राकेश सोहम्
भाई के साथी ने खबर दी कि पिछली रात उन्होंने नववर्ष के आगमन की खुशी में शराब का नशा किया था और फिर नए साल की सुबह तेज रफ्तार मोटरसाइकिल से घर की ओर लौटते समय घर से थोड़ी दूर पर ही पेड़ से टकरा गए। वे बहुत देर तक घायल अवस्था में पड़े रहे, फिर किसी ने उन दोनों को अस्पताल तक पहुंचाया। तब तक काफी देर हो चुकी थी।
अधिक खून बह जाने के कारण मित्र के भाई को बचाया नहीं जा सका। इस घटना सबसे दुखद पक्ष यह था कि अपने घर के सामने, अपनों के इतने करीब होते हुए भी मदद नहीं मिल सकी। उसका परिवार अनहोनी से अनजान उसके लौटने की प्रतीक्षा करता रहा!
कुछ दिन हुए, शहर में दो सांड़ों ने झगड़ते हुए मेरी कार को क्षतिग्रस्त कर दिया। कार में सुधार कार्य के लिए मुझे कार के गैराज जाना पड़ा। वहां का पूरा परिसर क्षतिग्रस्त कारों से भरा पड़ा था। यह जानकार हैरानी हुई कि उनमें से लगभग पनचानबे से अठानबे फीसद कारें एकदम नई थीं।
ऐसा लगता था, मानो कार शोरूम से निकली और दुर्घटनाग्रस्त हो गई। कर्मचारियों से जो जानकारी मिली, वह और भी हैरान करने वाली थी। अधिकतर क्षतिग्रस्त कारें किसी नौसिखिया चालकों द्वारा नहीं, बल्कि नियमित चालकों द्वारा चलाई जा रहीं थीं। नौसिखिया चालक तो फिर भी बहुत सावधानी से चलाते हैं, लेकिन खिलंदड़ चालक नएपन की होड़ में वाहनों को बेतहाशा दौड़ाते हैं और दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं।
किसी भी वाहन के परिचालन में उसकी गति पर नियंत्रण रखना सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होता है। इसके उलट नए वाहन का चालक नएपन के नशे में उसकी गति से खिलवाड़ करते हैं। नए वाहन के परिचालन में चैतन्यता जरूरी है। उसकी नियंत्रण प्रणाली को जानना और समझना आवश्यक होता है। यह बात धीरे-धीरे समझ में आती है।
वाहन के नियमित प्रचालन से ‘हाथ रम’ जाते हैं। वाहन की नियंत्रण प्रणाली की आदत हो जाती है। विज्ञान की भाषा में इसे ‘रिफ्लेक्स एक्शन’ में वाहन पर नियंत्रण हो जाना कहा जाता है। अचानक आई कठिन परिस्थितियों में ऐसा चालाक सहज ही वाहन पर नियंत्रण रख पाता है और दुर्घटना की संभावनाएं बहुत कम हो जाती हैं ।
बहरहाल, नएपन की होड़ आज पूरी दुनिया में दिखाई देती है। फिर चाहे नववर्ष का आगमन हो, नव गृह-प्रवेश हो, नया वाहन या घर की कोई वस्तु खरीदी हो, घर में नए सदस्य का आगमन हुआ हो या फिर शादी के साथ नवजीवन की शुरुआत हुई हो, सभी स्थितियों में अजब-सा जोश और सरगर्मी महसूस की जाती है।
नववर्ष आ रहा है, नया साल आ गया, नव वर्ष की बधाई, हैप्पी न्यू ईयर जैसी बधाइयां बांटते लोग उतावले हुए जाते हैं। इकतीस दिसंबर की रात्रि घड़ी के कांटे ज्यों ही बारह से आगे सरकते हैं, लोग नएपन के नशे में झूम उठते हैं।
हालांकि चिंतक मानते हैं कि समय कभी नया या पुराना नहीं होता। यह मनुष्य ही है, जिसने समय को कालखंडों में बांट रखा है। एक काल खंड से नए में प्रवेश कोई नई बात नहीं है। यह तो हर पल हो रहा है। जब हम अपने देश में नव वर्ष की तैयारी कर रहे होते हैं, ठीक उसी समय पृथ्वी के किसी और कोने में लोग नव वर्ष में प्रवेश कर चुके होते हैं। कुछ हमारे बाद भी नववर्ष के आगमन की प्रतीक्षा में होते हैं।
कुल मिलाकर समय तो सतत् है, स्थिर है। इसी मूल बिंदु के आसपास, समय-विज्ञान पर आधारित ताजा फिल्म ‘जेएल-50’ बड़ी ही रोचक है। विज्ञान भी यह मानता है कि समय स्थिर है और एक काल-खंड से दूसरे में जाना संभव है। आज का व्यक्ति पिछली सदी में बिताए समय में घूम कर आ सकता है!
बावजूद इसके लोग अपने उतावलेपन को छोड़ने को राजी नहीं हैं। कुछ समय पहले पूर्णबंदी के दौर में एक नव युगल परिणय सूत्र में बंधा और उपहार में मिली नई कार से ही हनीमून पर निकल गया। लेकिन दुर्घटना का शिकार हो गया। वह तेज रफ्तार कार चलाते हुए निर्माणाधीन पुलिया के किनारे बने वैकल्पिकमार्ग से चूक गए और उनकी कार अनियंत्रित होकर निर्माणाधीन पुलिया में जा गिरी। नव युगल बुरी तरह घायल तो हुए ही, लड़के को अपने दोनों पैर से हाथ धोना पड़ा!
ऐसा नहीं है कि नया हमेशा दुखदाई ही होता है। नया अमूमन खुशियों और जोश से भरा होता है। नई फिल्म के लिए दर्शक पहले दिन, पहले शो के लिए क्या-क्या जुगत नहीं भिड़ाते। दर्शक टिकट खिड़कियों पर जोश में अपना होश खो बैठते हैं और बात आपसी झगड़े तक पहुंच जाती है। ऐसे बेमतलबी जोश में होश खोना ठीक नहीं है। इससे न केवल दूसरों को नुकसान होता है, बल्कि खुद की जान भी खतरे में पड़ जाती है। क्या हमें नववर्ष में भी पूरे होशोहवास के साथ प्रवेश नहीं करना चाहिए?