Bhagwant Mann in Chennai: पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान तमिलनाडु के दौरे पर हैं और मंगलवार को सुबह तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन के साथ चेन्नई के मायलपुर में स्थित सेंट जोसेफ प्राइमरी स्कूल पहुंचे। यहां दोनों ही मुख्यंत्रियों ने पंक्तियों में बैठे छात्रों को उपमा परोसा। कुछ इसी तरह शहरी इलाकों के सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में प्राथमिक स्कूलों में मुख्यमंत्री नाश्ता योजना का विस्तार हुआ। भगवंत मान ने तमिलनाडु सरकार की इस योजना की काफी तारीफ की और इसे पंजाब में लागू करने के बारे में विचार करने की बात भी कही

इस दौरान सीएम स्टालिन से ने अशोक नगर के एक स्कूल के अपने पहले के दौरे को याद किया और कहा कि उन्हें पता चला था कि बच्चे घर से बिना खाना खाए स्कूल जा रहे हैं। इसीलिए उन्होंने यह योजना शुरू की। स्टालिन ने कहा कि ये कोई खर्च नहीं बल्कि सामाजिक निवेश है। स्कूल के सभी दिनों में, किसी भी बच्चे को क्लास में में खाली पेट नहीं बैठना चाहिए।

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सीएम मान ने योजना की तारीफ में क्या कहा?

चेन्नई में आयोजित कार्यक्रम में, पंजाब के मुख्यमंत्री मान ने कहा कि दोपहर के भोजन का कार्यक्रम मूल्यवान तो है, लेकिन कामकाजी महिलाओं को अभी भी नाश्ता तैयार करने के लिए दो घंटे पहले उठना पड़ता है। ऐसे में यह कार्यक्रम उस बोझ को कम करता है। तमिलनाडु सरकार ने 2025-26 में इस योजना के लिए 600.25 करोड़ रुपये निर्धारित किए हैं।

क्या है तमिलनाडु सरकार की ये योजना?

तमिलनाडु की इस योजना की बात करें तो सरकारी जानकारी के मुताबिक इस योजना का विस्तार कस्बों और शहरों में 2,430 सरकारी सहायता प्राप्त प्राथमिक स्कूलों को कवर करता है, जिससे कक्षा 1 से 5 तक के 3.06 लाख छात्रों को खाना मिलता होते हैं। कुल मिलाकर, यह योजना अब 34,987 स्कूलों के 17.53 लाख बच्चों तक पहुंचती है।

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बता दें कि इस कार्यक्रम की घोषणा सबसे पहले मई 2022 में विधानसभा में की गई थी और उसी साल सितंबर में डीएमके संस्थापक सीएन अन्नादुरई की जयंती पर मदुरै में इसका शुभारंभ किया गया था। तब से इसका विस्तार लगातार होता रहा है। फरवरी 2023 में निगम और नगर निगम के स्कूलों तक, अगस्त 2023 में सभी सरकारी स्कूलों तक, और जुलाई 2024 में ग्रामीण सहायता प्राप्त स्कूलों तक किया गया था। योजना का जब विश्लेषण किया गया तो यह सामने आया कि इसकी वजह से स्कूलों में छात्रों की संख्या बञ़ी है। इसके अलावा बच्चों की माताओं को खाना बनाने से राहत मिली है।

योजना की हो रही है जमकर तारीफ

मंगलवार के कार्यक्रम में, एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन की निदेशक सौम्या स्वामीनाथन ने इस योजना की “विज्ञान-आधारित और साक्ष्य-आधारित” बताते हुए इसकी सराहना की और स्वास्थ्य एवं शिक्षा पर इसके प्रभाव का उल्लेख किया। उन्होंने पोषण संबंधी परिणामों को बेहतर बनाने के लिए बाजरे और सब्जियों के मौजूदा उपयोग के साथ-साथ मोरिंगा के पत्तों के पाउडर को भी शामिल करने का सुझाव दिया।

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इस योजना का बच्चों की उपस्थिति पर प्रभाव 2023 की शुरुआत में ही दर्ज किया गया था, जब राज्य योजनाकारों ने लाभार्थी स्कूलों की तुलना पड़ोसी स्कूलों से की थी। अध्ययन किए गए 1,543 स्कूलों में से, छह को छोड़कर सभी में उपस्थिति में वृद्धि देखी गई। 1,319 स्कूलों में, 2022 के मध्य और 2023 की शुरुआत के बीच यह वृद्धि स्पष्ट थी। 1,086 स्कूलों में, उपस्थिति 20% तक बढ़ी। 22 स्कूलों में, यह वृद्धि 40% से अधिक रही।

ज्यादा काम की है नाश्ते वाली योजना

चार जिलों यानी तिरुपथुर, पेरम्बलुर, अरियालुर और तिरुवरुर में लागू हुई इस योजना के बाद हर स्कूल में सुधार देखे गए हैं। एक से दो किलोमीटर के दायरे में स्थित 414 पड़ोसी स्कूलों की तुलना में, 77% लाभार्थी स्कूलों में सकारात्मक रुझान देखा गया। 2023 में अध्ययन जारी होने के दौरान, तत्कालीन वित्त मंत्री पलानीवेल थियागा राजन ने कहा कि नामांकन बढ़ाने में दोपहर के भोजन को श्रेय दिया गया है, और अध्ययन से पता चलता है कि नाश्ते की योजना दोपहर के भोजन से अधिक महत्वपूर्ण साबित हो रही है।

