महाराष्ट्र की सियासत में काफी उठापटक दिखाई दे रही है। जहां अजित पवार ने 68 वर्षीय सुनील तटकरे को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के महाराष्ट्र अध्यक्ष के रूप में चुना है। वहीं  राकांपा प्रमुख शरद पवार ने पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए  सुनील तटकरे और  प्रफुल्ल पटेल को निष्कासित करने की घोषणा की है। 

सुनील तटकरे महाराष्ट्र के नए डिप्टी सीएम अजित पवार के काफी करीबी माने जाते हैं। इस सियासी घटनाक्रम में उनका नाम काफी चर्चा में दिखाई दे रहा है। अजित पवार ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाकर एक तीर से दो निशाने साधने के संकेत दिए हैं लेकिन शरद पवार ने अपने पावर के उपयोग से उनके इस फैसले को हल्का साबित कर दिया है। अजित पवार ने कोशिश की थी कि वह अपने इस फैसले से ओबीसी वोटों को साध लेंगे और दूसरा पार्टी में अपनी पकड़ को साबित करेंगे।

क्या रहा है सुनील तटकरे का राजनीति बैकग्राउंड

अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) समुदाय से आने वाले सुनील तटकरे एनसीपी  के शीर्ष नेताओं में से हैं। एक महीने पहले ही शरद पवार द्वारा उन्हें राकांपा का राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त किया गया था।  लेकिन एक महीने से भी कम समय में राज्य के राजनीतिक हालात एकदम बदल गए हैं।  

सुनील तटकरे की बेटी अदिति तटकरे उन नौ राकांपा नेताओं में शामिल हैं, जिन्होंने रविवार को कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ ली है। वह भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) की जांच का भी सामना कर रहे हैं। एसीबी ने 2017 में में सिंचाई विभाग में करप्शन से जुड़ा हुआ एक आरोप पत्र दायर किया था उसमें तटकरे का भी नाम था। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने भी इसी मामले के सिलसिले में 2012 में तटकरे के खिलाफ प्रारंभिक जांच शुरू की थी।

सुनील तटकरे ने हमेशा महाराष्ट्र की राजनीति के उतार-चढ़ाव में शामिल रहना पसंद किया है।  पार्टी ने उन्हें 2014 में रायगढ़ से लोकसभा चुनाव लड़वाया था जब वह शिवसेना के मौजूदा सांसद अनंत गीते से हार गए थे।  इस बीच उनकी विधानसभा सीट उनके भतीजे अवधूत के पास चली गई थी। पांच साल बाद तटकरे ने फिर से आम चुनाव लड़ा और वह जीत गए।

कांग्रेस से की थी सियासी शुरुआत

सुनील तटकरे का जन्म 10 जुलाई 1955 को सुतारवाड़ी कोलाड में हुआ था और उन्होंने पुणे के फर्ग्यूसन कॉलेज से इंटर साइंस तक की पढ़ाई की। 1984 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होने से पहले उन्होंने सरकारी सड़क ठेकेदार के रूप में काम किया था।

1995 में वह कांग्रेस पार्टी के टिकट पर विधायक बने। 2004 में उन्हें खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री बनाया गया। 2008 में उन्हें ऊर्जा मंत्री और 2009 में वित्त मंत्री नियुक्त किया गया।