मोदी सरकार ने नेशनल पॉपुलेशन रजिस्ट्रर (एनपीआर) के अपडेशन को मंजूरी दी है। इससे पहले 2011 की जनसंख्या गणना से पहले 2010 में एनपीआर में जानकारियां एकत्रित की गई थी। अब 10 साल बाद और 2021 की जनगणना से पहले इसे अपडेट किया जा रहा है। सरकार ने एनपीआर अपडेशन को मंजूरी देने से पहले नागरिकता कानून में संशोधन किया था। इसके बाद से ही देशभर में इस संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है। वहीं नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन (एनआरसी) को लेकर भी लोग गुस्से में हैं।

विपक्ष का आरोप है कि यूपीए सरकार के दौरान जो एनपीआर था वह एनडीए सरकार से बिल्कुल अलग था। विपक्ष का कहना है कि एनपीआर में कुछ ऐसी जानकारियां लोगों से पूछी जाएंगी जो पूरे देश में एनआरसी लागू करने के लिए इस्तेमाल होंगी। अब सवाल यह है कि यूपीए का एनपीआर और एनडीए का एनपीआर एक दूसरे से कितना अलग है। नए और पुराने एनपीआर को लेकर तकरार इस बात को लेकर है कि सरकार कई मौकों पर कह चुकी है कि एनपीआर के जरिए एनआरसी की तरह पहला कदम होगा। लेकिन सरकार फिलहाल विरोध प्रदर्शन के बाद बैकफुट पर है और इससे इनकार कर रही है। इसी मुद्दे पर मोदी सरकार और विपक्ष के बीच तकरार है।

एनपीआर का मकसद देश के स्वभाविक निवासियों की समग्र पहचान का डाटाबेस तैयार करना है। इसमें वे सभी लोग शामिल होंगे जो भारत की सीमा में रह रहे हैं। इसके लिए जनगणना का काम 6 महीने तक चलेगा। इसमें तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा। वहीं एनआरसी में उन लोगों को शामिल किया जाता है जो कि देश के नागरिक हैं, यानि की जिनके पास दस्तावेज हैं और इन दस्तावेजों के जरिए उनकी नागरिकता सिद्ध होती हो। वहीं किसी देश अथवा किसी भी क्षेत्र में लोगों के बारे में विधिवत रूप से सूचना प्राप्त करना एवं उसे रेकॉर्ड करना जनगणना कहलाती है। यह एक निश्चित समय अंतराल और शासकीय आदेश के तहत की जाती है। भारत में हर 10 साल बाद इस प्रक्रिया का पालन किया जाता है।

नागरिकों में एनआरसी, सीएए और एनपीआर को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। मुस्लिम समुदाय को लग रहा है कि सरकार एनपीआर के जरिए देशभर में एनआरसी को लागू कर सकती है। यह मुस्लिमों को प्रताड़ित करने के लिए किया जा रहा है। यह डर इसलिए भी है क्योंकि भारत में रह रहे लाखों लोगों के पास पुख्ता दस्तावेज नहीं हैं। इसका एक उदाहरण असम में हुई एनआरसी है। यहां इस साल इस प्रक्रिया के खत्म होने के बाद जो आंकड़े आए उसमें 19 लाख लोग बाहर थे। ये सभी लोग अपनी नागरिकता को साबित करने के लिए पुख्ता सबूत नहीं दे पाएं।

एनपीआर और एनआरसी पर बढ़ते विवाद के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि उनकी सरकार पूरे देश में एनआरसी लागू नहीं करेगी। हालांकि गृह मंत्री अमित शाह ने इसके विपरीत बयान दिए हैं। दरअसल एनआरसी का मकसद देश में अवैध रूप से रह रहे बाहरी नागरिकों की पहचान करना है, वहीं एनपीआर का मकसद देश के स्वाभाविक निवासियों का पता लगाना है।

एनपीआर का इस्तेमाल नागरिकों की सही पहचान और उन तक सही दिशा में सरकार लाभ पहुंचाने के लिए किया गया था। एनपीआर में लोगों को एक चिप के साथ कार्ड देने तक की बात कही गई थी लेकिन यूपीए के कार्यकाल में आधार कार्ड पर तेजी से काम हुआ। इसके बाद एनपीआर को साइडलाइन कर दिया गया और इसकी अहमियत कम हो गई।

2020 में किए जाने वाले एनपीआर अपडेशन में कुछ ऐसी जानकारियां मांगी गई है जो कांग्रेस के समय नहीं पूछी गई थी। इस बार एनपीआर में नाम, उम्र, सेक्स, मुखिया से संबंध, पिता का नाम, माता का नाम, पत्नी/पति का नाम, जन्मतिथि, वैवाहिक स्थिति, घोषित राष्ट्रीयता, सामान्य निवास का वर्तमान पता, माता-पिता/दादा-दादी  कब और कहां पैदा हुए थे आदि पूछा जाएगा। इनमें से कई ऐसी जानकारियां हैं जो यूपीए के एनपीआर में नहीं पूछी गई थी।

सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच इस मुद्दे पर भी सियासी रार छिड़ा है। एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि बीजेपी देश को मजहबी रंग में रंगना चाहती है, एनपीआर-एनआरसी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। हालांकि एनपीआर का एनआरसी से कोई संबंध नहीं है। स्वयं गृह मंत्री अमित शाह ने यह बात कही है। उन्होंने कहा है कि एनपीआर के डाटा का इस्तेमाल एनआरसी के लिए नहीं किया जाएगा।