Wayanad Landslides: केरल के वायनाड शहर में आई आपदा में कई लोग दफन हो गए तो कई लोग अभी भी लापता हैं। इतना ही नहीं रातोंरात गांव के गांव खंडहर में तब्दील हो गए। हालांकि, इस आपदा में केंद्र और राज्य सरकार की तरफ से हर संभव कोशिश की जा रही है कि जो भी लोग अभी भी फंसे हैं। उन्हें जल्द से जल्द बाहर निकाला जाए।
वायनाड का चूरमाला गांव ऐसा ही है, जो रातोंरात खंडहर में बदल गया। इस गांव के सभी घर और दुकानें मिट्टी और मलबे में दब गईं। टूटी कारें और क्षतिग्रस्त दोपहिया वाहन इधर-उधर बिखरे पड़े हैं।
मंगलवार की सुबह केरल के वायनाड जिले के मेप्पाडी पंचायत के पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन से सबसे ज़्यादा प्रभावित गांवों में से एक यह गांव भी शामिल है। सुबह-सुबह होते-होते गांव पूरी तरह बदल चुका था।
कुछ किलोमीटर दूर मुंडक्कई में शुरू हुए भूस्खलन के कारण न केवल चूरलमाला में कीचड़ और मलबा आ गया, बल्कि इरुवाझांजी नदी का मार्ग भी बदल गया और वह गांव के बीच से बहने लगी।
नदी ने अपने नए रास्ते में आने वाली हर चीज़ को बहा दिया, जिसमें बागान के मज़दूरों के क्वार्टर भी शामिल हैं। इसने सरकारी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के बड़े हिस्से को भी नष्ट कर दिया है।
स्कूल के प्रिंसिपल ने बताया कि करीब दो दर्जन छात्र लापता हैं। प्रिंसिपल ने कहा, “मैं छात्रों के बारे में जानने के लिए उनके अभिभावकों से संपर्क करने की कोशिश कर रहा हूं।”
मुंडक्कई पहुंचने का प्रयास कर रहे बचावकर्मी चूरलमाला में घंटों तक फंसे रहे, क्योंकि मुंडक्कई को जोड़ने वाला पुल भूस्खलन के कारण नष्ट हो गया था।
चूरलमाला गांव के निवासी अलीकोया ने कहा कि उन्होंने कभी ऐसी त्रासदी की उम्मीद नहीं की थी, क्योंकि यह भूस्खलन वाला क्षेत्र नहीं था। गांव के कई लोग बह गए, कई शव मलप्पुरम जिले के नीलांबुर क्षेत्र से कई किलोमीटर दूर बरामद किए गए।
मंगलवार को भूस्खलन से पहले, रविवार को मुंडक्कई में एक पहाड़ी पर हुए एक छोटे से भूस्खलन से विस्थापित लोगों के लिए चूरलमाला के स्कूल में एक राहत शिविर स्थापित किया गया था। चूंकि सोमवार को बारिश जारी रही, इसलिए उन्हें सुरक्षित स्थानों पर ले जाया गया और वे मंगलवार की सुबह आई आपदा से बच गए।
डॉली नामक महिला जो कि जीवित बची थी। उसने अपने पांच रिश्तेदारों को खो दिया, जो अभी भी मुंडक्कई में थे। उन्होंने कहा कि अगर अधिकारियों ने मुंडक्कई से और लोगों को स्थानांतरित कर दिया होता, तो जान-माल के नुकसान से बचा जा सकता था। उन्होंने कहा, “सोमवार की सुबह ही मैं और मेरे पति जोस सुल्तान बाथरी शहर गए थे। अन्यथा, हम भी मलबे में दबकर मर जाते।”
(शाजू फिलिप की रिपोर्ट)