अजय प्रताप तिवारी
भारत में आर्थिक विकास दर बढ़ी, उद्योगों से लाभ हुआ, संवेदी सूचकांक में उछाल भी आया, पर रोजगार के अवसरों में कोई बदलाव नहीं हुआ। सरकारी मुहिम ‘मेक इन इंडिया’ के अंतर्गत विदेशी कंपनियां भारत में अपने उत्पाद बेचने के उद्देश्य से यहां उद्योग लगा रही हैं। पर ये युवाओं को पर्याप्त रोजगार उपलब्ध कराने में सफल साबित नहीं हो रही हैं।
विशेषज्ञ मानते हैं कि समृद्ध लोकतंत्र में आर्थिक प्रणाली को कुछ इस तरह से बढ़ावा देना चाहिए, जहां व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य आर्थिक वृद्धि हो। उसमें सभी नागरिकों का सर्वांगीण विकास संभव हो। विकास का माडल ऐसा हो, जिसमें रोजगार के अवसर, गरीब वर्गों का उत्थान और किसानों की समृद्धि सुनिश्चित हो सके तथा महंगाई की दर कम रहे। भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर लगातार बढ़ रही है।
भारत 2027 तक पांच खरब डालर की अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है। हाल में जारी ‘संयुक्त राष्ट्र आर्थिक परिदृश्य एवं संभावनाएं-2024’ शीर्षक रिपोर्ट में भारत का सकल घरेलू उत्पाद 6.2 फीसद रहने का अनुमान लगाया गया है। ऐसे में तेजी से आगे बढ़ रही भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रमुख पहलुओं पर ध्यान देना जरूरी हो जाता है।
भारतीय व्यवस्था के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती महंगाई, बेरोजगारी, भुखमरी, आर्थिक असमानता और गरीबी से पार पाना है। इस वक्त बेरोजगारी एक गंभीर मुद्दा है। यह भारत के आर्थिक विकास में अवरोधक है। उसी अर्थव्यवस्था को संतुलित माना जाता है, जिसमें आर्थिक विकास के साथ-साथ रोजगार के नए अवसर भी सृजित होते हों। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में कुल कार्यबल और जनसंख्या के लिहाज से भारत दुनिया का सबसे बड़ा देश है। यहां युवाओं की आबादी अन्य देशों की अपेक्षा ज्यादा है। मगर हमारे यहां जनसंख्या और श्रमबल क्षमता अधिक होने के बावजूद आर्थिक असमानता भी अन्य देशों की तुलना में अधिक है।
हाल में जारी आक्सफैम-2024 की रिपोर्ट में चौंकाने वाली बातें उभर कर सामने आई हैं। पिछले कई वर्षों से विश्व में आर्थिक असमानता बढ़ रही है। यह आर्थिक तंत्र के लिए बहुत निराशाजनक और चिंताजनक बात है। आर्थिक असमानता के मामले में भारत के संदर्भ में कोई विशेष सुधार नहीं दिखाई देता है। भारत की कुल संपत्ति का चालीस फीसद हिस्सा देश के एक फीसद अमीर लोगों के पास है।
वर्तमान में भारत के इक्कीस सबसे अमीर अरबपतियों के पास देश के सत्तर करोड़ लोगों से ज्यादा संपत्ति है। आधी आबादी के पास देश की कुल संपत्ति का केवल तीन फीसद है। यहां अरबपतियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। देश में वर्ष 2020 में 102 अरबपति थे, 2022 में 166 और 2023 में यह आंकड़ा 200 के करीब पहुंच गया है। इस तरह आर्थिक असमानता से गरीबी, बेरोजगारी और भुखमरी बढ़ती तथा शिक्षा का विकास रुक जाता है।
अगर भारत में बेरोजगारी के पिछले दस वर्षों के आंकड़ों पर गौर करें तो इसे दूर करने संबंधी प्रयास निराशाजनक नजर आते हैं। बेरोजगारी दर में उतार-चढ़ाव से देश के विकास पर दूरगामी प्रभाव पड़ता है। हाल में जारी ‘स्टेट आफ वर्किंग इंडिया-2023’ की रपट में भारत में रोजगार को लेकर बहुत निराशाजनक तस्वीर उभर कर सामने आई है।
रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वर्ष 2019 के बाद से सरकारी संगठनों और नियमित मान्य वेतन की नौकरियों का सृजन बहुत धीमी गति से हुआ है। यह युवाओं का देश है, लेकिन आज युवा सबसे ज्यादा परेशान नजर आ रहा है। ‘नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क’ की रपट से पता चलता है कि भारत में हर वर्ष पचास लाख युवा उच्च शिक्षा की ओर रुख करते हैं, जिनकी उम्र करीब उन्नीस-बीस वर्ष होती है।
