देश की एक लोकसभा और चार विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजों में भाजपा के खाते में एक भी सीट नहीं आई। महाराष्ट्र, बिहार में भी उसे मुंह की खानी पड़ी। लेकिन सबसे ज्यादा झटका भगवा दल को पश्चिम बंगाल में लगा। तमाम प्रयोगों के बावजूद बीजेपी ममता बनर्जी के तिलिस्म को नहीं तोड़ सकी। बीते दस सालों से ज्यादा वक्त से दीदी का जलवा कायम है। ममता के गढ़ में सेंध लगाने में तमाम हथकंडों के बावजूद मोदी-शाह की जोड़ी भी कारगर नहीं हो सकी।

दिलीप घोष को हटाकर बंगाल बीजेपी के अध्यक्ष बनाए गए सुकांत मजूमदार का रिजल्ट घोषित होने के बाद जवाब आया। उन्होंने कहा कि यह एक सामान्य प्रवृत्ति है कि राज्य में सत्ताधारी पार्टी आमतौर पर उपचुनाव जीतती है। लेकिन उनके पास इस बात का कोई जवाब नहीं था कि बिहार में तो वो सत्ता में हैं। फिर लालू के बेटे ने क्यों उन्हें धूल चटा दी।

पश्चिम बंगाल की बात करें तो ममता बनर्जी ने दिखा दिया कि उन्हें इस सूबे में कोई भी चुनौती देने की स्थिति में नहीं है। खास बात है कि ममता ने संसद में पहुंचने को तरस रहे शत्रुघ्न सिन्हा को जिताकर दिखा दिया। बीजेपी का कैंपेन बाहरी पर केंद्रित रहा लेकिन बावजूद इसके वो उन्हें जीतने से नहीं रोक सकी। अभिनेता ने आसनसोल में अपने निकटम प्रतिद्वंद्वी भाजपा की अग्निमित्रा पॉल को 3 लाख 3 हजार 209 मतों के भारी अंतर से हराया। आसनसोल लोकसभा सीट से भाजपा सांसद बाबुल सुप्रियो अपना इस्तीफा देने के बाद गत सितंबर में तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए थे।

उधर, ममता ने बीजेपी से तृणमूल में शामिल हुए बाबुल को भी बंगाल की असेंबली में पहुंचा दिया। बाबुल के मंत्री बनने के आसार हैं। उन्होंने बालीगंज विधानसभा उपचुनाव में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी माकपा उम्मीदवार साइरा शाह हलीम को 20,228 मतों के अंतर से हराकर जीत हासिल की। सुप्रियो को 51,199 वोट मिले, जबकि हलीम को 30,971 वोट मिले। दिलचस्प यह है कि हलीम ने भाजपा की केया घोष को पीछे छोड़ दिया, जिन्हें 13,220 वोट मिले। ममता ने जीत के लिए आसनसोल और बालीगंज के मतदाताओं को धन्यवाद दिया।

ध्यान रहे कि बीते असेंबली चुनाव में ममता की घेराबंदी के लिए बीजेपी ने फुलप्रूफ प्लान तैयार किया था। एक के बाद एक करके तृणमूल के कई नेताओं को मोदी-शाह अपने पाले में लेकर आए। एक संदेश देने की कोशिश की गई कि ममता का किला ढहने वाला है। यहां तक कि चुनाव के दौरान पीएम मोदी ने बांग्लादेश की यात्रा करके मतुआ समुदाय को अपने पाले में करने की असफल कोशिश भी की।

चुनाव के दौरान हिसा फैलाने का आरोप लगाकर सुरक्षा बलों ने गोली चलाकर चार लोगों को मारा भी। लेकिन आखिर में ममता का खेला होबै का नारा मोदी-शाह की जोड़ी पर भारी पड़ा। आलम ये है कि बीजेपी में गए तमाम नेता एक एक करके माफी मांगते गए और ममता के पैरों में गिरते गए। कुल मिलाकर ममता ने दिखा दिय़ा कि बंगाल की राजनीति में उनका तोड़ नहीं है।