वाराणसी के लोगों के साथ रूबरू होते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गला क्या रुंधा कि सोशल मीडिया उनके खिलाफ हाथ धोकर पीछे पड़ गया। मीम पर मीम बनने लगे। इस काम में सर्वाधिक इस्तेमाल घड़ियाल के कैरीकेचर्स का हुआ हालांकि एक आदमी ने उस विशालकाय क्रोकोडाइल के चेहरे की फोटो डाल दी जो अमेरिका में ही पाया जाता है। कोलकाता के एक लोकप्रिय अंग्रेजी दैनिक ने भी क्रोकोडाइल की खूब बड़ी फोटो का इस्तेमाल किया।
लोग उसी दिन से गिनाने में लगे हैं कि पदभार ग्रहण करने के बाद सात साल में प्रधानमंत्री की आंखों में कितनी बार आंसू आए हैं। इस बीच किसी ने प्रधानमंत्री का 2019 में सूरत में हुए यूथ कॉन्क्लेव में दिए उनके भाषण की वीडियो क्लिप फेसबुक पर डाल दी है जिसमें मोदी यह कहते दिख रहे हैं। कुछ लोगों का स्वभाव होता है रोते रहना…मेरा न रोने में विश्वास है न रुलाने में विश्वास है।इस वीडियो के साथ 21 मई 2014 का भी वीडियो लोग चला रहे हैं। वह संसद भवन में प्रवेश का मोदी के लिए पहला दिन था।
उन्होंने सीढ़ियों पर ही बैठकर संसद को जो प्रणाम किया कि माहौल वहीं से भावुक हो गया। आगे, भीतर जब उनको संसदीय दल का नेता चुना गया तो वे आडवाणी जी की एक बात पर सुबक पड़े। आडवाणी ने कहा था कि नरेंद्र भाई मोदी ने पार्टी पर बड़ी कृपा की है। इसी शब्द का जवाब देते हुए उनका गला रुंध गया। थोड़ा सुबके। फिर पानी पीकर बोले, भाजपा मेरी मां है। कोई बच्चा अपनी मा पर एहसान थोड़े ही करता है।
एक साल बाद फेसबुक वाले ज़ुकरबर्ग के साथ बात करते हुए वे एक बार फिर सुबक उठे थे। यह तब हुआ जब वे यह बता रहे थे कि उनकी मां दूसरे घरों में बरतन मांजने का काम करती थी। (लेकिन अगले ही दिन वाशिंग्टन पोस्ट ने मोदी के जीवनीकार नीलांजन मुखोपाध्याय के हवाले से लिख दिया कि बर्तन मांजने वाली बात का कोई प्रमाण नहीं है।
अगस्त 2016 में भी एक ऐसा क्षण आया था जब स्वामी नारायण (अक्षर धाम) संस्था के प्रमुख का निधन हो गया था। मोदी जी संत के बहुत निकट थे। उन्हें याद करते हुए वे एक बार फिर भावुक हुए थे। बड़ी मुश्किल से आंसू रोक पाए थे।
इसके बाद इसी साल नवंबर में गोवा में भाषण करते हुए उनका नोटबंदी के कारण लोगों को हुई तकलीफों को लेकर गला भर्रा गया। इसी भाषण में उन्होंने कहा था कि मुझे पचास दिन दे दो बस….। दिसंबर 2017 में गुजरात चुनाव में जीत के बाद भी भाषण करते हुए मोदी जी तीन मर्तबा भावुक हुए थे। उस दिन उन्होंने गुजरात से दिल्ली तक की यात्रा का बड़ा मार्मिक विवरण दिया था।
दिल्ली में वे 2018 में वे एक बार फिर भावुक हुए थे जब वे नेशनल पुलिस मेमोरियल का उद्घाटन कर रहे थे। उनकी पीड़ा थी कि 70 साल से यह स्मारक बनाने की सुध किसी को क्यों नहीं आई। यह तो अभी सबने अभी दो दिन पहले देखा ही है, जब मोदी वनारस से संबोधित थे।
मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि जिन कारणों से बच्चे रोते हैं, नेता भी उन्हीं कारणों से रो पड़ते हैं। बच्चों का उद्देश्य होता है कि लोग उसकी भूख, प्यास या अन्य जरूरत की ओर ध्यान दें। वैसे ही नेता को भी जनता से भावनात्मक आश्वासन पाना चाहता है। आंसू भऱ आने से एक जुड़ाव सा बनता है। यह सच है कि नेता कई बार मंच पर नाटक करते हैं।
लेकिन, कई बार नेता के आंसू नकली नहीं होते हैं। दुनिया में भावुक होकर सुबकने या रोने वाले अनेक नेता हो चुके हैं। उनमें एक चर्चिल भी थे। बिल क्लिंटन और टोनी ब्लेयर भी इस कोटि में रहे हैं। टोनी कुछ ज्यादा ही बार भावुक हुए हैं। अमेरिका में 1972 में एडमंड मस्की नाम के एक डेमोक्रेट नेता इस कदर सुबके थे कि उनके राष्ट्रपति बनने की सारी संभावनाएं खत्म हो गई थीं। उनकी भावुकता का कारण उनकी पत्नी पर लगे कुछ आरोप थे। उन्हीं को गलत ठहराते हुए आंखों में आंसू आ गए। जनता ने इन आंसुओं के कारण ही उन्हें खारिज कर दिया था।