एक मामले की सुनवाई के दौरान पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट ने आरोपी की सजा को घटाने का फैसला केवल क्योंकि वो पीड़ित पक्ष की मदद करने को तैयार हो गया था। सुप्रीम कोर्ट के पास सारा मसला पहुंचा तो जजों का गुस्सा भड़क गया। दो जस्टिसों की बेंच ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि इस तरह से इमोशनल होकर फैसला करने लगे तो अदालतों से पब्लिक का विश्वास ही उठ जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने कहा है कि किसी भी आपराधिक मामले में सजा सुनाते वक्त आईपीसी का खास ख्याल रखा जाना चाहिए। बेंच के तेवर इतने ज्यादा तीखे ज्यादा तीखे थे कि पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले को गलत करार देकर ट्रायल कोर्ट के फैसले को फिर से बहाल कर दिया।
ट्रायल कोर्ट ने सुनाई थी दो साल की सजा, हाईकोर्ट ने घटाकर आठ महीने किया
इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को दो साल की सजा सुनाई थी। लेकिन हाईकोर्ट के पास अपील पहुंची तो सजा को घटाकर आठ माह कर दिया गया। हाईकोर्ट दोषी की इस बात का कायल हो गया था कि वो पीड़ित पक्ष को 25 हजार रुपये की सहायता देने को तैयार हो गया था। उसकी केवल इतनी शर्त थी कि दोषी मुआवजे की रकम पहले खाते में जमा करा देगा।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने कहा कि ऐसा लगता है कि दोषी की बैकग्राउंड काफी कमजोर है। हाईकोर्ट उसे गरीब तबके का मानता है। जो उसने दो साल की सजा को घटाकर आठ महीने कर दिया क्योंकि वो दोषी के इस कदम से इमोशनल हो गया था। बेंच ने कहा कि आईपीसी में हर गुनाह के लिए सजा का प्रावधान है। अदालतों को ये बात दिमाग में बैठा लेनी चाहिए कि न्यायपालिक जनता के विश्वास पर टिकी है। हमें अपराध की प्रवृत्ति और उसके मुताबिक बनाए गए कानून का ख्याल सबसे पहले रखना चाहिए।
कानून के मुताबिक अदालतें करें फैसले, इमोशनल होकर नहीं
अदालत जब भी किसी नतीजे पर पहुंचे तो उसका आधार कानून होना चाहिए न कि इमोशंस। पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने जो किया वो न्याय के नाम पर धब्बा है। ये खारिज होता है। इस मामले में हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ पंजाब की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। सरकार का कहना था कि हाईकोर्ट ने जिस तरीके से सजा को कम किया वो हैरत में डालने वाला है।
दोषी ने लापरवाही से वाहन चलाकर ली थी एक शख्स की जान
एक्सीडेंट के इस मामले में एक शख्स ने लापरवाही से स्कार्पियों चलाते हुए एक शख्स की जान ले ली थी। ये हादसा एक एंबुलेंस को ओवर टेक करने के दौरान हुआ। हादसे में एंबुलेंस भी पलट गई। उसमें बैठे दो लोग भी चोटिल हुए। ट्रायल कोर्ट ने 279 और 304ए (लापरवाही से किसी की जान लेने) के आरोप के तहत दोषी मानकर दो साल की सजा सुनाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को गलत मान ट्रायल कोर्ट की सराहना की।