Chandrayaan-2: चंद्रयान-2 मिशन पर शुक्रवार (6 सितंबर 2019) को पूरी दुनिया की निगाहें टिकीं हैं। वजह है विक्रम लैंडर चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करने वाला है। यह दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करने वाला दुनिया का पहलो लैंडर होगा। सवाल यह है कि दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ क्यों करवाई जा रही है? दरअसल आजतक कोई भी देश इसपर लैंडिंग नहीं करवा पाया है। यहां पर बहुत सारी बर्फ जमी हुई है। अगर भारत यहां पर पहुंचता है तो वहां मौजूदा पानी के मौजूदगी के अन्य सबूतों को एकत्रित कर सकता है। मालूम हो कि इससे पहले 2008 में भी चंद्रयान-1 को लॉन्च किया गया था इसमें हमने दुनिया के सामने ये जानकारी रखी थी कि चंद्रमा की सतह पर ‘पानी’ मौजूद है चाहे वह मॉल्यूकुलर फॉर्म में ही क्यों न हो।
इस मिशन से भारत को कई उम्मीदें हैं। यह मिशन पूरे सौर मंडल के विकास को समझने में हमारी मदद कर सकता है। चंद्रमा 3.5 अरब वर्ष पुराना है लेकिन आखिर चंद्रमा कैसे अस्तित्व में आया इसके पीछे क्या थ्योरी रही होगी? इस मिशन के जरिए इन जानकारियों को पाने की कोशिश की जाएगी। लैंडर के चांद पर उतरने के बाद इसके भीतर से रोवर ‘प्रज्ञान’ बाहर निकलेगा और एक चंद्र दिवस यानी के पृथ्वी के 14 दिनों की अवधि तक अपने वैज्ञानिक कार्यों को अंजाम देगा। इसरो के अनुसार लैंडर में तीन वैज्ञानिक उपकरण लगे हैं जो चांद की सतह और उप सतह पर वैज्ञानिक प्रयोगों को अंजाम देगा, जबकि रोवर के साथ दो वैज्ञानिक उपकरण हैं जो चांद की सतह से संबंधित समझ में मजबूती लाने का काम करेंगे।
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अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने कहा कि ‘चंद्रयान-2’ लैंडर और रोवर को लगभग 70 डिग्री दक्षिणी अक्षांश में दो गड्ढों ‘मैंजिनस सी’ और ‘सिंपेलियस एन’ के बीच एक ऊंचे मैदानी इलाके में उतारने का प्रयास करेगा। इसरो के अनुसार चांद का दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र बेहद रुचिकर है क्योंकि यह उत्तरी ध्रुव क्षेत्र के मुकाबले काफी बड़ा है और अंधकार में डूबा रहता है।
