दो कार्यदिवसों के भीतर निर्णय लिया जाएगा, जिसके बाद कोर्ट ने फिल्म निर्माताओं की रिट याचिका का निपटारा कर दिया। फिल्म 1 अगस्त को सिनेमाघरों में रिलीज़ होने वाली थी।
दूसरी रिट याचिका
21 जुलाई को सीबीएफसी ने फिल्म निर्माताओं को पत्र लिखकर बताया कि उनके प्रमाणन आवेदन को अस्वीकार कर दिया गया है। इसके बाद, उन्हें कोर्ट में दूसरी रिट याचिका दायर करनी पड़ी।
1 अगस्त को हाईकोर्ट ने पाया कि सीबीएफसी ने 21 जुलाई को फिल्म देखे बिना ही निर्णय ले लिया था, और केवल इसलिए कि यह एक संवैधानिक पद (यूपी के सीएम) पर आधारित थी और यूपी के सूचना और जनसंपर्क विभाग ने गंभीर आपत्ति”जताई थी और कहा था कि यह बड़े पैमाने पर जनता को प्रभावित कर सकती है।
सीबीएफसी ने हाईकोर्ट को आश्वासन दिया कि प्रमाणन पर फैसला लेने से पहले एक पैनल फिल्म देखेगा। इसके बाद, 6 अगस्त को, उसने इस आधार पर फिल्म को प्रमाणित करने से इनकार कर दिया कि यह सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए फिल्मों के प्रमाणन संबंधी दिशानिर्देशों का उल्लंघन करती है।
सीबीएफसी के अनुसार, फिल्म ने उन धाराओं का उल्लंघन किया है जिनके अनुसार माध्यम को समाज के मूल्यों और मानकों के प्रति जिम्मेदार और संवेदनशील रहना चाहिए। सीबीएफसी ने कहा कि फिल्म में नस्लीय, धार्मिक या अन्य समूहों के प्रति अपमानजनक दृश्य या शब्द प्रस्तुत किए गए हैं और किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह की मानहानि या अदालत की अवमानना”की गई है।
निर्माता ने तब कहा कि वह सीबीएफसी की संशोधन समिति के समक्ष आवेदन करेंगे। हाई कोर्ट ने बोर्ड से कहा था कि वह याचिकाकर्ता को उन सभी विषयों या संवादों के बारे में सूचित करे जो उसे आपत्तिजनक लगे। निर्माताओं से यह बताने को कहा गया था कि क्या वे फिल्म के कुछ हिस्सों को हटाना चाहते हैं या उनमें बदलाव करना चाहते हैं।
सीबीएफसी ने 29 आपत्तियां उठाईं, लेकिन बाद में आठ हटा लीं। बोर्ड ने फिल्म के शीर्षक पर आपत्ति जताई, क्योंकि यह भड़काऊ है और कुछ संवादों पर भी आपत्ति जताई। 17 अगस्त को सीबीएफसी के पुनरीक्षण पैनल ने फिल्म निर्माता के आवेदन को खारिज कर दिया।
गुरुवार को सीबीएफसी ने दलील दी कि रिट याचिका विचारणीय नहीं है। उसने कहा कि फिल्म निर्माता सिनेमैटोग्राफ अधिनियम के तहत हाई कोर्ट में अपील दायर करके संशोधन समिति के आदेश को चुनौती दे सकता है।
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निर्माता ने तर्क दिया कि संशोधन समिति का फैसला निर्माताओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि सीबीएफसी ने मनमाने तरीके से फिल्म को रिलीज़ करने की अनुमति देने से पहले एक निजी व्यक्ति (मुख्यमंत्री आदित्यनाथ) से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) मांगा था।
याचिकाकर्ता ने कहा कि बोर्ड निजी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का संरक्षक नहीं है। पीठ ने कहा कि यद्यपि अपील दायर करने का एक वैकल्पिक उपाय उपलब्ध है, फिर भी उसे यह देखना होगा कि क्या वर्तमान रिट याचिका विचारणीय है। उसने सीबीएफसी की खिंचाई करते हुए कहा कि वह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करने में विफल रही है। इसके बाद न्यायाधीशों ने कहा कि वे निर्माता की याचिका पर आदेश पारित करने से पहले फिल्म देखेंगे तथा पुनरीक्षण समिति की आपत्तियों पर विचार करेंगे।
(इंडियन एक्सप्रेस के लिए ओमकार गोखले की रिपोर्ट)