Manmohan Singh Death News: देश के पूर्व पीएम मनमोहन सिंह का 92 साल की उम्र में निधन हो गया। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निधन से पाकिस्तान में उनका पैतृक गांव भी दुखी है। गांव के लोग डॉक्टर साहब के लिए अंतिम दुआ करने के लिए इकट्ठा हुए। वे राजा मोहम्मद अली के घर पर मिले। उन्होंने मनमोहन सिंह को उस समय देखा था, जब वे सात दशक पहले चकवाल जिले के इस गांव से एक छोटे बच्चे के तौर पर निकले।

दोनों पक्षों की यही पीड़ा था कि सिंह फिर से यहां की यात्रा नहीं कर सके। मनमोहन सिंह ने एक बार कहा था कि गाह से जुड़ी विभाजन की बहुत सारी दर्दनाक यादें उनके पास हैं। उनके बचपन के दोस्त और सहपाठी अली ने 2008 में मनमोहन सिंह से मुलाकात की थी। हालांकि, गाह के लिए सिंह से इसके जुड़ाव के संकेत हर जगह हैं। जैसा कि अली के भतीजे आशिक हुसैन ने दुआ समारोह में कहा, ‘अगर डॉ. साहब नहीं होते, तो हमारे गांव में दो लेन वाली सड़क, हाई स्कूल और सोलर एनर्जी भी नहीं होते। पूरा गांव अफसोस का इजहार कर रहा है जैसे कोई घर का बड़ा चला गया हो।’

एक अन्य व्यक्ति इबरार अख्तर जंजुआ ने कहा, ‘उन्होंने हमारे लिए बहुत कुछ किया, हमारी इच्छा थी कि वह कम से कम एक बार अपने गांव आएं। लेकिन वह इच्छा पूरी नहीं हुई।’ आशिक ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि अली मनमोहन सिंह के बारे में बहुत सारी कहानियां सुना करते थे, खास तौर पर वे कितने पढ़ने-लिखने वाले थे, यह एक ऐसी बात है जो पूर्व प्रधानमंत्री के बारे में बातचीत में अक्सर सामने आती है। जब वे दिल्ली में मिले, तो डॉ. साहब ने अपनी पत्नी गुरशरण कौर को बताया कि जबकि वे पेड़ों से पत्थर मारकर जामुन तोड़ते थे, मेरे चाचा उन्हें सब खा जाते थे।

मनमोहन सिंह का मैसेज भी आया

आशिक ने बताया कि जब अली का निधन हुआ तो भारतीय हाईकमीशन से एक शोक पत्र आया था। इसमें मनमोहन सिंह का एक मैसेज भी आया था। गाह में जन्मे सिंह ने स्थानीय सरकारी स्कूल में एडमिशन लेने से पहले एक स्थानीय गुरुद्वारे में उर्दू और पंजाबी की शिक्षा ली। बाद में अपने पिता गुरमुख सिंह के साथ पेशावर चले जाने के बाद उन्होंने खालसा स्कूल में पढ़ाई की। विभाजन के दंगों के दौरान अपने दादा संत सिंह को खोने के सदमे के बाद परिवार 1947 में भारत आ गया।

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मनमोहन सिंह अपने दादा की हत्या से उबर नहीं पाए

मनमोहन सिंह की बेटी दमन सिंह ने अपनी किताब स्ट्रिक्टली पर्सनल मनमोहन एंड गुरशरण में बताया था कि कैसे सिंह विभाजन के दंगों के दौरान अपने दादा की हत्या के दर्द से कभी उबर नहीं पाए। किताब के अनुसार, जब उनकी दूसरी बेटी किकी ने पूछा कि क्या वह कभी गाह लौटना चाहेंगे, तो उन्होंने विनम्रता से जवाब दिया, “नहीं, वास्तव में नहीं। यहीं पर मेरे दादा की हत्या हुई थी।” हालांकि 2014 में प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के आखिर में उन्होंने पाकिस्तान में अपने जन्मस्थान की यात्रा करने की इच्छा जाहिर की थी, लेकिन जब हालात सामान्य हों। हालांकि, ऐसा कभी भी हो नहीं पाया।

मनमोहन सिंह के पैतृक गांव को मॉडल बनाया

जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने और गाह से उनके संबंध जगजाहिर हुए, तो स्थानीय सरकार ने तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के आदेश पर इसे ‘मॉडल गांव’ के तौर पर विकसित करने की कसम खाई। सड़कें, एक स्वास्थ्य केंद्र, एक सरकारी हाई स्कूल और उसके बाद स्ट्रीट लाइट, गांव की मस्जिदों में सोलर एनर्जी से चलने वाले वॉटर हीटर, कंप्यूटर और सरकारी स्कूल के लिए फर्नीचर बनाया गया। पाकिस्तान सरकार ने यह भी घोषणा की कि वह सिंह के स्कूल का नाम बदलकर उनके नाम पर रखेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

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गाह गांव का बदला पूरा मॉडल

प्राइमरी स्कूल के वर्तमान प्रधानाध्यापक अल्ताफ हुसैन ने इंडियन एक्सप्रेस को फोन पर बताया कि जब से सिंह भारत के वजीर-ए-आजम बने हैं, तब से वे गाह के लोगों की प्रार्थनाओं में शामिल हैं। अल्ताफ ने कहा कि यह केवल उनकी वजह से ही संभव हो पाया कि पाकिस्तान सरकार ने भी गांव पर ध्यान दिया। गाह के लोगों के लिए यह एक बड़ा पल था जब हमें यहां से 30 किलोमीटर दूर चकवाल शहर तक पक्की सड़क मिल गई। पहले यह अकेले ही एक बड़ा काम था। गाह को आदर्श गांव घोषित किए जाने के बाद, लड़कों और लड़कियों दोनों के लिए एक हाई स्कूल भी खोला गया। ‘जब बाबा का निधन हुआ, तो कांग्रेस ने शोक सभा के लिए…’, आखिर किस बात को लेकर भड़कीं प्रणब मुखर्जी की बेटी पढ़ें पूरी खबर…