Bareilly I Love Muhammad Controversy: उत्तर प्रदेश के बरेली में पिछले शुक्रवार को ‘आई लव मोहम्मद’ कैंपेन के समर्थन में प्रदर्शन हुआ था, जिसमें प्रशासन से लोगों की झड़प और फिर पुलिस द्वारा भारी लाठीचार्ज के चलते माहौल काफी तनावपूर्ण हो गया था। उसके बाद से एक तरफ जहां यूपी की सियासत गर्म हुई तो दूसरी ओर बवाल के जिम्मेदारों के खिलाफ एक्शन शुरू हो गया, जिसके केंद्र में मौलाना तौकीर रजा हैं।

दरअसल, बरेली पुलिस ने इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल (आईएमसी) के अध्यक्ष मौलाना तौकीर रजा खान को हिंसा की कथित प्लानिंग करने के मामले में गिरफ्तार कर लिया है। इसके बाद उन्हें कोर्ट में पेश किया गया, जहां कोर्ट ने उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया।

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कौन है मौलाना तौकीर रजा?

बरेली पुलिस ने मौलाना तौकीर रजा पर कथित हिंसा का मास्टरमाइंड होने का आरोप लगाया है। तौकीर रजा बरेलवी सुन्नी समुदाय का एक प्रमुख चेहरा माने जाते हैं, जिनका बरेली के क्षेत्र में अच्छा खासा धार्मिक और सामाजिक प्रभाव माना जाता है। मौलाना तौकीर रजा बरेलवी संप्रदाय के संस्थापक अहमद रज़ा खान के वंशज हैं जिन्हें आला हज़रत के नाम से जाना जाता है। वह मौलाना सुब्हान रज़ा खान के छोटे भाई हैं जो बरेली दरगाह के गद्दी नशीन यानी संरक्षक हैं, यह अहमद रज़ा खान की दरगाह है।

मौलाना तौकीर रजा का राजनीतिक बैकग्राउंड

तौकीर रजा के पिता रेहान खान पहले कांग्रेस पार्टी से एमएलसी रह चुके हैं, दो दशक से अधिक समय से राजनीतिक रूप से सक्रिय हैं। साल 2001 में उन्होंने अपना स्वयं का राजनीतिक संगठन आईएमसी शुरू किया। हालांकि आईएमसी को बरेली से आगे अपनी पकड़ बनाने में संघर्ष करना पड़ा लेकिन शहर में इसका महत्वपूर्ण प्रभाव बना रहा।

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बरेली के पहले चुनाव में मिली थी सफलता

आईएमसी के राष्ट्रीय महासचिव और प्रवक्ता नफीस खान के अनुसार तौकीर कभी भी किसी मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टी में शामिल नहीं हुए हैं लेकिन उन्होंने पिछले कुछ वर्षों में कई क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दलों का समर्थन किया है। आईएमसी ने 2001 के बरेली नगर निगम चुनावों में अपनी चुनावी शुरुआत की, जब उसने कई सीटें जीतीं। हालांकि, उसके बाद से पार्टी अपना विस्तार नहीं कर पाई।

लगातार रहा राजनीतिक प्रभाव

तौकीर रजा ने उत्तर प्रदेश में विभिन्न दलों को अपनी पार्टी का समर्थन दिया। उन्होंने 2007 के राज्य विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का समर्थन किया था लेकिन बाद में समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ गठबंधन कर लिया। एक समय उन्होंने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का भी समर्थन किया था। नफीस खान ने कहा कि यह उत्तर प्रदेश की राजनीति में मौलाना तौकीर रज़ा खान के निरंतर प्रभाव और रणनीतिक भूमिका को रेखांकित करता है।

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सपा सरकार में मिली थी लालबत्ती

तौकीर रजा की पार्टी आईएमसी ने 2012 के विधानसभा चुनाव में 12 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। पार्टी भोजीपुरा विधानसभा क्षेत्र में एक सीट जीतने में भी कामयाब रही जहाँ उसके उम्मीदवार शाज़िल इस्लाम ने सपा के वीरेंद्र सिंह गंगवार को हराया था। अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली तत्कालीन सपा सरकार ने रज़ा को उत्तर प्रदेश हथकरघा निगम का उपाध्यक्ष नियुक्त किया जो राज्य मंत्री के बराबर का पद था। हालाकि, सितंबर 2014 में, उन्होंने अखिलेश सरकार पर 2013 के मुज़फ़्फ़रनगर दंगों को रोकने में विफल रहने का आरोप लगाते हुए इस पद से इस्तीफा दे दिया।

तौकीर रजा पर लगे हैं कई गंभीर आरोप

तौकीर पिछले कुछ वर्षों में कई विवादों में रहे हैं। शुक्रवार की हिंसा से जुड़े 10 में से सात मामलों में बरेली पुलिस ने उन पर अपने भाषणों के ज़रिए मुस्लिम समुदाय को भड़काने की कथित कोशिश समेत कई अन्य आरोपों में मामला दर्ज किया है। यह दूसरी बार है जब उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेजा गया है।

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जल्दी बाहर आ गए थे रजा

साल 2010 में मायावती के नेतृत्व वाली बसपा सरकार के कार्यकाल के दौरान बरेली पुलिस ने उन्हें ईद मिलादुन्नबी के जुलूस के दौरान भीड़ को हिंसा के लिए उकसाने के आरोप में गिरफ्तार किया था। इस जुलूस में कई लोग घायल हुए थे और वाहनों और दुकानों को नुकसान पहुंचा था। उस समय बरेली में सांप्रदायिक तनाव कम करने के लिए कुछ हिस्सों में कई दिनों तक कर्फ्यू लगा रहा था। पुलिस ने बाद में अदालत में एक रिपोर्ट दायर की जिसमें उनके खिलाफ जांच बंद कर दी गई और उन्हें क्लीन चिट दे दी गई।

2023 में FIR हुई थी FIR

साल मार्च 2023 में मुरादाबाद पुलिस ने शहर की एक सभा में हिंदू राष्ट्र पर उनकी टिप्पणी को लेकर कथित तौर पर समुदायों के बीच दुश्मनी बढ़ाने के आरोप में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। उन्होंने हिंदू राष्ट्र की वकालत करने वालों के खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज करने की मांग की थी। उसी वर्ष बरेली पुलिस ने तौकीर रजा को नज़रबंद कर दिया था, जब उन्होंने हरियाणा में कथित तौर पर गौरक्षकों द्वारा दो मुस्लिम युवकों की लिंचिंग के विरोध में तिरंगा यात्रा निकालने की घोषणा की थी। उन्होंने मस्जिदों और मदरसों की सुरक्षा बढ़ाने की मांग की थी। इसके साथ ही समुदायों के बीच फूट डालने की कोशिश करने वाले हिंदू संगठनों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी।

साल जून 2015 में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को पत्र लिखकर गौहत्या पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग की थी, जिससे एक बहस छिड़ गई थी। इससे पहले, 2007 में उन्होंने उस समय विवाद खड़ा कर दिया था जब उन्होंने कथित तौर पर बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन के सिर पर पांच लाख रुपये का इनाम घोषित किया था, बशर्ते दिल्ली उनके देश में प्रवेश पर रोक न लगाए।

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