भारत के एक सेना प्रमुख थे- जनरल थिमय्या, कश्मीर में जब कबाइली-पाकिस्तानी सैनिकों ने हमला किया था, तब थिमिया ने अपनी अगुवाई में ना सिर्फ उन कबाइलियों को भगाया बल्कि इलाके पर भी फिर कब्जा जमा लिया। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, थिमिया की बहादुरी, उनकी सूझबूझ से काफी खुश थे, इतना कि पहले 1953 में उन्हें कोरिया में युनाइटेड नेशंस के न्यूट्रल नेशंस रिपैट्रिएशन कमिशन में नियुक्त किया गया, वहीं बाद में जाकर वे देश के सेना प्रमुख भी बनाए गए। अब वे सेना प्रमुख तो बने, लेकिन कहा गया कि नेहरू ने अपनी ‘निजी पसंद’ को ध्यान में रखते हए थिमिया को सेना प्रमुख का पद दे दिया, कई सीनियर दूसरे अधिकारियों को नजरअंदाज कर दिया गया। इन तमाम आरोपों के बीच एक वक्त ऐसा भी आया जब थिमिया ने सेना प्रमुख पद से इस्तीफा दे दिया। लेकिन उस पर खूब बवाल हुआ, सियासत हुई और नेहरू पर कई आरोप भी लगे। आइए जानते हैं उस किस्से के बारे में…
जब लोकसभा में गूंजा जनरल थिमय्या के इस्तीफे का मुद्दा
1 सितंबर, 1959 को जनरल थिमय्या के इस्तीफे का मुद्दा लोकसभा में गूंजा था.उनके कथित इस्तीफे के बाद अन्य सेवा प्रमुखों ने भी इस्तीफा देना शुरू कर दिया था जिसके बाद पैदा हुई गंभीर को देखते हुए कांग्रेस नेता जेबी कृपलानी ने लोकसभा में इस पर एक स्थगन प्रस्ताव (Adjournment Motion) पेश किया।
तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू उस दिन सदन में बयान देने के लिए उपलब्ध नहीं थे क्योंकि वह पालम हवाई अड्डे पर पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान की अगवानी कर रहे थे। इसके बाद गरमागरम बहस के बीच मामले को अगले दिन के लिए टाल दिया गया।
नेहरू ने कहा “विपक्ष क्यों इस इस्तीफे को लेकर उत्साहित है”
अगले दिन नेहरू ने लोकसभा में स्थगन प्रस्ताव के बारे में बात की और सदन को सूचित किया कि जनरल थिमय्या ने उनसे एक सप्ताह पहले मुलाकात की थी और कई मुद्दों पर चर्चा की थी। तब इस्तीफे जैसी कोई बात नहीं आई थी। कल जो कुछ लोकसभा में कहा गया है उसमें किसी तरह की सच्चाई नहीं है। इस दौरान प्रधानमंत्री ने कहा था कि पदोन्नति में किसी तरह का पक्षपात नहीं हुआ है।
प्रधानमंत्री नेहरू ने इस दौरान कहा कि इस्तीफे का पत्र पाकर वह हैरान रह गए थे और उन्होंने सेना प्रमुख जनरल थिमय्या पर अपना इस्तीफा वापस लेने के लिए दबाव डाला था। इस दौरान नेहरू ने तत्कालीन रक्षा मंत्री वी के कृष्ण मेनन के साथ जनरल थिमय्या के मतभेदों को पर बात करते हुए इसे “मनमौजी” बताया था और मेनन की प्रशंसा की थी। उन्होने जनरल थिमय्या की तारीफ करते हुए कहा था कि वह ( जनरल थिमय्या) बहुत अनुभवी अधिकारी हैं लेकिन मैं उनके इस्तीफे की तारीफ नहीं कर रहा हूं।
प्रधानमंत्री नेहरू के बयान का पलटवार करते हुए तब विपक्ष के नेता एनजी रंगा ने कहा, ”फिर आपने गलत आदमी को बधाई दी है. आपने उनसे इस्तीफा वापस लेने के लिए क्यों कहा है?” इस मौके पर अटल बिहारी वाजपेयी ने भी बीच में टोकते हुए कहा, “जनरल थिमय्या से इस्तीफा देने के लिए कहिए।”इसके जवाब में पंडित नेहरू ने कहा कि मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं कि विपक्ष इस मामले को लेकर क्यों इतना उत्साहित है।