उत्तर प्रदेश सरकार ने अतिरिक्त जिला न्यायाधीश लखविंदर सिंह सूद की अदालत के उस आदेश को चुनौती दी है जिसमें 1987 के मलियाना नरसंहार से संबंधित एक मामले में आरोपी सभी 39 लोगों को बरी कर दिया गया था। मलियाना नरसंहार में 63 लोगों की मौत हो गई थी।
अतिरिक्त जिला सरकारी वकील सचिन मोहन के मुताबिक सरकार अतिरिक्त जिला अदालत के आदेश के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में गई है। उन्होंने मंगलवार को मीडिया को बताया कि मामले की अगली सुनवाई अक्टूबर में होगी। सचिन मोहन ने कहा कि सरकार और हम अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के फैसले से संतुष्ट नहीं थे, इसलिए फैसले को चुनौती दी गई है।
क्या है मलियाना नरसंहार?
इस साल की शुरुआत में अतिरिक्त जिला न्यायाधीश की अदालत ने मलियाना नरसंहार मामले में आरोपी सभी 39 लोगों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था।
अतिरिक्त जिला सरकारी वकील सचिन मोहन ने कहा, “हर फैसले की समीक्षा की जाती है और यह देखा जाता है कि इसमें अपील करने का कोई आधार है या नहीं। इस मामले में अपील के लिए आधार पर्याप्त पाए गए।”
मलियाना का मामला काफी चर्चित रहा है जब 1987 में मेरठ के मलियाना गांव में मुस्लिम समुदाय के 63 लोगों की हत्या कर दी गई थी और उनके घर जला दिए गए थे। इस मामले से जुड़ा अदालत का यह आदेश जिसमें आरोपियों को बरी कर दिया गया 36 सालों लंबे वक़्त और 900 से ज़्यादा सुनवाई के बाद आया था।
यह मामला मोहम्मद याकूब नाम के एक शख्स की शिकायत के आधार पर दर्ज किया गया था, जिसमें 94 लोगों को नामित किया गया था। 94 में से कई या तो मर चुके हैं या उनका पता नहीं चल पाया है। 40 आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चला।
इस बीच 31 मार्च के ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 372 के तहत एक आपराधिक अपील भी नरसंहार के तीन पीड़ितों, मोहम्मद याकूब, वकील अहमद और इस्माइल खान ने 27 जून को उच्च न्यायालय में दायर की थी। इस पर 11 जुलाई को सुनवाई हुई।
उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सूर्य प्रकाश केसरवानी और न्यायमूर्ति नंद प्रभा शुक्ला की पीठ ने एक आदेश पारित किया, जिसमें उत्तर प्रदेश राज्य सरकार को नोटिस जारी किए गए।
कोर्ट ने कर दिया था 40 आरोपियों को बरी
मलियाना नरसंहार में 36 साल बाद मथुरा जिला कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए 39 आरोपियों को बरी कर दिया था। कोर्ट का कहना था कि भीड़ में मौजूदगी मात्र से कोई आरोप नहीं बन जाता है। 31 मार्च को एडीजे लखविंदर सिंह सूद की अदालत ने कहा था कि आरोपी को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त सबूत उपलब्ध नहीं हैं और सबूतों की विश्वसनीयता पर गंभीर संदेह पैदा होता है। वहीं, घटना के पीड़ितों ने अदालत के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती देने का फैसला किया था।
23 मई, 1987 को हुई इस घटना में 63 मुस्लिमों की जानें गई थीं। मलियाना गांव मेरठ के बाहरी हिस्से में पड़ता है। इस घटना के बाद यहां से कई लोगों ने पलायन कर लिया, जबकि कुछ ने वहीं रुकने का फैसला किया। इस हिंसा में 106 घरों को आग के हवाले कर दिया गया था। हर तरफ चीखपुकार का माहौल था। लोगों ने अपने अपनों को आंखों के सामने दम तोड़ते देखा। इस हादसे के गवाह आज भी इस दर्दनाक घटना को भूल नहीं पाए हैं।