समझिए योजना का राजनीतिक पहलू

योजना के राजनीतिक पहलू की बात करें तो यह योजना तमिलनाडु में उस राजनीतिक परंपरा को भी आगे बढ़ाती है जिसने आधी सदी तक उसके कल्याणकारी राज्य को आकार दिया है। भोजन या सामान देने का वादा करने की प्रथा 1967 के विधानसभा चुनावों से चली आ रही है, जब अन्नादुरई ने गरीबी और भुखमरी से लड़ने के लिए 1 रुपये में तीन सेर (3.7 किलोग्राम) चावल देने का वादा किया था। 1989 के राज्य चुनावों में, DMK ने सभी राशन कार्डधारकों को 5 किलो चावल देने का वादा किया था। 2006 में, AIADMK ने परिवारों को 2,000 रुपये नकद सहायता की पेशकश की, जबकि DMK ने खेतिहर मजदूरों को रंगीन टेलीविजन और दो एकड़ कृषि भूमि देने का वादा किया।

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2011 के चुनावों में DMK ने छात्रों को मुफ्त लैपटॉप, एक ग्राइंडर या मिक्सी और हर घर के लिए 35 किलो चावल देने का वादा किया, जबकि AIADMK ने कक्षा 11 और 12 के छात्रों को मुफ्त लैपटॉप, एक पंखा, एक मिक्सी और 20 किलो चावल देने का वादा किया। जीत के बाद, दिवंगत अन्नाद्रमुक नेता जे. जयललिता ने लैपटॉप और अन्य सामान वितरित किए, लेकिन उन्हें “अम्मा” करार दिया। 2016 में, अन्नाद्रमुक ने एक कदम और आगे बढ़ते हुए सभी राशन कार्डधारकों को मुफ्त मोबाइल फोन, घरों में 100 यूनिट मुफ्त बिजली और गरीबों के लिए गाय और बकरी योजना का वादा किया। गौरतलब है कि उस साल द्रमुक ऐसे वादों से दूर रही।

दोपहर के भोजन की योजना में भी समय के साथ, DMK और AIADMK दोनों ने इन प्रतिबद्धताओं को आगे बढ़ाया। दिवंगत DMK प्रमुख करुणानिधि ने 1989 में दोपहर के भोजन में अंडे, 2007 में हफ़्ते में तीन अंडे और 2010 तक पाँच अंडे शामिल किए, साथ ही शाकाहारियों के लिए केले भी दिए गए। बाद में जयललिता ने चावल वाली डिश की योजना की शुरुआत की।

खाने की क्वॉलिटी के लिए क्या हैं नियम?

गुणवत्ता संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिए नाश्ते और दोपहर के भोजन की योजनाओं ने अब दो मॉडल अपनाए हैं। शहरों में साझा क्लाउड किचन की मदद ली गई है। यहां ऑटोमैटिक खाना पकाने से एकरूपता सुनिश्चित होती है, और गाँवों में स्वयं सहायता समूह, जहाँ माता-पिता स्वयं बच्चों के लिए खाना बनाते हैं। भोजन की लागत प्रति छात्र लगभग 12.75 रुपये है, जिसमें उपमा, पोंगल, सेमिया और रवा केसरी के बदलते मेनू शामिल हैं।

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बच्चों के लिए क्यों अहम है ये योजना?

नाश्ता योजना के विस्तार के पीछे एक गहरी स्वास्थ्य चिंता भी छिपी होने की संभावना है। तमिलनाडु के बच्चों में एनीमिया अभी भी व्यापक रूप से फैला हुआ है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5, 2019-21 तक) में पाया गया कि 6-59 महीने की उम्र के 57.8% बच्चे एनीमिया से पीड़ित थे। अधिक विशिष्ट अध्ययनों से पता चलता है कि 5-14 साल के स्कूली बच्चों में यह दर 50% से ज़्यादा है, और लड़कियाX इससे काफ़ी ज़्यादा प्रभावित हैं। पश्चिमी और दक्षिणी ज़िलों में, स्कूल में दोपहर के भोजन की योजना के बावजूद यह आंकड़ा 60% से ज़्यादा है।

शोधकर्ता इस निरंतरता का कारण आहार में कम विविधता को मानते हैं। प्रतिदिन चार से कम खाद्य समूहों का सेवन करने वाले बच्चों में विविध आहार लेने वाले बच्चों की तुलना में एनीमिया होने की संभावना लगभग तीन गुना अधिक थी। अन्य अध्ययनों ने विटामिन ए, ज़िंक और आयरन की कमी को उजागर किया है, जो चावल से बने भोजन की सीमाओं की ओर इशारा करते हैं। स्कूल लंच योजना के क्रियान्वयन से परिचित एक वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारी ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि पोषण विशेषज्ञों ने पाया है कि स्थानीय रूप से उपलब्ध, पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों को स्कूल के भोजन में शामिल करने से आहार विविधता स्कोर और बच्चों की सूक्ष्म पोषक तत्वों की स्थिति में सुधार होता है।

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