Mohan Bhagwat Mandir Masjid Statement: देश भर में कई जगहों पर चल रहे मंदिर-मस्जिद विवाद के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत का एक बयान बीते दिनों काफी चर्चा में रहा। इसके अलावा संसद के शीतकालीन सत्र में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के द्वारा संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव आंबेडकर को लेकर की गई टिप्पणी को लेकर भी एनडीए और विपक्षी दलों के बीच अच्छा-खासा टकराव देखने को मिला। इन दोनों ही मुद्दों पर देश के बड़े उर्दू अखबारों ने अपने संपादकीय में क्या लिखा है, आइए इस बारे में आपको बताते हैं। लेकिन उससे पहले कि मोहन भागवत ने क्या कहा था।
संघ प्रमुख भागवत ने बीते गुरुवार को पुणे में हिंदू सेवा महोत्सव में लगातार नए मुद्दे उठाकर देश में विभाजन पैदा करने को लेकर आगाह किया था। भागवत ने कहा था कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद से कुछ लोगों को यह विश्वास होने लगा है कि वे इस तरह के मुद्दों को उठाकर “हिंदुओं के नेता” बन सकते हैं। भागवत ने एक “समावेशी समाज” की वकालत की थी।
बताना होगा कि पिछले कुछ दिनों में कई मस्जिदों के नीचे मंदिर होने का दावा किया गया है। ऐसे ही मामले में यूपी के संभल में पिछले महीने हिंसा हुई थी और इसमें चार लोगों की मौत हो गई थी।
मोहन भागवत हिंदू धर्म के प्रमुख नहीं हैं जो हम उनकी बात मानें…जगदगुरु रामभद्राचार्य का बड़ा बयान
उर्दू टाइम्स ने क्या लिखा?
मुंबई से प्रकाशित होने वाले अखबार उर्दू टाइम्स ने मोहन भागवत के बयान को लेकर संपादकीय में लिखा है कि देशभर में मंदिर-मस्जिद विवाद के फिर से उभरने के बीच मोहन भागवत की चिंता एक चौंकाने वाली घटना है। संपादकीय में कहा गया है कि मोहन भागवत अधिकारियों से राजधर्म का पालन करने को कह रहे हैं। उर्दू टाइम्स ने लिखा है कि भागवत का यह बयान काफी दिलचस्प है लेकिन सवाल यह उठता है कि संघ परिवार के कार्यकर्ता उनकी सलाह पर अमल क्यों नहीं करते? ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब भागवत की सलाह को नजरअंदाज किया गया है।
संपादकीय कहता है कि इसलिए मोहन भागवत को सुझाव देने के बजाय संघ परिवार के सदस्यों पर लगाम लगानी चाहिए जिससे इस तरह के सभी विवाद खत्म हो जाएंगे और देश में शांति और सद्भाव का माहौल बनेगा।
उर्दू टाइम्स अपने संपादकीय में कहता है कि मोहन भागवत देश में सांप्रदायिक झगड़ों को बढ़ावा देने की कोशिशों को रोक सकता है। आरएसएस प्रमुख को ऐसे लोगों पर लगाम लगानी चाहिए जो मुसलमानों के धर्म स्थलों पर हिंदुओं का हक होने का दावा कर रहे हैं। उर्दू टाइम्स ने कहा है कि उनके सुझावों का जमीनी स्तर पर असर होना चाहिए वरना किसी मंच से इस तरह की बातें कहने से कुछ नहीं होगा।
‘धर्म को ठीक से समझना होगा, आधा अधूरा ज्ञान अधर्म को जन्म देगा’, मोहन भागवत ने क्यों कही यह बात?
सियासत अखबार ने क्या कहा?
हैदराबाद से निकलने वाले अखबार सियासत में अमित शाह के डॉ. आंबेडकर को लेकर दिए गए बयान के बारे में लिखा गया है। संपादकीय कहता है कि एनडीए और इंडिया गठबंधन के सदस्यों के बीच हाथापाई और कुछ सांसदों का घायल होना संसदीय इतिहास का एक और निम्न स्तर है।
संपादकीय कहता है कि इस घटना से पता चलता है कि हमारे देश की राजनीति में नैतिक मूल्य कम होते जा रहे हैं। संपादकीय कहता है- हमारे नेताओं को लोगों के लिए रोल मॉडल होना चाहिए और उन्हें ऐसे उदाहरण पेश करने चाहिए जिन्हें लोग फॉलो करें लेकिन हमारे सांसद और विधायक इसे भूल गए हैं। अपने विरोधी नेताओं पर हमला करने के लिए वे ऐसी भाषा का इस्तेमाल करते हैं, जो आम बोलचाल का हिस्सा नहीं हो सकती।
संपादकीय में लिखा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमित शाह का बचाव करने के लिए इस विवाद में कूद पड़े जबकि महीनों से चल रहे मणिपुर के संकट पर उन्होंने कुछ भी नहीं कहा।
अखबार ने लिखा है कि बीजेपी लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को निशाना बनाने की कोशिश कर रही है और बीजेपी नेताओं और मंत्रियों के द्वारा राहुल गांधी के खिलाफ लगाए जा रहे आरोप सही नहीं हैं।
Mohan Bhagwat News: ‘राम मंदिर बनवाने से कोई हिंदू नेता नहीं बन जाता…’, भागवत किस पर साध रहे निशाना?
रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा ने कहा- आंबेडकर महान शख्सियत हैं
नई दिल्ली से प्रकाशित होने वाले रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा ने संपादकीय में लिखा है कि अमित शाह की आंबेडकर को लेकर की गई टिप्पणी से राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया है। संपादकीय में कहा गया है कि आंबेडकर एक महान शख्सियत हैं। आंबेडकर का संघर्ष, उनका काम और उनका योगदान असाधारण है और यह सामाजिक न्याय और समानता सुनिश्चित करने के साथ ही दलितों की सुरक्षा पर भी केंद्रित है। राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए उनके नाम का इस्तेमाल करना सही नहीं है।
‘ये स्वीकार्य नहीं’, मंदिर-मस्जिद के नए विवादों पर सख्त RSS चीफ मोहन भागवत- बोले- राम मंदिर के बाद…
आंबेडकर के जीवन के संघर्ष का मकसद वंचित और कमजोर समुदायों को उनका हक दिलाना और उनका सशक्तिकरण करना था। दलितों और अल्पसंख्यकों के प्रति बीजेपी सरकार का ट्रैक रिकॉर्ड क्या रहा है और वह कैसे आंबेडकर की विरासत पर दावा कर सकती है। अखबार ने आंबेडकर विवाद के मामले में बीएसपी प्रमुख मायावती के बयान को भी जगह दी है।