निवेशकों से मीटिंग के दौरान रोड ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर नितिन गडकरी ने 1995 के एक किस्से को याद कर बताया कि कैसे रिलायंस की एक निविदा को खारिज करने पर शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे के साथ धीरूभाई अंबानी उनसे बुरी तरह से खफा हो गए थे। लेकिन उन्होंने किसी की परवाह नहीं की। उनके फैसले से सरकार के 2 हजार करोड़ रुपये बच गए।

निवेशकों संग कांफ्रेंस के दौरान गडकरी ने बताया कि 1995 में वो राज्य मंत्री थे। मुंबई-पुणे एक्सप्रेस वे के लिए रिलायंस का एक टेंडर आया था। उन्होंने इसे रिजेक्ट कर दिया। उनके इस कदम से न केवल शिव सेना प्रमुख और रिलायंस के तत्कालीन सर्नेसर्वा बल्कि उनके मुख्यमंत्री भी नाराज हो गए थे। उन्होंने उनसे पूछा कि ऐसा काम तुमने क्यों किया। तब उन्होंने बताया कि हम उस प्रोजेक्ट के लिए पब्लिक से पैसा जुटाएंगे। लेकिन उनकी बात पर सभी लोग उन पर जमकर हंस रहे थे।

तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर जोशी ने उसे कहा कि जो कहा है उसे करके दिखाओ। गडकरी ने बताया कि उसके बाद महाराष्ट्र स्टेट रोड डेवलपमेंट कारपोरेशन का गठन किया गया। हम लोग निवेशकों के पास लैपटाप लेकर गए। उन्हें योजनाओं के बारे में बताया। गडकरी ने कहा कि उस दौरान हमें निवेशकों के पास जाना होता था। आज का दौर अलग है जब निवेशक हमारे पास आकर योजनाएं स्वीकृत करने की गुहार करते हैं।

गडकरी ने बताया कि रिलायंस ने उस प्रोजेक्ट के लिएओ 36 सौ करोड़ रुपये की निविदा दी थी। लेकिन उन्होंने उस प्रोजेक्ट को 16 सौ करोड़ में पूरा करके दिखा दिया। यानि सरकार को सीधे दो हजार करोड़ रुपये की बचत हुई। गडकरी ने बताया कि रतन टाटा ने उनसे कहा था कि आप तो हम से भी स्मार्ट निकले। उनका कहना था कि हमें भी नहीं लगता था कि इंफ्रा प्रोजेक्ट के लिए बाजार से पैसा उगाहा जा सकता है। आज की बैठक में उन्होंने निवेशकों से कहा कि भारत में दो चीजों के बारे में कोई संदेह नहीं है। आबादी का बढ़ना और आटोमोबाइल सेक्टर की ग्रोथ।