Jammu Kashmir News: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जम्मू में बाढ़ प्रभावित इलाकों का निरीक्षण किया और इस दौरान कई बैठकों की अध्यक्षता की। शाह के दौरे की कई तस्वीरों में मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला पीछे की ओर खड़े थे, लेकिन केंद्रीय मंत्री के साथ एलजी मनोज सिन्हा के अलावा विपक्ष के नेता बीजेपी के सुनील शर्मा प्रमुखता से मौजूद थे। अब इसको लेकर विपक्षी दलों ने सीएम उमर अब्दुल्ला की सरकार पर निशाना साधा है।
पीडीपी नेता वहीद पारा ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि जिस तरह से अब्दुल्ला को दरकिनार किया गया, वह सिर्फ एक व्यक्ति का अपमान नहीं है, बल्कि संस्था और जनादेश का अपमान है। उन्होंने आगे कहा, “यह मुख्यमंत्री के दिखावे का नतीजा है। वह अपनी सरकार के पहले दिन से ही विनम्र रहे हैं और यह उसी का नतीजा है।”
इल्तिजा मुफ्ती ने क्या कहा?
पीडीपी नेता इल्तिजा मुफ्ती ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट कर लिखा, “यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि कल जम्मू में मुख्यमंत्री को दिया गया प्रोटोकॉल साफ तौर पर नजरअंदाज कर दिया गया। राजनीति से अलग, वह एक चुने हुए मुख्यमंत्री हैं जो हम सबका प्रतिनिधित्व करते हैं। थोड़ी और शालीनता और उदारता कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगी।”
उमर अब्दुल्ला को थोड़ा आत्मसम्मान दिखाना चाहिए- आप विधायक
डोडा से आप विधायक मेहराज मलिक ने कहा कि अब्दुल्ला को थोड़ा आत्मसम्मान दिखाना चाहिए। उन्होंने अरविंद केजरीवाल की नेशनल कॉन्फ्रेंस को दी गई सलाह की याद दिलाते हुए कहा कि भारतीय जनता पार्टी पर कभी भरोसा मत करो। उन्होंने एक्स पर कहा, “कम से कम आत्मसम्मान रखो और बीजेपी के पीछे साये की तरह भागने के बजाय अपने लोगों के लिए खड़े हो जाओ। जम्मू-कश्मीर को साहसी नेताओं की जरूरत है, न कि प्रोटोकॉल के भूखे दिखावटी नेताओं की।”
श्रीनगर के पूर्व मेयर जुनैद मट्टू ने शाह के दौरे की एक तस्वीर शेयर करते हुए लिखा, “आपकी नजर की परीक्षा लेना चाहता हूं, क्या आप हमारे मुख्यमंत्री को 15 सेकंड से भी कम समय में पहचान सकते हैं।”
नेशनल कॉन्फ्रेंस ने विपक्षी दलों को दिया जवाब
नेशनल कॉन्फ्रेंस ने विपक्षी दलों पर पलटवार किया है और इसे खासतौर पर पीडीपी का दुष्प्रचार बताया है। एक नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता ने कहा, “तस्वीर एक खास पल को कैद करती है।” उन्होंने आगे कहा, “मुख्यमंत्री गृह मंत्री के साथ बैठक में थे और उन्हें उचित प्रोटोकॉल दिया गया था।” हालांकि, नेशनल कॉन्फ्रेंस के लिए इस विवाद को नजरअंदाज करना मुश्किल हो सकता है। यह तब है जब अब्दुल्ला सरकार ने केंद्र को नाराज न करने का ध्यान रखा था, इस उम्मीद में कि इसका जम्मू-कश्मीर को फायदा होगा।
अब्दुल्ला ने पिछले महीने स्वतंत्रता दिवस पर अपने भाषण में कहा था कि सरकार चलाने में आ रही मुश्किलों को देखते हुए उनकी उम्मीद खत्म होती जा रही है। मुख्यमंत्री ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में लागू दोहरी शासन व्यवस्था सफलता के लिए नहीं बल्कि असफलता के लिए बनाई गई है और पहली बार उन्होंने अपनी सरकार के उन फैसलों का जिक्र किया जो राजभवन में अटके हुए हैं। दरअसल, शाह द्वारा जम्मू-कश्मीर के बीजेपी विधायकों और सांसदों के साथ जमीनी हालात का जायजा लेने के लिए आयोजित एक पार्टी बैठक में उपराज्यपाल की मौजूदगी पर सवाल उठाए गए थे।
एक पीडीपी नेता ने कहा, “सब जानते हैं कि वह सिन्हा बीजेपी के लोग हैं, लेकिन इस समय वह एक संवैधानिक पद पर हैं। अध्यक्ष की विश्वसनीयता के लिए उन्हें बैठक से दूर रहना चाहिए था।” नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रवक्ता इमरान नबी ने भी बैठक पर सवाल उठाए। नबी ने कहा, “जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल शाह की अध्यक्षता वाली बैठक में सिर्फ भाजपा विधायकों, सांसदों और भाजपा पदाधिकारियों से घिरे हुए क्यों बैठे हैं? अगर यह पक्षपात नहीं है, तो और क्या है? उपराज्यपाल का कार्यालय तटस्थ होना चाहिए, भाजपा का विस्तार नहीं।”
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