दुनिया की आबादी के साथ भूख की समस्या भी बढ़ रही है। ऐसे कई राष्ट्र हैं, जो इस समस्या से बुरी तरह जूझ रहे हैं। मानवता के लिए भुखमरी एक गंभीर समस्या है, जो न केवल जीवन को प्रभावित करती, बल्कि सामाजिक और आर्थिक अस्थिरता को भी जन्म देती है। यह विडंबना ही है कि तकनीकी और आर्थिक प्रगति के बावजूद इक्कीसवीं सदी में भी वैश्विक भुखमरी बड़ी चुनौती बनी हुई है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार दुनिया भर में बयासी करोड़ से ज्यादा लोग भुखमरी के शिकार हैं।

विश्वभर में बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है, जिन्हें दो समय का भोजन नसीब नहीं होता। पोषण युक्त और पर्याप्त भोजन न मिल पाने के कारण दुनिया की बड़ी आबादी कुपोषण की चपेट में है। भोजन को बुनियादी और मौलिक मानवाधिकार माना गया है, लेकिन पूरी दुनिया में खाद्यान्न की कमी और कुपोषण के कारण प्रतिवर्ष लाखों लोग जान गंवा देते हैं। भोजन, हवा और पानी के बाद तीसरा सबसे बुनियादी अधिकार हर किसी को पर्याप्त भोजन है। जबकि दुनिया भर के किसान वैश्विक आबादी से ज्यादा लोगों को खिलाने के लिए पर्याप्त भोजन पैदा करते हैं, लेकिन फिर भी भूख बनी रहती है।

तेजी से बढ़ रही आर्थिक असमानता

आर्थिक असमानता इस वैश्विक समस्या को और बढ़ा रही है। ‘एफएओ’ के अनुसार तीव्र जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण, आर्थिक विकास और जलवायु परिवर्तन पृथ्वी के जल संसाधनों पर दबाव बढ़ा रहे हैं। इसके अलावा, पिछले दशकों में मीठे पानी के संसाधनों में भी प्रति व्यक्ति बीस फीसद की गिरावट आई है और दशकों के खराब प्रबंधन, भूजल के अत्यधिक दोहन, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के कारण पानी की उपलब्धता तथा गुणवत्ता तेजी से बिगड़ रही है।

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‘एफएओ’ का कहना है कि मौजूदा समय में करीब 2.4 अरब लोग जल संकट वाले देशों में रहते हैं। इसके लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ती जा रही है। पानी की कमी संघर्ष का निरंतर बढ़ता कारण बनती जा रही है। पृथ्वी पर जल सीमित है, लेकिन यह ऐसा प्राकृतिक संसाधन है, जिसके बिना धरती पर भोजन और जीवन असंभव है। यही नहीं, विश्वभर में साठ करोड़ से ज्यादा लोग अपनी आजीविका के लिए जलीय खाद्य प्रणालियों पर निर्भर हैं, जिनमें मछुआरे और मछली किसान तथा उनके आश्रित शामिल हैं, जो तटीय और अंतर्देशीय समुदायों की रीढ़ माने जाते हैं।

विकराल बना रही भूख की समस्या

दुनिया से भुखमरी मिटाने के प्रयासों में जलवायु परिवर्तन, अंतरराष्ट्रीय तनाव और आर्थिक समस्याएं सबसे बड़ी बाधा बन रही हैं। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, बार-बार मौसम में होने वाले बदलावों, संघर्षों, आर्थिक मंदी, असमानता और महामारी के कारण विश्व में करीब 73 करोड़ 30 लाख लोग भूख का सामना कर रहे हैं, जिसका सर्वाधिक असर गरीब तबके पर पड़ता है, जिनमें से कई कृषक परिवार हैं। कोरोना काल के बाद लंबे समय से चल रहे रूस-यूक्रेन और इजराइल-फिलिस्तीन युद्ध जैसी विकट परिस्थितियां भी भूख की समस्या को और विकराल बना रही हैं। संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि भूख और कुपोषण लंबे समय तक चलने वाले संकटों से और बढ़ जाते हैं।

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आज दुनिया में करोड़ों लोग स्वस्थ आहार का खर्च उठाने में असमर्थ हैं। ‘एफएओ’ के मुताबिक विश्व में 2.8 अरब से ज्यादा लोग स्वस्थ आहार का खर्च उठाने में असमर्थ हैं और अस्वास्थ्यकर आहार ही सभी प्रकार के कुपोषण का प्रमुख कारण है। कमजोर लोगों को प्राय: मुख्य खाद्य पदार्थों या कम महंगे खाद्य पदार्थों पर निर्भर रहने के लिए विवश होना पड़ता है, जो अस्वास्थ्यकर हो सकते हैं, जबकि अन्य लोग ताजे या विविध खाद्य पदार्थों की अनुपलब्धता से पीड़ित हैं। उन्हें स्वस्थ आहार चुनने के लिए जरूरी जानकारी की कमी है या फिर वे केवल सुविधा के लिए विकल्प चुनते हैं। दुनिया भर में प्रतिवर्ष हर दस में से एक व्यक्ति दूषित भोजन के कारण बीमार हो जाता है और हर साल 4.2 लाख लोगों की मौत का कारण दूषित भोजन ही है, जिनमें करीब सवा लाख बच्चे भी होते हैं। संयुक्त राष्ट्र के ‘खाद्य एवं कृषि संगठन’ के अनुसार 2021 में दुनिया भर में पांच लाख लोगों की मौत भूख से हुई थी। हालांकि पृथ्वी पर इतना अनाज पैदा हो रहा, जिससे दुनिया के हर व्यक्ति को पर्याप्त भोजन मिल सके, पर सबसे बड़ी समस्या सभी तक पोषणयुक्त आहार की पहुंच और उपलब्धता है।

