Madhya Pradesh News: वीआईटी भोपाल यूनिवर्सिटी प्रशासन ने परिसर में पीलिया के प्रकोप को छिपाने की कोशिश की। यह बात हिंसा की जांच के लिए गठित एक आधिकारिक पैनल की रिपोर्ट में कही गई है। लगभग 4000 छात्रों ने यूनिवर्सिटी परिसर में उत्पात मचाया था। इस जांच में यह भी पाया गया कि प्रशासन ने परिसर को एक किले जैसी संरचना में बदल दिया था। वहां पर खानी और पानी की सुविधाएं भी बहुत ज्यादा खराब थीं।

मध्य प्रदेश प्राइवेट यूनिवर्सिटी रेग्युलेटरी कमीशन ने हिंसा और आगजनी के बाद तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन किया गया था। हिंसा तब भड़की जब परिसर में कई छात्रों को पीलिया हो गया और तीन की मौत की अफवाह फैल गई। यूनिवर्सिटी ने बाद में साफ किया था कि दो मौतें हुई थीं, लेकिन दोनों ही पीलिया से संबंधित नहीं थीं।

हॉस्टल की मेस सेवाएं काफी असंतोषजनक

समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा, “हॉस्टल की मेस सेवाएं काफी असंतोषजनक हैं और खाने और जलपान की क्वालिटी के बारे में ज्यादातर हॉस्टल निवासियों से नकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है।” छात्राओं ने समिति को बताया कि पीने के पानी से बदबू आ रही है। मैनेजमेंट ने समिति के सामने माना कि 23 छात्र और 12 छात्राएं पीलिया से पीड़ित हैं। समिति ने कहा, “कैंपस के हेल्थ सेंटर के पास इस बात का कोई सटीक रिकॉर्ड नहीं था कि कितने छात्र पीलिया से पीड़ित हुए।”

समिति ने आरोप लगाया, “बीमारी के प्रसार की जानकारी होने के बावजूद प्रशासन ने इसे छुपाया और मामले को दबाने का प्रयास किया।” समिति ने कहा कि “परिसर को किलेनुमा संरचना में बदल दिया गया है और यहां तक ​​कि जिले के टॉप मेडिकल ऑफिस को मेन गेट के बाहर दो घंटे तक इंतजार करना पड़ा।

मैनेजमेंट अपने ही नियम लागू करता है- रिपोर्ट

रिपोर्ट में कहा गया है, “कैंपस की चारदीवारी के अंदर, मैनेजमेंट अपने ही नियम लागू करता है। किसी को भी उनके बारे में बोलने या प्रतिक्रिया देने की इजाजत नहीं है। कैंपस में अपनाए गए तानाशाही रवैये का एक ज्वलंत उदाहरण यह है कि सीहोर जिले के चीफ मेडिकल एंड हेल्थ ऑफिसर को मेन गेट पर दो घंटे तक रोके रखा गया।”

छात्रों ने समिति को बताया कि उन्हें “शिकायत करने पर लगातार उत्पीड़न की धमकी दी जाती है।” उन्होंने कहा, “अनुशासन के नाम पर उनके आई-कार्ड जब्त कर लिए जाते हैं, उन्हें परीक्षा में बैठने से रोक दिया जाता है, कम अंक देने या प्रैक्टिकल परीक्षा में फेल करने की धमकी दी जाती है।”

ये भी पढ़ें: जब एक कॉलेज की अव्यवस्था ने 4 हजार छात्रों को सड़क पर ला दिया

समिति ने कहा, “खाने की व्यवस्था से जुड़ी शिकायतों का समाधान नहीं किया जाता और छात्रों से बस यही कहा जाता है कि जो भी परोसा जाए, वही खाएं।” समिति ने कहा कि “विश्वविद्यालय में अनुशासन का आधार आपसी विश्वास नहीं, बल्कि भय-आधारित अनुशासन का माहौल है।” समिति ने कहा कि मैनेजमेंट अति-आत्मविश्वास की स्थिति में है, यह मानकर कि वह किसी भी स्थिति से निपट सकता है।

रिपोर्ट में कहा गया है, “छात्रों में असंतोष बढ़ता जा रहा था, लेकिन यूनिवर्सिटी प्रशासन ने उन्हें दूर करने या संतुष्ट करने के लिए कोई उचित कदम नहीं उठाया। जब स्थिति पूरी तरह से कंट्रोल से बाहर हो गई और छात्रों को कंट्रोल करना संभव नहीं रहा तब मैनेजमेंट ने रात 2 बजे पुलिस प्रशासन को सूचित किया, जिसके बाद पुलिस ने व्यवस्था बहाल की।”

छात्रों में बढ़ रहा था गुस्सा- समिति

समिति ने तनाव बढ़ने का कारण बताते हुए कहा, “डर के आधार पर लगाए गए अनुशासन के खिलाफ छात्रों में गुस्सा बढ़ रहा था, जिसे मैनेजमेंट पूरी तरह से समझने में विफल रहा।” रिपोर्ट में कहा गया है, “जब छात्रों ने अपने साथियों को बीमार पड़ते देखा और मैनेजमेंट ने उन्हें अस्पताल ले जाने के बजाय घर जाने की सलाह दी, तो वे भड़क गए। छात्रों के गुस्से को शांत करने के बजाय, वार्डन और गार्डों ने उनके साथ दुर्व्यवहार और मारपीट की, जिससे उनका गुस्सा और बढ़ गया।”

यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर केके नायर ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया , “हमने समिति की रिपोर्ट नहीं पढ़ी है। उन्होंने केवल इस बात पर चर्चा की है कि रात में हिंसा कैसे भड़की; उन्होंने परिसर में कथित सत्तावादी व्यवस्था जैसे किसी भी पहलू पर चर्चा नहीं की है।” इस बीच हाईयर एजुकेशन डिपार्टमेंट के डिप्टी सेक्रेटरी वीरेन सिंह भलावी ने मध्य प्रदेश यूनिवर्सिटी एक्ट 2007 की धारा 41 (1) के तहत कुलाधिपति को कारण बताओ नोटिस जारी कर सात दिनों के भीतर जवाब मांगा है।

ये भी पढ़ें: कैंपस में पीलिया फैलने से छात्र नाराज