Atal Bihari Vajpayee Birth Anniversary: आज 25 दिसंबर को देश के पूर्व पीएम प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 101वीं पुण्यतिथि है। इससे एक दिन पहले यानी बुधवार शाम वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी ने प्रधानमंत्री संग्रहालय और पुस्तकालय में उनके जीवन और योगदान पर बात की और उनके कई किस्से भी शेयर किए। इस दौरान नीरजा चौधरी ने बताया कि एक ऐसा दौर भी आया जब अटल बिहारी अपनी नई पार्टी बनाने के बारे में सोचने लगे थे।
नीरजा चौधरी ने बताया कि 1980 के दशक के उत्तरार्ध में एक ऐसा समय भी था, जब पूर्व प्रधानमंत्री ने अपनी खुद की राजनीतिक पार्टी बनाने पर विचार किया था। यह वह समय था जब आडवाणी का उदय हो रहा था और वाजपेयी 1984 में ग्वालियर से अपना चुनाव हार गए थे। बीजेपी को 1984 के लोकसभा चुनाव में महज दो सीटें आई थीं।
बीजेपी ने ही बनाया बाद में प्रधानमंत्री
हालांकि अलग पार्टी बनाने का अटल बिहारी वाजपयी नई राजनीतिक पार्टी बनाने का विचार अल्पकालिक रहा और बीजेपी के ही साथ रहने का फैसला किया, और फिर इसी पार्टी ने उन्हें प्रधानमंत्री भी बनाया। अटल बिहारी वाजपयी पहले 13 दिन, फिर 13 महीने और फिर 5 साल के पूरे कार्यकाल तक प्रधानमंत्री रहे थे।
जब अटल आडवाणी के बीच हुआ था तनाव
इसके अलावा वरिष्ठ पत्रकार ने पूर्व पीएम को लेकर एक और किस्सा शेयर किया। उन्होंने कहा कि अटल और आडवाणी के बीच दोस्ती के चर्चे खूब हैं लेकिन कभी कभार दोनों की बीच तनाव भी हो जाता था। उन्होंने कहा कि अटल आडवाणी के बीच एक ऐसा ही तनाव 1998 में हुए भारत के परमाणु परीक्षण पोखरण-2 से संबंधित है।
यह भी पढ़ें: अब ‘अटल’ नहीं मदर टेरेसा के नाम से जानी जाएगी यह स्कीम, झारखंड सरकार के इस कदम से राजनीतिक तूफान
नीरजा चौधरी ने बताया कि वाजपेयी ने इस मामले की जानकारी अपने प्रधान सचिव बृजेश मिश्रा और तीनों सेना प्रमुखों को दी थी, लेकिन अटल ने अपने सबसे करीबी माने जाने वाले आडवाणी को इसकी सूचना नहीं दी गई थी। उन्होंने आगे बताया कि कैबिनेट सहयोगियों को भारत द्वारा परमाणु परीक्षण किए जाने की सूचना केवल दो दिन पहले दी गई थी लेकिन उन्हें परीक्षण की तारीख नहीं बताई गई थी।
आडवाणी की आंख में थे आंसू
नीरजा चौधरी ने बताया कि जब वह 11 मई, 1998 को नॉर्थ ब्लॉक में आडवाणी से मिलने गईं तो उन्होंने पाया कि वह पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ जश्न मनाने के बजाय अकेले बैठे थे और बेहद दुखी दिख रहे थे। उन्होंने याद किया कि उनकी आंखों में आंसू थे क्योंकि पुराने संबंधों, कई यादगार पलों और परमाणु परीक्षण के प्रति पार्टी की दीर्घकालिक प्रतिबद्धता के बावजूद आडवाणी को इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई थी।
यह भी पढ़ें: अब्दुल कलाम नहीं अटल को राष्ट्रपति बनाना चाहती थी BJP; जानिए आडवाणी क्यों नहीं बन पाए प्रधानमंत्री?
