उत्तराखंड में शानदार सरकारी बंगले के लिए किराया महज एक हजार रुपए प्रति महीना लगता है, पर यह मामूली सी रकम सिर्फ बीजेपी के चंद पूर्व मुख्यमंत्रियों के लिए ही है। दरअसल, उत्तराखंड के पांच पूर्व मुख्यमंत्रियों पर करीब 2.8 करोड़ रुपए किराए के रूप में बकाया हैं। यह रकम सरकारी बंगलों में की जाने उनकी आवाभगत पर खर्च हुई थी, लेकिन सूबे में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार इनसे यह पैसे वसूलने के बजाय पूर्व मुख्यमंत्रियों को उल्टा राहत देने के लिए अध्यादेश ले आई। यह अध्यादेश ‘The Uttarakhand Former Chief Minister Facility (Residential and other facilities) Ordinance, 2019’ है।

‘द वायर’ की रिपोर्ट के मुताबिक, अध्यादेश के तहत रमेश पोखरियाल निंशक, भुवन चंद्र खंडूरी, भगत सिंह कोश्यारी, विजय बहुगुणा और दिवंगत एन.डी तिवारी सरीखे पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी बंगले में विभिन्न सुविधाएं मुफ्त में दी जाती रही थीं। राज्य सरकार ने इसके अलावा वह किराया भी इन पूर्व सीएम को अपनी तरफ से दिया, जो इन सबसे उसे वसूलना था।

मसूरी स्थित एकैडमी ऑफ सिविल सर्वेंट्स में पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन पढ़ा चुके सामाजिक कार्यकर्ता अवधेश कौशल ने अपनी गैर सरकारी संस्था Rural Litigation and Entitlement Kendra (RLEK) के जरिए इस मामले को लेकर उत्तराखंड हाईकोर्ट में जनहित याचिका दी। याचिका में पूछा कि सरकारी बंगले के लिए पूर्व सीएम को बाजार के हिसाब से तय किराया देना था, पर कार्यकाल पूरा होने के बाद भी उन्हें इस चीज का लाभ (कम पैसों में बंगला) मिलता रहा।

कौशल ने याचिका में आगे कहा, “यह बेहद अजीब है। कर्मचारियों की तनख्वाह देने के लिए पैसे उधार लिए जा रहे हैं। सरकार ने इसके अलावा बढ़ते घाटे की पूर्ति के लिए बिजली-पानी संबंधी सेवाओं के दाम भी बढ़ा दिए। फिर भी वह 2.8 करोड़ रुपए की पेनाल्टी माफ करना चाहती है, जिसे हाईकोर्ट ने पांच पूर्व सीएम पर लगाया है – ये सभी एक ही पार्टी के हैं।”

उनका आरोप है कि इन बड़े बंगलों में ये जो पूर्व-मुख्यमंत्री में रहे हैं, वह ‘पूरी तरह से अवैध’ था। वे बिजली-पानी तक के लिए नहीं पैसे चुका रहे थे। राज्य में ऐसा कोई कानून भी नहीं था, जिसमें पूर्व सीएम को इस तरह से सरकारी सुविधाएं मिलती हों। ऐसे में हमने अपील कि सरकार इन पूर्व सीएम से मार्केट रेट के हिसाब से पैसे वसूले। पर सरकार ने इन पर कोई कार्रवाई करने के बजाय प्रति माह एक हजार रुपए वसूले।

याचिकाकर्ता का यह भी दावा है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार का यह फैसला पूरी तरह से बेतुका है। हाईकोर्ट इस मामले में पांचों पूर्व सीएम को 2.8 करोड़ रुपए की रकम (मार्केट रेंट) चुकाने का आदेश दे चुका है। बकौल कौशल, “हमने पूछा- 1000 रुपए में झोपड़ी भी नहीं मिलती है। आप पूरे बंगले के लिए यह रकम कैसे ले सकते हैं? हम हाईकोर्ट भी गए, तब सरकार नए मार्केट रेट पर राजी हुई। उसी के मुताबिक, इन पूर्व सीएम को हाईकोर्ट ने पेनाल्टी के रूप में 2.8 करोड़ रुपए चुकाने को कहा है।”

इसी मसले पर ‘एचटी’ की खबर में बताया गया कि अध्यादेश को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर 12 सितंबर को चीफ जस्टिस रमेश रंगनाथन और जस्टिस आलोक कुमार की डिविजन बेंच ने सुनवाई की थी। याचिकाकर्ता के वकील कार्तिकेय हरि गुप्ता ने इस अध्यादेश को असंवैधानिक करार दिया था। गुप्ता के हवाले से बताया गया, “ऐसे अधिकार राज्य सरकार के पास नहीं हैं। वे (राज्य सरकार) कोर्ट का फैसला रद्द करने के लिए इस तरह से कानून नहीं पास कर सकते हैं। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता को महसूस हुआ कि पूर्व सीएम और अब महाराष्ट्र के मौजूदा राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी भी इस केस का हिस्सा हैं।”

याचिकाकर्ता के वकील का आरोप है कि इस तरह के अध्यादेश सिर्फ जरूरत पड़ने पर ही लाए जा सकते हैं और सुप्रीम कोर्ट भी इस बारे में साफ कर चुका है कि जब बेहद जरूरी हो तभी इस तरह के अध्यादेश लाए जाएं। बता दें कि पांच सितंबर को उत्तराखंड की राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने ‘The Uttarakhand Former Chief Minister Facility (Residential and other facilities) Ordinance 2019’, को मंजूरी दे दी थी, जो कि सूबे के पूर्व मुख्यमंत्रियों को कई सुविधाएं मुफ्त में मुहैया कराती है।

तीन मई 2019 को हाईकोर्ट ने उक्त पूर्व मुख्यमंत्रियों को मार्केट रेंट के हिसाब से 2.8 करोड़ रुपए बकाया कर्ज के रूप में छह महीनों के भीतर भरने का आदेश दिया था। साथ ही यह भी कहा गया था कि इन नेताओं द्वारा सरकार की ओर से दी जाने वाली बिजली, पानी, पेट्रोल, तेल और अन्य चीजों की जो सुविधाएं ली गईं, उनके खर्च का हिसाब भी राज्य सरकार चार महीने के अंदर फिर से जोड़ कर इन पूर्व सीएम को बताए और उनसे वसूले।