लोकसभा चुनावों से पहले दक्षिण भारत में अपने आधार को मजबूत करने के लिए बीजेपी ने कई प्लान बनाए हैं। गौरतलब है कि पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को आंध्र प्रदेश में 1 फीसदी से भी कम वोट मिल सका था। इस बार माना जा रहा है कि बीजेपी आंध्र प्रदेश में पहले से ज्यादा अच्छी स्थिति में है। इसकी अहम वजह प्रमुख राजनीतिक दल टीडीपी और वीएसआर कांग्रेस के बीच मानी जा रही तगड़ी लड़ाई है।
क्या चर्चा है?
आंध्र प्रदेश की सियासत पर नजर रखने वाले सूत्रों ने कहा कि तेलुगु देशम पार्टी जहां भाजपा के साथ गठबंधन चाहती है, वहीं राज्य की सत्तारूढ़ वाईएसआर कांग्रेस चाहती है कि बीजेपी 2019 के चुनावों की तरह आगामी चुनावों में भी अकेले उतरे। हालांकि राज्य में मुसलमानों और ईसाइयों के वोट खासतौर पर वाईएसआर कांग्रेस के पक्ष में माना जाता रहा है। इसलिए पार्टी के नेताओं का मानना है कि भाजपा के साथ चुनावी गठबंधन उनकी पार्टी के लिए ठीक नहीं होगा।
दूसरी तरफ पूर्व मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली टीडीपी के साथ गठबंधन के लिए बीजेपी के प्रदेश स्तर के नेता उत्सुक दिखाई देते है क्योंकि वह मानते हैं कि यही एकमात्र तरीका है जिससे वे कुछ सीटें जीत सकते हैं। आंध्र प्रदेश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते हैं।
टीडीपी के नेताओं का मानना है कि बीजेपी राज्य में कई तरह से उनकी पार्टी को वाईएसआर कांग्रेस के सामने लड़ने में मदद कर सकती है। हालांकि गृह मंत्री अमित शाह ने कथित तौर पर जून में नायडू और उनकी गिरफ्तारी के बाद उनके बेटे नारा लोकेश से मुलाकात की थी। लेकिन बीजेपी इसके मायने किसी गठबंधन की तरह लिए जाएं ऐसा कोई संकेत नहीं देती है।
रिश्तों को लेकर बात करें तो बीजेपी के अच्छे रिश्ते वाईएसआर के साथ रहे हैं जबकि टीडीपी के साथ कई बार तल्खी देखी गई है। टीडीपी ने आंध्र प्रदेश के लिए ‘विशेष दर्जे’ की मांग को लेकर 2018 में भाजपा से अपना नाता तोड़ लिया था, जहां वह सत्ता में थी लेकिन एक बार फिर वह बीजेपी के करीब आना चाहते हैं। कई भाजपा नेताओं का मानना है कि पार्टी के लिए फिर से अकेले चुनाव लड़ना समझदारी होगी।