Waqf Amendment Bill Controversy: 18वीं लोकसभा के पहले मानसून सत्र में काफी हंगामा हुआ। पहले बजट को लेकर बवाल, फिर नीट पेपर लीक विवाद का मुद्दा संसद में छाया रहा, लेकिन सत्र खत्म होते-होते मोदी सरकार के अल्पसंख्यक और संसदीय कार्यमंत्री किरेन रिजिजू ने एक ऐसा बिल पेश कर दिया, जो कि नए सियासी समीकरणों के बनने की वजह बन सकता है और ये बिल वक्फ कानून में संशोधन से जुड़ा है, लेकिन आखिर ये बिल क्या है और कैसे इस बिल में BJP की एक राजनीतिक प्लानिंग के संकेत मिल रहे हैं, इसे समझना जरूरी है।
वक्फ बोर्ड के बिल के बारे में समझने से पहले हमें यह जानना होगा कि आखिर वक्फ क्या है? वक्फ अरबी भाषा का शब्द है। इसका अर्थ खुदा के नाम पर अर्पित वस्तु या परोपकार के लिए दिया गया धन होता है। इसमें चल और अचल संपत्ति को शामिल किया जाता है। बता दें कि कोई भी मुस्लिम अपनी संपत्ति वक्फ को दान कर सकता है। कोई भी संपत्ति वक्फ घोषित होने के बाद गैर-हस्तांतरणीय हो जाती है।
Waqf Bill को लेकर क्या है विवाद?
पूरा विवाद वक्फ अधिनियम के सेक्शन-40 पर है। इसके तहत बोर्ड को रिजन टू बिलीव की शक्ति मिल जाती है। अगर बोर्ड का मानना है कि कोई संपत्ति वक्फ की संपत्ति है, तो वो खुद से जांच कर सकती है और वक्फ होने का दावा पेश कर सकता है। अगर उस संपत्ति में कोई रह रहा है तो वह अपनी आपत्ति को वक्फ ट्रिब्यूनल के पास दर्ज करा सकता है।
ट्रिब्यूनल के फैसले के बाद हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकती है, मगर यह प्रक्रिया काफी जटिल हो जाती है, जिसके चलते कई लोग फंस चुके हैं। अगर कोई संपत्ति एक बार वक्फ घोषित हो जाती है तो हमेशा ही वक्फ रहती है। इस वजह से कई विवाद भी सामने आए हैं, जिसको लेकर भारत सरकार अब नियमों में संशोधन करना चाहती है।
Waqf Bill पर क्या है Modi Govt का रुख?
इस मामले में केंद्र सरकार का तर्क है कि 1995 में वक्फ अधिनियम से जुड़ा मौजूदा विधेयक है। इसमें वक्फ बोर्ड को अधिक अधिकार मिले। 2013 में संशोधन करके बोर्ड को असीमित स्वायत्तता प्रदान की गई। सरकार का कहना है कि वक्फ बोर्डों पर माफियाओं का कब्जा है। इसलिए इसे संशोधित करना जरूरी है।
सरकार का कहना है कि संशोधन से संविधान के किसी भी अनुच्छेद का उल्लंघन नहीं किया गया है। इससे मुस्लिम महिलाओं और बच्चों का कल्याण होगा। दूसरी ओर विपक्षी दलों ने इसे मुख्य तौर पर समाज को विभाजित करने वाला बिल बताया है।
Waqf Bill पर BJP को मिला है ‘अपनों’ का साथ
खास बात यह है कि बीजेपी के कोर मुद्दों में एक, वक्फ बिल में संशोधन भी रहा है, जबकि उसके सहयोगी दल खुलकर इसका समर्थन कभी नहीं करते हैं। किरेन रिजिजू ने जब यह बिल संसद में पेश किया तो इसका समर्थन जेडीयू, टीडीपी और एलजेपी यानी एनडीए के सभी घटक दलों ने किया। दिलचस्प बात यह है कि इसके बावजूद सरकार ने इस बिल को जेपीसी के पास भेज दिया, जिसकी मांग समूचा विपक्ष कर रहा था।
सूत्र बताते हैं कि पहले ही एनडीए के घटक दलों ने बीजेपी से यह मांग की थी कि वे बिल का समर्थन तभी करेंगे, जब वह जेपीसी के पास जाएगा। पिछले दो कार्यकालों में बीजेपी ने पूर्ण बहुमत के दौरान एक भी बिल किसी समिति के पास नहीं भेजा था, लेकिन अब जब सरकार गठबंधन की है, तो फिर मोदी सरकार ने अपने कोर एजेंडे का अहम बिल जेपीसी के पास भेज दिया है।
Waqf Bill के लिए JPC का हुआ गठन
आज जेपीसी के गठन और उसके सदस्यों के नाम का ऐलान हो गया। इसमें लोकसभा से 21 और राज्यसभा से 10 सदस्य शामिल हैं। इस समिति में जगदंबिका पाल, निशिकांत दुबे, तेजस्वी सूर्या, अपराजिता सारंगी, 5-संजय जायसवाल, दिलीप सैकिया, अविजीत गंगोपाध्याय, डी के अरुणा, गौरव गोगोई, इमरान मसूद, मोहम्मद जावेद, मौलाना मोइबुल्ला, कल्याण बनर्जी, ए राजा, श्रीकृष्णा देवारायलू, दिनेश्वर कमायत, अरविंद सावंत, एम सुरेश गोपीनाथ,नरेश गणपत मास्के,अरुण भारती, असदुद्दीन ओवैसी शामिल हैं।
इसके अलावा जेपीसी में राज्यसभा से आने वाले सांसदों की बात करें तो इसमें बृज लाल, डॉ. मेधा विसराम कुलकर्णी, गुलाम अली, डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल, सईद नासिर हुसैन, मोहम्मद नदीम उल हक, वी विजयसाई रेड्डी, एम मोहम्मद अब्दुल्ला, संजय सिंह और डॉ. डी वीरेंद्र हेगड़े का नाम शामिल है।
JPC के पास क्यों गया Waqf Bill ?
