Who is Harekrushna Mehatab: ओडिशा में इतिहास रचते हुए 2024 में बीजेपी ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई है और पार्टी राज्य में अपना दायरा बढ़ाने की योजनाओं पर अमल करना शुरू कर दिया है। इस बीच ही ओडिशा की मोहन चरण मांझी शासित बीजेपी सरकार ने ऐलान किया है कि पूर्व मुख्यमंत्री और दिवंगत दिग्गज नेता डॉक्टर हरेकृष्ण महताब की 125वीं जन्मजयंती पर साल भर तक राज्य में उत्सव आयोजित किए जाएंगे।

बीजेपी के सूत्र बताते हैं कि यह पार्टी द्वारा ओड़िया अस्मिता को बहाल करने के प्रयासों का हिस्सा है, यही वह मुद्दा है जिसने उसे इस वर्ष के शुरू में बीजू जनता दल (बीजद) को सत्ता से हटाने और पहली बार अपने दम पर सत्ता हासिल करने में मदद की थी। ओडिशा में बीजेपी के पास कोई ऐसा लोकप्रिय नेता नहीं है , जिसकी विरासत पर वह दावा कर सके।

कौन थे डॉक्टर हरेकृष्ण महताब?

हरेकृष्ण महताब की बात करें तो उन्हें उत्कल केसरी के नाम से जाना जाता था, जिनका 1960 के दशक के आखिर में इंदिरा गांधी से झगड़ा हो गया था और बाद में आपातकाल का विरोध करने के कारण उन्हें जेल जाना पड़ा था। मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी और केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने महताब को एक महान राष्ट्रवादी बताया है।

हरेकृष्ण महताब एक स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ ही एक विपुल लेखक और आधुनिक ओडिशा के निर्माताओं में से एक नेता माने जाते थे। उनका जन्म जन्म 21 नवंबर 1899 को भद्रक जिले (तत्कालीन बालासोर जिला) के अगरापाड़ा में कृष्ण चरण दास और तोपहा बीबी के घर हुआ था और उन्हें उनके नाना जगन्नाथ महताब, जो अगरापाड़ा के महाराजा थे, और उनकी पत्नी रानी धनी बीबी ने गोद लिया था।

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महात्मा गांधी से प्रेरित थे महताब

1918 में महताब उत्कल सम्मिलनी में शामिल हो गए, जो एक सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन था जिसकी स्थापना 1903 में समाज सुधारक मधुसूदन दास ने एक अलग ओडिशा प्रांत और उसके सामाजिक और औद्योगिक विकास के लिए अभियान चलाने के लिए की थी।

जब महात्मा गांधी ने 1920 में असहयोग आंदोलन शुरू किया, तो सम्मिलनी ने उसमें शामिल होने का फैसला किया। महताब उस समय कटक के रेवेंशॉ कॉलेज के छात्र थे, महात्मा से बहुत प्रभावित हुए और स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और कई बार अंग्रेजों द्वारा जेल भी गए।

आंदोलनों का किया नेतृत्व

महताब ने उत्कल प्रदेश कांग्रेस समिति और कांग्रेस कार्य समिति में पदों पर कार्य किया। 1920 के दशक में उन्होंने ओडिशा में प्रजा मंडल आंदोलन का नेतृत्व किया, जिसे गजट प्रजा आंदोलन के रूप में जाना जाता है, यह स्थानीय अभिजात वर्ग और रियासतों में अंग्रेजों के खिलाफ एक जन आंदोलन था।

आजादी से पहले ही महताब राज्य से संविधान सभा के लिए चुने गए। वे 1946 से 1950 तक ओडिशा के अंतिम प्रधानमंत्री और फिर 1956 से 1961 तक मुख्यमंत्री रहे। मुख्यमंत्री के रूप में महताब को 26 तत्कालीन ओडिया-भाषी रियासतों को ओडिशा में एकीकृत करने का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने 1949 में ओडिशा की राजधानी को कटक से भुवनेश्वर स्थानांतरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और महानदी पर हीराकुंड बांध सहित प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का बीड़ा उठाया।

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इंदिरा गांधी से बगावत कर बनाई थी नई पार्टी

महताब ने जवाहरलाल नेहरू के प्रथम मंत्रिमंडल के सदस्य के रूप में केंद्र में कार्य किया और 1955 में उन्हें बॉम्बे प्रांत का राज्यपाल नियुक्त किया गया। 1966 में महताब को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का उपाध्यक्ष बनाया गया। लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद प्रधानमंत्री बनी इंदिरा गांधी के साथ नीतिगत मतभेदों के बाद महताब ने उसी वर्ष कांग्रेस छोड़ दी और अपनी खुद की पार्टी, उड़ीसा जन कांग्रेस की स्थापना की।

1977 में लिया राजनीति से संन्यास

इसके बाद वे तीन बार उड़ीसा विधानसभा के लिए चुने गए और 1976 में इंदिरा गांधी के आपातकाल का विरोध करने के कारण जेल भी गए। महताब ने 1977 में सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया और 2 जनवरी 1987 को उनका निधन हो गया। 1923 में उनके द्वारा स्थापित समाचार पत्र प्रजातंत्र आज भी प्रकाशित हो रहा है और अब इसका संपादन उनके पुत्र तथा कटक से भाजपा सांसद भर्तृहरि महताब करते हैं।

इंदिरा विरोध के चलते ही नहीं मिला कांग्रेस से सम्मान

संभवतः इंदिरा के खिलाफ विद्रोह के कारण ही हरेकृष्ण महताब को कांग्रेस से वह सम्मान नहीं मिला जिसके वे हकदार थे। वे ऐसे नेता थे जिन्होंने चार दशकों से अधिक समय तक ओडिशा पर शासन किया। कांग्रेस के लिए राज्य में सबसे बड़े नेता जानकी बल्लभ पटनायक रहे, जो 13 साल तक मुख्यमंत्री रहे।

1997 में जब नवीन पटनायक ने बीजू जनता दल (बीजद) का गठन किया और मार्च 2000 में ओडिशा के मुख्यमंत्री बने, तो बीजू पटनायक को सर्वोच्च स्थान दिया गया और उन्हें अब तक के सबसे बड़े ओडिया नेता के रूप में पहचाना गया।

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BJP के लिए सहज हैं हरेकृष्ण महताब

बीजेपी के लिए महताब की विरासत पर दावा करना सहज है, इसकी वजह यह भी है कि इंदिरा के साथ उनके मतभेदों के मद्देनजर उन्हें कांग्रेस विरोध में भी आसानी होगी। आपातकाल की घोषणा के 50वें वर्ष में, बीजेपी और उसके सबसे वरिष्ठ नेताओं ने कांग्रेस को मात देने के लिए उस अवधि के दौरान नागरिक स्वतंत्रता के निलंबन और लोकप्रिय नेताओं की कैद का बार-बार हवाला दिया है।

इस साल लोकसभा चुनाव से पहले, बीजेपी ने महताब के बेटे भ्रातृहरि को, जो उस समय कटक से छह बार सांसद थे, BJD से पार्टी में शामिल करने में कामयाब रही। भ्रातृहरि महताब 1998 से लगातार कटक का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

महताब की 125वीं जयंती मनाने के लिए माझी सरकार एक स्मारक संग्रहालय स्थापित करने, उनके जन्मस्थान अगरापाड़ा में उनकी आदमकद प्रतिमा स्थापित करने और इसे एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का इरादा रखती है।