जम्मू कश्मीर पूर्ण राज्य के अंतिम राज्यपाल और केंद्र शासित प्रदेश के पहले उपराज्यपाल रहे सत्यपाल मलिक का आज निधन हो गया है। वो लंबे समय से बिहार चल रहे थे। जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल के बाद मलिक मेघालय के राज्यपाल बने। मेघालय के राज्यपाल रहने के दौरान ही ये केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ बागी हो गए थे।

जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक एक बार फिर चर्चा में हैं। बीते कुछ समय पहले कश्मीर घाटी स्थित जलविद्युत परियोजना से संबंधित कथित भ्रष्टाचार मामले में सीबीआई ने सत्यपाल मलिक और सात अन्य लोगों के खिलाफ चार्जशीट फाइल की गई थी। एक सीबीआई अधिकारी ने बताया कि अभी तक सत्यपाल मलिक से गवाह के तौर पर पूछताछ की जा रही थी। कश्मीर के उपराज्यपाल पद से हटने के बाद सत्यपाल मलिक ने इस कथित भ्रष्टाचार के बारे में बात की थी। बीजेपी और मोदी सरकार के खिलाफ आए दिन मुखर रहने वाले मलिक का राजनीतिक सफर काफी लंबा रहा है।

कौन हैं सत्यपाल मलिक?

78 वर्षीय मलिक ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1968-69 में छात्र नेता के तौर पर की थी। इसके बाद उन्होंने चौधरी चरण सिंह से निकटता की वजह से उन्होंने 1974 में चुनावी राजनीति में प्रवेश किया और बागपत से विधानसभा का चुनाव जीतकर पहली बार विधायक बने। बाद में चरण सिंह के साथ ही लोक दल में शामिल हो गए। उन्हें चरण सिंह ने पार्टी का महासचिव बनाया 1980 में मलिक लोक दल की ओर से राज्यसभा पहुंचे। वहां भी ज्यादा देर नहीं रुके साल 1984 में मलिक कांग्रेस की रथ पर सवार होकर 1986 में एक बार फिर राज्यसभा पहुंचे।

वीपी सिंह की सरकार में एक बार मंत्री बने मलिक

लेकिन राजीव गांधी के कार्यकाल के दौरान बोफोर्स घोटाले के बाद 1987 में कांग्रेस से इस्तीफा देकर वीपी सिंह के नेतृत्व वाले जनता दल में मलिक शामिल हो गए। 1989 में वो जनता दल के टिकट पर अलीगढ़ लोकसभा से चुनाव जीतकर मलिक ने संसदीय मामलों और पर्यटन के लिए केंद्रीय राज्यमंत्री के रूप में शपथ ली।

साल 2004 में मलिक अटल बिहारी के नेतृत्व वाली भाजपा में शामिल हो गए हालांकि लोकसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में मलिक ने बागपत से रालोद प्रमुख अजीत सिंह से हार का सामना किया। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान मलिक को भूमि अधिग्रहण विधेयक पर विचार करने वाली संसदीय टीम का प्रमुख नियुक्त किया गया। हालांकि मलिक के इस पैनल ने विधेयक के खिलाफ अपनी राय दी और जिसके बाद सरकार ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया।

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बीजेपी में कई वरिष्ठ पदों पर काम करने के बाद मोदी सरकार ने अक्टूबर 2017 में सत्यपाल मलिक को बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया। करीब एक साल तक बिहार में काम करने के बाद उनको अगस्त 2018 में जम्मू-कश्मीर राज्यपाल बनाकर भेज दिया गया। उनके जम्मू-कश्मीर कार्यकाल के दौरान ही मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 को समाप्त कर दिया था। हालांकि मलिक को नवंबर 2019 में कश्मीर से हटाकर गोवा और फिर मेघालय का राज्यपाल बना दिया गया।

ऐसा माना जाता है कि सरकार के इन फैसलों के बाद मलिक “परेशान” हो गए थे और खुद को जाट नेता के रूप में पुनर्जीवित करने के बारे में सोचने लगे थे। लेकिन उनके राजनीतिक सहयोगियों का कहना है कि मलिक हमेशा से ही मुखर रहे हैं। यहां तक कि एक सक्रिय राजनीतिक के रूप में भी उन्होंने इसी तरह काम किया है।

