सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार (9 मई) को नौ बागी कांग्रेस विधायकों के बारे में हाई कोर्ट को फैसले को कायम रखा है। इससे पहले हाई कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति यूसी ध्यानी ने विधानसभा अध्यक्ष के फैसले के विरुद्ध इन बागी कांग्रेस विधायकों की दो रिट याचिकाएं खारिज कर दीं। फैसले में 18 मार्च को राज्यपाल को सौंपे गए भाजपा विधायकों के साथ इन नौ विधायकों के हस्ताक्षर वाले ज्ञापन का भी हवाला दिया गया और न्यायालय ने कहा कि असंतोष दसवीं अनुसूची के तहत दलबदल नहीं है और कहा कि असंतोष दल-बदल की इजाजत नहीं देता। उच्च न्यायालय के फैसले के शीघ्र बाद विधायक इस आदेश को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय पहुंचे और उन्होंने विधानसभा में शक्ति परीक्षण में भाग लेने देने के लिए तत्काल राहत मांगी। लेकिन आला अदालत से उन्हें कोई राहत नहीं मिली।

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सर्वोच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति शिवकीर्ति सिंह के पीठ ने बागियों के मामले की सुनवाई की अगली तारीख 12 जुलाई तय करते हुए कहा, ‘(उच्च न्यायालय के फैसले पर स्थगन संबंधी) अंतरिम राहत की प्रार्थना पर अगली सुनवाई की तारीख को विचार किया जा सकता है।’ न्यायालय ने विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल को नोटिस जारी किया जिन्होंने इन विधायकों को अयोग्य ठहराया है। अयोग्य ठहराए गए विधायकों के वकील सीए सुदंरम ने उससे पहले दिन में आए उच्च न्यायालय के फैसले का यह मामला प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर के सामने रखा। प्रधान न्यायाधीश ने उनसे उस पीठ के पास जाने को कहा जिसने शुक्रवार को शक्ति परीक्षण का आदेश दिया था।

न्यायमूर्ति मिश्रा और न्यायमूर्ति सिंह के पीठ ने शुक्रवार (6 मई) के उसके आदेश में यह संशोधन करने का केंद्र का अनुरोध मान लिया कि बर्खास्त मुख्यमंत्री हरीश रावत द्वारा लाए गए विश्वास-मत प्रस्ताव पर उत्तराखंड में मंगलवार शक्ति परीक्षण के दौरान मत विभाजन राज्य के प्रधान सचिव (विधानसभा और संसदीय मामले) के निरीक्षण में हो।

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विधानसभा में दस मई को शक्ति परीक्षण का आदेश देते हुए शीर्ष अदालत ने कहा था कि अगर विश्वास मत के परीक्षण के वक्त उनका (अयोग्य ठहराए गए विधायकों का) वही दर्जा रहता है तो वे सदन में हिस्सा नहीं ले सकते। शीर्ष अदालत ने कहा था कि विशेष रूप से बुलाया गया सत्र शक्ति परीक्षण के एकमात्र एजंडे के लिए ग्यारह बजे से एक बजे तक चलेगा। इसके लिए राष्ट्रपति शासन इस अवधि के लिए लागू नहीं रहेगा।

इससे पहले पहले हाई कोर्ट ने नौ कांग्रेस विधायकों की उन्हें अयोग्य ठहरो जाने की चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी थी। न्यायमूर्ति यूसी ध्यानी ने विधानसभा अध्यक्ष के फैसले के विरुद्ध इन बागी कांग्रेस विधायकों की दो रिट याचिकाएं खारिज कर दीं। न्यायतमूर्ति ध्यानी ने कहा कि अपने आचरण से इन विधायकों ने अपने राजनीतिक दल की सदस्यता स्वेच्छा से छोड़ दी है जो दलबदल कानून के तहत अयोग्य ठहराए जाने का आधार है।

न्यायमूर्ति ध्यानी ने 57 पन्नों के अपने फैसले में कहा, यह अदालत प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के आधार पर अध्यक्ष के कृत्य की समीक्षा के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि याचिकाकर्ताओं के विरुद्ध संविधान की दसवीं अनुसूची के अनुच्छेद 2(1) (ए) के अवयव पूरे होते हैं।

पीठ ने कहा, आपके आचरण से, यह स्थापित हो गया है कि वे अन्य किसी राजनीतिक दल का सदस्य भले नहीं बने हों, लेकिन उन्होंने अपने राजनीतिक दल की सदस्यता स्वेच्छा से छोड़ दी। इन नौ अयोग्य विधायकों को छोड़कर विधानसभा में अब सदस्यों की प्रभावी संख्या 61 है। उनमें कांग्रेस के अपने 27 विधायक हैं और वे छह सदस्यीय पीडीएफ के समर्थन का दावा करती है जिससे उसका संख्या बल 33 तक पहुंचता है। रावत को सामान्य बहुमत के लिए 31 विधायकों के समर्थन की जरूरत है।