विवेक सक्सेना
नई दिल्ली। अपने मंत्रिमंडल के पहले विस्तार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने निजी निष्ठा, कार्य क्षमता, नेताओं को दिलाए गए भरोसे व आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर जातीय व क्षेत्रीय समीकरण को ध्यान में रखा है। खासतौर से मनोहर पर्रिकर और सुरेश प्रभु को कैबिनेट में शामिल कर उन्होने यह संदेश दिया है कि उनके लिए मंत्री की कार्यकुशलता व स्वच्छ छवि सर्वोपरि है।
रविवार को हुए इस विस्तार में मनोहर पर्रिकर और सुरेश प्रभु को शामिल किया जाना यह बताता है कि मोदी पिछली बातों को कितना ध्यान में रखते हैं। पर्रिकर भाजपा के अकेले ऐसे नेता हैं जो कि मोदी के साथ तब कंधे से कंधा मिला कर उनकी पैरवी करते रहे जबकि कोई उनके पक्ष में बोलने तक के लिए तैयार नहीं था। इसे महज संयोग ही कहा जाएगा कि गोवा और वहां के पूर्व मुख्यमंत्री मोदी के लिए बहुत शुभ साबित हुए हैं।
गुजरात के 2002 के दंगों के बाद गोवा की ही राष्ट्रीय कार्यकारणी में उनका इस्तीफा लिए जाने की पूरी तैयारी हो चुकी थी पर ऐन मौके पर लालकृष्ण आडवाणी और प्रमोद महाजन द्वारा बचाव किए जाने से उनकी कुर्सी बच गई। पिछले साल जून में गोवा की ही राष्ट्रीय कार्यकारणी में उनके प्रधानमंत्री बनने का मार्ग तब प्रशस्त हुआ जब उन्हें लोकसभा चुनाव के प्रचार का प्रभारी बना दिया गया था। जब आडवाणी ने इस पर अपना विरोध जताया तो मनोहर पर्रिकर ने कहा था कि आडवाणी तो सड़े हुए अचार जैसे हो गए हैं।
नरेंद्र मोदी ने गोवा से ही अपने चुनाव प्रचार की शुरुआत की और प्रधानमंत्री बनने के बाद पहला दौरा इसी राज्य का किया, जब वे वहां युद्धपोत विक्रमादित्य को राष्ट्र को सर्म्पित किए जाने के समारोह में हिस्सा लेने गए। उनका और पर्रिकर के कामकाज का तरीका एक जैसा है। यानी वे भी देर रात तक काम करते हैं। वे देश के पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो आइआइटी के इंजीनियर हैं। माना जा रहा है कि इस बार उन्होंने अपने सबसे विश्वसपात्र नेता को मंत्रिमंडल में लिया है और उनकी हैसियत बिना कहे तीसरे नंबर की होगी। दूसरा नंबर गृहमंत्री राजनाथ सिंह का माना जाता है।
यही स्थिति सुरेश प्रभु की है जिनकी छवि काफी साफ-सुथरी है। शिवसेना नेता उद्धव उनको जरा भी पसंद नहीं करते हैं। बाल ठाकरे ने राजग की पिछली सरकार में वाजपेयी के लाख चाहने के बावजूद उन्हें मंत्रिमंडल से हटवा दिया था। इस बार भी शिवसेना उनकी जगह अनिल देसाई को अपने कोटे का मंत्री बनवाना चाहती थी। मगर मोदी ने उसकी जरा भी परवाह न करते हुए प्रभु को भाजपा में लाने के बाद कैबिनेट में शामिल कर लिया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के विश्वसनीय सहयोगी और कुशल रणनीतिकार जगत प्रकाश नड्डा का केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होना, उनकी योग्यता और उस खासियत का नतीजा है जिसमें वह पर्दे के पीछे काम करना पसंद करते हैं। विनम्र स्वभाव वाले और कालेज जीवन में चर्चित छात्र नेता रहे नड्डा बड़ी चुनौतियों का समाधान करने वालों में गिने जाते हैं। वे भाजपा अध्यक्ष पद के मजबूत दावेदार थे लेकिन इस साल के शुरू में इस पद की दौड़ में पिछड़ने के बाद उन्होंने शाह को पूरा समर्थन दिया।
मोदी और शाह के साथ साथ सर्वाधिक प्रभावशाली तीन लोगों की तिकड़ी में शामिल रहा यह नेता पार्टी के सभी बड़े निर्णय लेने की प्रक्रिया का हिस्सा रहा है। कहा जाता है कि वे पार्टी और सरकार के बीच एक पुल की भूमिका भी निभाएंगे। उनको संघ का भी पूरा समर्थन रहा है और भाजपा के सभी प्रमुख नेताओं के साथ उनके अच्छे संबंध हैं। पटना में दो दिसंबर 1960 को जन्मे नड्डा पिछले कुछ बरसों में हिमाचल प्रदेश की एक प्रभावी राजनीतिक हस्ती के तौर पर उभरे। वे राज्यसभा में आने से पहले हिमाचल प्रदेश में विधायक थे।
बिना शर्त भाजपा में शामिल हुए हरियाणा के कद्दावर जाट नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह के साथ किस्मत ने कई बार दगा किया लेकिन इस बार वक्त उन पर मेहरबान रहा और वह भाजपा की अगुआई वाली राजग सरकार में मंत्री बनने में सफल रहे। 2004 में वह हरियाणा के मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में थे, लेकिन बाजी भूपेंद्र सिंह हुड्डा के हाथ रही। 2010 में मनमोहन सिंह सरकार में भी अंतिम क्षणों में वे मंत्रिमंडल में शामिल होने से रह गए।
पूर्व कांग्रेसी नेता बीरेंद्र सिंह का मोदी सरकार में शामिल होना उनके लंबे राजनीतिक करियर का एक बेहद दुर्लभ क्षण है। उन्हें हुड्डा और इंडियन नेशनल लोकदल के ओम प्रकाश चौटाला जैसे जाट नेताओं की छाया में रहने को मजबूर होना पड़ा था। लेकिन इस बार हरियाणा विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा दांव चला और कांग्रेस से चार दशकों का नाता तोड़ कर भाजपा का दामन थाम लिया। यह दांव उनके लिए फायदेमंद रहा और भाजपा के राज्य की सत्ता में आने के साथ ही उनकी पत्नी भी विधायक का चुनाव जीतने में सफल रहीं।