अपने बयानों से करते रहे हैं बीजेपी सरकार को असहज

बिहार के राज्यपाल के रूप में, जिस पद पर मलिक ने 2017 में कार्यभार संभाला था, उस समय उन्होंने राज्य के सभी राजनेताओं पर बीएड कॉलेजों के मालिक होने का आरोप लगाया था। उस समय बिहार में बीजेपी-जदयू गठबंधन का शासन था।

नवंबर 2018 में जब मलिक जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल थे, तब विधानसभा भंग करते हुए मलिक ने कहा था कि अगर वह दिल्ली की ओर देखते तो उन्हें सज्जाद लोन के नेतृत्व वाली सरकार स्थापित करनी पड़ती और इतिहास उन्हें एक “बेईमान आदमी” के रूप में याद रखता।

मेघालय के राज्यपाल रहते हुए मलिक ने कश्मीर जलविद्युत परियोजना में भ्रष्टाचार का दावा किया था और इसके बाद उन्होंने यह भी कहा था कि केंद्र सरकार पुलवामा हमले में जवाबदेही तय करने में विफल रही है।

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कश्मीर में आतंकियों द्वारा आम नागरिकों को निशाना बनाए जाने की खबरों के बीच तत्कालीन मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा था कि उनके कार्यकाल में ऐसी घटनाएं कभी नहीं हुई थीं। इसके साथ ही उन्होंने जम्मू-कश्मीर में आरएसएस के एक पदाधिकारी पर का आरोप लगाया था। मलिक ने कहा था, “जम्मू-कश्मीर में मेरे सामने दो फाइलें आईं। उनमें से एक अंबानी से संबंधित थी, दूसरी आरएसएस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी से संबंधित थी। सचिवों में से एक ने मुझे बताया कि ये धोखाधड़ी वाली फाइलें हैं, लेकिन उसने यह भी कहा कि आप दोनों सौदों में से प्रत्येक में 150 करोड़ रुपये प्राप्त कर सकते हैं। मैंने यह कहते हुए प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया, ‘मैं पांच कुर्ते लेकर आया हूं और उन्हीं के साथ जाऊंगा’।”

मलिक के इस बयान के बाद जब बड़ा विवाद खड़ा हुआ तो जम्मू-कश्मीर के मौजूदा उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने इस पूरे मामले की सीबीआई जांच के आदेश दे दिए। सीबीआई ने इसके बाद दो एफआईआर दर्ज की और कई जगहों पर छापेमारी की। जिसके बाद मलिक समेत कई लोगों से पूछताछ की गई।

किसानों के मामले पर मोदी सरकार के खिलाफ रहे मलिक

फरवरी 2021 के बाद मलिक खुलकर केंद्र की आलोचना करने लगे थे। उसी महीने इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने नवंबर 2020 से चल रहे कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों से निपटने के केंद्र के तरीके के खिलाफ बात की। मलिक ने कहा, “किसानों को अपमानित करके वापस नहीं भेजा जा सकता। आप उन्हें अपमानित करके विरोध प्रदर्शनों से वापस नहीं भेज सकते। आपको उनसे बातचीत करनी चाहिए।”

इस इंटरव्यू के एक महीने बाद मलिक ने बागपत में एक सभा में सार्वजनिक रूप से यह मुद्दा उठाया और कहा कि ऑपरेशन ब्लू स्टार की तरह सिखों की ओर से भी प्रतिक्रिया हो सकती है। नवंबर 2021 में जयपुर में ‘ग्लोबल जाट समिट’ को संबोधित करते हुए मलिक ने कहा, “देश ने कभी इतना बड़ा विरोध प्रदर्शन नहीं देखा जिसमें 600 लोग शहीद हो गए हों। यहां तक ​​कि अगर कोई जानवर भी मर जाता है तो दिल्ली के नेता शोक संदेश जारी करते हैं। लेकिन 600 किसानों की मौत पर कोई प्रस्ताव भी पारित नहीं किया गया।”

अक्टूबर 2022 में मेघालय के राज्यपाल के रूप में अपना कार्यकाल पूरा होने पर मलिक ने यूपी के बुलंदशहर में एक सभा को संबोधित किया, जहां उन्होंने सेना की अग्निपथ योजना की आलोचना की। आईएएनएस की एक रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने कहा कि सरकार युवाओं के जीवन के साथ खिलवाड़ कर रही है।