Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 142 के तहत अपनी असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए नाबालिग के साथ यौन संबंध बनाने के दोषी व्यक्ति को कोई सजा नहीं दी। पीड़िता,जो अब आरोपी की पत्नी है। उसका कहना है कि वो इसे जघन्य अपराध नहीं मानती है।

विशेषज्ञ पैनल की रिपोर्ट का हवाला देते हुए जस्टिस अभय ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुयान की पीठ ने शुक्रवार को कहा कि पीड़िता, जो अब उस व्यक्ति की पत्नी है, उसने इस कृत्य को अपराध नहीं माना तथा घटना के कानूनी परिणामों के कारण उसे अधिक कष्ट सहना पड़ा।

इंडिया टुडे की खबर के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पीड़िता ने इसे जघन्य अपराध नहीं माना। समाज ने उसे दोषी ठहराया, कानूनी व्यवस्था ने उसे विफल कर दिया, परिवार ने उसे त्याग दिया। परिणामस्वरूप उसे पुलिस, कानूनी व्यवस्था और आरोपी को सजा से बचाने के लिए लगातार संघर्ष करना पड़ा।

जस्टिस ओका ने कहा कि पीड़िता भावनात्मक रूप से आरोपी से जुड़ गई थी। इस मामले को सभी के लिए “आंख खोलने वाला” बताते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि इसने “कानूनी व्यवस्था में खामियों” को उजागर किया है।

पूरा मामला क्या है?

यह घटना 2018 की है, जब 14 साल की लड़की के परिवार ने उसके लापता होने की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। कुछ दिनों बाद पता चला कि उसने 25 साल के एक व्यक्ति से शादी कर ली है। लड़की के परिवार ने मामला दर्ज कराया और स्थानीय अदालत ने उस व्यक्ति को POCSO अधिनियम के तहत दोषी ठहराया और उसे 20 साल की जेल की सजा सुनाई।

साल 2023 में कलकत्ता हाई कोर्ट ने उस व्यक्ति को बरी कर दिया, लेकिन मामले की ओर ध्यान आकर्षित करने वाली बात थी किशोर कामुकता और नैतिक दायित्वों पर उसकी विवादास्पद टिप्पणी।

अपने आदेश में हाई कोर्ट ने कहा कि किशोरियों को “यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए” जबकि इस बात पर जोर दिया कि समाज उन्हें ऐसे मामलों में “असफल” मानता है। कोर्ट की टिप्पणी की न केवल व्यापक निंदा हुई, बल्कि इसने सर्वोच्च न्यायालय को हस्तक्षेप करने के लिए मजबूर किया।

सुप्रीम कोर्ट ने किया हस्तक्षेप

अगस्त 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाई कोर्ट के फ़ैसले को रद्द करते हुए उस व्यक्ति की सज़ा को बहाल कर दिया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने उस व्यक्ति की सजा पर रोक लगा दी और पश्चिम बंगाल सरकार को एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का आदेश दिया।

मनोवैज्ञानिकों और बाल कल्याण अधिकारियों वाली समिति को पीड़िता की वर्तमान भावनात्मक स्थिति और उसके सामाजिक कल्याण का मूल्यांकन करने का कार्य सौंपा गया था।

जस्टिस नागरत्ना का सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम का हिस्सा बनना तय

इस साल की शुरुआत में पैनल ने अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी थी। रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि पीड़िता भावनात्मक रूप से आरोपी से जुड़ी हुई थी और अपने परिवार को लेकर “बहुत ज़्यादा अधिकार जताने वाली” थी।

इन परिस्थितियों में सुप्रीम कोर्ट ने “पूर्ण न्याय” करने के लिए अनुच्छेद 142 का प्रयोग करते हुए कहा कि अभियुक्त को सजा देने से न्याय नहीं होगा, बल्कि इससे परिवार में अशांति पैदा होगी। कोर्ट ने कहा कि उसे पहले सूचित निर्णय लेने का अवसर नहीं मिला। व्यवस्था ने उसे कई स्तरों पर विफल कर दिया।

इससे पहले, डीएमके सरकार द्वारा कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल के पास लंबित विधेयकों को मंजूरी देने के लिए अनुच्छेद 142 का सहारा लिया था। वहीं, वकीलों के हेल्थ इंश्योरेंस को लिए कपिल सिब्बल ने अंबानी-अडानी से 50 करोड़ रुपये मांगे। जिसका SC बार एसोसिएशन में ही विरोध हुआ। पढ़ें…पूरी खबर।