साठ करोड़ लोग प्रदूषण से प्रभावित

‘एफएओ’ का कहना है कि वर्तमान में मत्स्य पालन में हम करीब तीन हजार प्रजातियों का दोहन करते हैं, जबकि इनमें से केवल 650 से कुछ अधिक प्रजातियों की ही खेती करते हैं। उसके मुताबिक इन जलीय पारिस्थितिक तंत्रों और उनके द्वारा समर्थित प्रजातियों का संरक्षण और सुरक्षा केवल जिम्मेदारी नहीं, पृथ्वी और इसके निवासियों की भलाई के लिए एक बड़ी आवश्यकता भी है। जलीय खाद्य पदार्थ भी सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को दूर करने में भूमिका निभाते हैं और अपनी विविधता से जलीय खाद्य प्रणाली मानव के लिए पोषण और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए एक अद्वितीय और महत्त्वपूर्ण खाद्य स्रोत बनती है। चिंता का विषय है कि जीवनयापन के लिए आंशिक रूप से ही सही, जलीय खाद्य प्रणालियों पर निर्भर साठ करोड़ लोग प्रदूषण, पारिस्थितिकी तंत्र के क्षरण और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से पीड़ित हैं। ऐसे में जलीय खाद्य प्रणालियों की रक्षा अति आवश्यक है।

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वैश्विक जल एवं जलीय खाद्य प्रणालियों की रक्षा करते हुए पूरी दुनिया में मौजूदा चुनौतियों से निपटने के लिए अब लोगों द्वारा कृषि-खाद्य प्रणालियों में जल के कुशल उपयोग को सुनिश्चित करने की आवश्यकता महसूस की जाने लगी है। सुरक्षित जल और खाद्य सुरक्षा के लिए जरूरी है कि दुनिया भर के देश पारंपरिक ज्ञान की शक्ति का पूर्ण उपयोग करते हुए विज्ञान और नवाचार के माध्यम से जल संसाधनों की कमी और जल सुरक्षा मुद्दों के नए समाधान ढूंढ़ने के गंभीर प्रयास करें। मौजूदा चुनौतियों से निपटने के लिए हमें कृषि खाद्य प्रणालियों में प्रभावी जल उपयोग सुनिश्चित करने और अपशिष्ट जल के दोबारा उपयोग के सुरक्षित तरीके खोजने के साथ-साथ जल और जलीय खाद्य प्रणालियों की सुरक्षा भी सुनिश्चित करनी होगी।

2030 तक भुखमरी को समाप्त करना लक्ष्य

भुखमरी मानवता की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाली गंभीर वैश्विक चुनौती है, जिसे समाप्त करने के लिए स्थायी नीतियों, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और सामुदायिक भागीदारी की आवश्यकता है। संयुक्त राष्ट्र का 2030 तक सतत विकास लक्ष्य भुखमरी को समाप्त करने की दिशा में एक मजबूत प्रयास है, जिसके तहत सभी के लिए पोषणयुक्त, सुरक्षित और पर्याप्त भोजन सुनिश्चित करने पर जोर दिया गया है। यदि समुचित प्रयास किए जाएं तो 2030 तक भुखमरी मुक्त दुनिया का सपना साकार हो सकता है। बहरहाल, भुखमरी केवल भोजन की कमी नहीं, एक सामाजिक और नैतिक संकट है, जिसे समाप्त करना केवल सरकारों का कर्तव्य नहीं, बल्कि प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है। एक संगठित प्रयास के माध्यम से हम सभी मिलकर एक ऐसी दुनिया बना सकते हैं, जहां कोई भी भूखा न सोए।

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दुनिया से भुखमरी मिटाने के प्रयासों में जलवायु परिवर्तन, अंतरराष्ट्रीय तनाव और आर्थिक समस्याएं सबसे बड़ी बाधा बन रही हैं। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, बार-बार मौसम में होने वाले बदलावों, संघर्षों, आर्थिक मंदी, असमानता और महामारी के कारण विश्व में करीब 73 करोड़ 30 लाख लोग भूख का सामना कर रहे हैं, जिसका सर्वाधिक असर गरीब तबके पर पड़ता है, जिनमें से कई कृषक परिवार हैं। कोरोना काल के बाद लंबे समय से चल रहे रूस-यूक्रेन और इजराइल-फिलिस्तीन युद्ध जैसी विकट परिस्थितियां भी भूख की समस्या को और विकराल बना रही हैं। संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि भूख और कुपोषण लंबे समय तक चलने वाले संकटों से और बढ़ जाते हैं।