अहम सवाल वही आ जाता है कि जब बीजेपी यह दावा करती है, कि उसके पास हर मुद्दे पर पूर्ण बहुमत यानी सभी घटक दलों का सहयोग है, तो फिर उसे यह बिल संसदीय समिति के पास भेजने की आवश्यकता क्या थी? पीएम मोदी प्रत्येक मौके पर यह दोहराते रहे हैं कि वे कड़े फैसलों के लिए किसी भी तरह का समझौता नहीं करेंगे। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या उन्होंने वक्फ बिल के मुद्दे पर अपने ही एनडीए के साथियों से कोई समझौता किया है?
अब यह समझना जरूरी है कि बीजेपी के ही अंदर से वक्फ बोर्ड से संबंधित कानूनों को लेकर विरोध होता रहा है। सवाल यह भी उठे हैं कि इस कानून में संशोधन किए जाएं। एक बड़े वर्ग में कुछ मुद्दों को लेकर निराशा भी रही कि मोदी सरकार ने प्रचंड बहुमत के बावजूद अपने हिंदुत्ववादी मुद्दों पर काम नहीं किया, इन मुद्दों में एक मामला वक्फ बोर्ड का कानून भी रहा है।
Waqf Bill कहीं BJP का चुनावी दांव तो नहीं?
संसद में वक्फ बिल का पेश होना बीजेपी की एक रणनीति माना जा रहा है। बीजेपी ने एक तरफ जहां बिल पेश कर अपने कोर वोटर्स को साधने का प्रयास किया है, तो दूसरी ओर उसी बिल को जेपीसी के पास भेजकर अपने सहयोगियों को साधने की कोशिश की है। इतना ही नहीं, इससे यह भी दिखाया गया कि सरकार ने विपक्ष की जेपीसी की मांग को मानकर सर्वसम्मति बनाने की कोशिश की है लेकिन बिल पेश करना ही अपने आप में दिलचस्प हैं।
आने वाले 6 महीनों के अंदर महाराष्ट्र, हरियाणा, दिल्ली, झारखंड और जम्मू कश्मीर जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं और माना जा रहा है कि विपक्ष की जाति वाले कार्ड की तोड़ निकालने के लिए, बीजेपी एक बार फिर हिंदुत्व का मुद्दा मजबूत करने की कोशिश कर रही है। इसके चलते ही एक प्लानिंग के तहत इस वक्फ बोर्ड बिल को पेश किया गया है, जिससे चुनावी दौर में इस बिल के जरिए जमीनी स्तर पर ध्रुवीकरण किया जा सके।
विधानसभा चुनावों के अलावा यूपी में 10 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव भी हैं,जो कि पार्टी के लिए 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले मोमेंटम सेट करने का एक अच्छा मौका बन सकते हैं। यूपी में मुस्लिम आबादी कई डिसाइडर भी है। ऐसे में विपक्ष के जातिगत कार्ड्स की काट के लिए पार्टी हिंदुत्व और अपने कोर एजेंडों को बल देने के प्रयास कर रही है, जिससे उसे वो समर्थन हासिल हो सके, जो कि उसके अपने ही कोर वोटर्स से 2024 के लोकसभा चुनाव में संभवतः नहीं मिला था।
अब यह देखना अहम होगा कि यह वक्फ बिल जेपीसी के पास जाकर बस अटक ही जाता है, या फिर शीतकालीन सत्र में इस पर कोई रिपोर्ट आती है या नहीं। वहीं अगर रिपोर्ट आ भी गई तो क्या इस मुद्दे पर एनडीए में सहमति बनेगी या यह विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी द्वारा पानी में फेंका गया पत्थर साबित होगा।