लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस छोड़ कर जाने वाले नेताओं का सिलसिला जारी है। राजस्थान के अलवर से टिकट नहीं मिलने से नाराज पूर्व कांग्रेस सांसद करण सिंह यादव ने जहां पार्टी का साथ छोड़ दिया है वहीं बारपेटा से मौजूदा सांसद अब्दुल खालिक ने भी इस्तीफा दे दिया है। खास बात यह है कि दोनों ही नेताओं का नाता पार्टी से 25 साल पुराना था और दोनों ने पार्टी से नाराजगी की वजह कांग्रेस महासचिव भंवर जितेंद्र सिंह को बताया है।
भंवर जितेंद्र सिंह असम और मध्य प्रदेश के प्रभारी हैं और कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य भी हैं। ऐसा पहली बार नहीं है कि वह सुर्खियों में आए हैं।
क्या है उन्हें दोष दिए जाने की वजह?
अलवर में दो बार के सांसद करण सिंह यादव ने इस्तीफा देने के लिए सीधे तौर पर भंवर जितेंद्र सिंह को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा—यह एक मजबूत मांग थी कि मैं लोकसभा चुनाव लड़ूं। राजाओं से लड़ने के बाद कांग्रेस ने यहां सत्ता हासिल की थी और अब वही पार्टी राजाओं के इशारों पर चल रही है, इसलिए मुझे टिकट नहीं दिया गया।”
भंवर जितेंद्र सिंह के पिता प्रताप सिंह अलवर के पूर्व शाही परिवार के वंशज थे, जबकि उनकी मां महेंद्र कुमारी, बूंदी के अंतिम राजा, महाराज बहादुर सिंह की बेटी थीं। महेंद्र कुमारी 1991 में भाजपा के टिकट पर अलवर से सांसद चुनी गई थीं।
करण सिंह यादव ने भंवर जितेंद्र सिंह पर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के साथ अपने मधुर संबंधों के कारण कांग्रेस को नष्ट करने का आरोप लगाया। मुंडावर से पहली बार विधायक बने ललित यादव को अलवर से पार्टी का लोकसभा उम्मीदवार चुने जाने के बारे में उन्होंने कहा, “एक बच्चे को आगे कर एक सीट खराब कर दी गई है।”
अब्दुल खालिक ने क्या कहा?
असम में बारपेटा के सांसद अब्दुल खालिक ने पार्टी पर जनता के मुद्दों को पीछे छोड़ आगे बढ़ जाने का आरोप लगाया और कहा कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए लोगों में स्वतंत्रता, आत्म-सम्मान और एकता की गहरी भावना होनी चाहिए, दुर्भाग्य से मुझे लगता है कि प्रदेश अध्यक्ष भूपेन बोरा और एआईसीसी महासचिव प्रभारी जितेंद्र सिंह के रवैये ने राज्य में पार्टी को खत्म कर दिया है। कांग्रेस ने ने बारपेटा से उनकी जगह दीप बायन को मैदान में उतारा है।
‘मेरे राजनीतिक करियर को बर्बाद किया’
करण सिंह यादव ने कहा—मैं साफतौर पर कह रहा हूं कि उन्होंने (भंवर जितेंद्र सिंह) ने पहले भी मेरे राजनीतिक करियर को नुकसान पहुंचाया है।” 2009 और 2019 में मौजूदा सांसद होने के बावजूद उन्हें कांग्रेस ने टिकट देने से इनकार कर दिया था और भंवर जितेंद्र सिंह को प्रत्याशी बनाया था। करण सिंह यादव पहली बार 2004 में सांसद बने थे लेकिन पार्टी ने 2009 के बाद के चुनावों में भंवर जितेंद्र सिंह को मैदान में उतारा।