चुनाव रणनीतिकार से जनता दल (यूनाइटेड) के नेता बने प्रशांत किशोर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के बीच का फर्क बताया है। उन्होंने इस बारे में एक इंटरव्यू में कहा, “पीएम मोदी जांबाज और जोखिम उठाने वालों में से हैं, जबकि राहुल स्टेटस क्वॉइस्ट (यथास्थिति बनाए रखने में यकीन रखने वाले) हैं।”
ये बातें उन्होंने 14 अक्टूबर को दिल्ली में कहीं। राजनीति में आने के बाद वह पहली बार मीडिया को इंटरव्यू दे रहे थे। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) में हुए कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार बरखा दत्त ने यौन शोषण के आरोपों में फंसे एमजे अकबर को लेकर सवाल पूछा था। पर उनका जवाब आया था, “मैं सरकार की ओर से कुछ नहीं कहूंगा।”

आपको बता दें कि हाल ही में वह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी का हिस्सा बने हैं। उनकी नियुक्ति राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के रूप में हुई है। हालांकि, उनकी नियुक्ति के बाद जद(यू) खेमे में कुछ वरिष्ठ नेता पार्टी के फैसले पर हैरान रह गए थे। 41 वर्षीय किशोर उससे पहले पीएम मोदी और राहुल के साथ काम कर चुके हैं। 2015 में उन्होंने बिहार में जद(यू) के लिए चुनावी रणनीति तैयार की थी, जिसमें उन्हें सफलता हासिल हुई थी और जद(यू), राजद और कांग्रेस के महागठबंधन को भारी जीत हासिल हुई थी।
आप बीजेपी वालों से मिलते हैं और उसी समय पर कांग्रेसियों से भी मुलाकात करते हैं, वह भी तब जब मोदी-राहुल के दौर में दोनों ही पार्टियों के बीच निजी खटास देखने को मिलती है? आप कैसे चीजों का प्रबंधन करते हैं? इस पर किशोर ने कहा, “मुझे नहीं लगता है कि वे एक-दूसरे के दुश्मन हैं। जहां तक मैं समझता हूं कि अगर आप से कहा जाता है कि आप आकर अपने आइडिया शेयर करें, तो आप मना नहीं कर सकते। 2014 के बाद मैं मोदी जी के साथ काम कर रहा था। उस वक्त मेरी मां की तबीयत खराब थी।”
पीएम के फोन को लेकर वह आगे बोले, “बीजेपी नेतृत्व के साथ तब मेरी कोई बात नहीं हो रही थी, पर अचानक से मुझे उनका फोन आया। ऐसी स्थिति में आप न नहीं कर सकते। आपको हां करनी पड़ती है। अब उन्होंने क्यों बुलाया या फोन किया, ये उनसे पूछा जाना चाहिए।”
बखरा ने आगे पूछा- राजनीति में इन दोनों (मोदी-राहुल) की अप्रोच के बीच क्या फर्क दिखता है? उन्हें एक शब्द में कैसे बयां करेंगे? किशोर ने बेबाकी से जवाब दिया, “इस विषय पर किताब लिखी जा सकती है। मोदी, बड़ा जोखिम उठाने का माद्दा रखते हैं। वहीं, राहुल यथास्थिति बनाए रखने में यकीन रखते हैं। वह 100 साल से अधिक पुरानी पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं। उनके लिए उसके भीतर चीजें बदलना कठिन है।”