ये युवा अपनी स्नातक की पढ़ाई लगभग चौबीस वर्ष की उम्र तक पूरी कर लेते हैं। जबकि भारत में पच्चीस वर्ष से कम उम्र के युवाओं में स्नातक स्तर पर बयालीस फीसद बेरोजगार हैं। परास्नातक की पढ़ाई करने के पश्चात या जिनकी उम्र पच्चीस से उनतीस वर्ष के बीच है, उनमें बेरोजगारी 22.8 फीसद है। इसी तरह तीस से पैंतीस वर्ष उम्र के पढ़े-लिखे युवाओं में बेरोजगारी 9.8 फीसद है। इससे ऊपर की उम्र के शिक्षित युवाओं में बेरोजगारी दर लगभग पांच फीसद है।
मार्च, 2023 के ‘सेंटर फार मानिटरिंग इंडियन इकोनामी’ की रपट के अनुसार, भारत की बेरोजगारी दर 8.11 फीसद थी, जिसमें शहरी क्षेत्र में करीब आठ फीसद और ग्रामीण क्षेत्रों में 7.44 फीसद थी। जबकि वर्ष 2021 के नवंबर में भारत में बेरोजगारी दर आठ फीसद थी, जो दिसंबर 2022 में लगभग नौ फीसद तक पहुंच गई थी। देश में बेरोजगारी एक गंभीर मुद्दा है। विभिन्न क्षेत्रों और उद्योगों में भिन्नताएं देखी जाती हैं।
ब्लूमबर्ग के नवीनतम अध्ययन में सितंबर, 2023 तक देश में कुल बेरोजगारी दर 7.95 फीसद रहने की उम्मीद जताई गई थी। देश में पिछले दस वर्षों में बेरोजगारी की दर में लगातार वृद्धि देखी गई है। वर्ष 2014 में यह 5.44 फीसद और 2020 में आठ फीसद थी। वर्ष 2023 के अक्तूबर माह में बेरोजगारी दर 10.1 फीसद पर पहुंच गई थी। यहां श्रमबल की भागीदारी लगभग 46 फीसद है। यानी कुल कामकाजी आयुवर्ग के प्रत्येक सौ भारतीयों में से चौवन तो श्रमबल में भागीदार ही नहीं हैं। वर्ष 2018-19 में नियमित वेतनभोगी कर्मचारियों का हिस्सा कुल चौबीस फीसद था, जो वर्तमान में घटकर इक्कीस फीसद रह गया है।
बेरोजगारी आज दुनिया भर के देशों के लिए एक गंभीर विषय है। इसे मुद्दा बनाकर राजनीतिक पार्टियां चुनाव लड़ती रही हैं। ‘वर्ल्ड आफ स्टैटिस्टिक्स’ की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत बेरोजगारी के मामले में दुनिया में सातवें स्थान पर है। बढ़ती बेरोजगारी पर नजर डालें तो इसके कई कारण स्पष्ट होते हैं। इनमें जनसंख्या वृद्धि प्रमुख कारण है। कोविड महामारी से उत्पन्न आर्थिक दिक्कतें, व्यावसायिक कौशल की कमी, खराब शैक्षिक उपलब्धियां, कृषि क्षेत्र में कम उत्पादकता, विनिर्माण क्षेत्र में कम निवेश और अपर्याप्त ढांचागत विकास माध्यमिक क्षेत्र में नौकरी के अवसरों को सीमित करता है।
भारत में आर्थिक विकास दर बढ़ी, उद्योगों से लाभ हुआ, संवेदी सूचकांक में उछाल भी आया, पर रोजगार के अवसरों में कोई बदलाव नहीं हुआ। सरकारी मुहिम ‘मेक इन इंडिया’ के अंतर्गत विदेशी कंपनियां भारत में अपने उत्पाद बेचने के उद्देश्य से यहां उद्योग लगा रही हैं। पर ये युवाओं को पर्याप्त रोजगार उपलब्ध कराने में सफल साबित नहीं हो रही हैं।
भारत में रोजगार के सबसे ज्यादा अवसर लघु, सूक्ष्म और मध्यम दर्जे के उद्योग सृजित करते हैं। एक अनुमान के मुताबिक, लघु और मध्यम उद्योग कुल चालीस फीसद रोजगार उपलब्ध कराते हैं। इन क्षेत्रों को भी सरकारी नीतियों से अपेक्षाजनक बढ़ावा नहीं मिल पा रहा है। भारत में सबसे ज्यादा साठ फीसद श्रमशक्ति ग्रामीण क्षेत्रों में है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत का बाजार असंगठित और सस्ते श्रम पर आधारित है। यहां पर 92 फीसद लोग असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे हैं। वर्तमान समय में भारत में रोजगार की दर 40 फीसद है। यानी यहां पर सौ लोगों में से सिर्फ चालीस लोगों के लिए काम उपलब्ध है, बाकी साठ लोगों के पास कोई काम नहीं है।
देश में रोजगार की उपलब्धता कम होने से प्रतिभा संपन्न युवाओं का अन्य देशों और राज्यों में पलायन होने लगता है, जो देश के लिए कई तरह से नुकसान पहुंचाता है। कोविड महामारी के बाद से रोजगार की संरचना में काफी बदलाव आया है, बड़ी-बड़ी निजी कंपनियां कामगारों की छंटनी कर रही हैं। निजी क्षेत्र में रोजगार की सुरक्षा नहीं दिखाई देती। इसलिए सरकारी नौकरियों पर दबाव बढ़ रहा है।
सरकारी नौकरियों में रोजगार सुरक्षा के अतिरिक्त अन्य सुविधाएं भी मिलती हैं। ऐसे में भारत को एक स्पष्ट कार्ययोजना बनाकर प्रतिभा संपन्न युवाओं की श्रमशक्ति का सदुपयोग करना चाहिए। सरकार को ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ की तर्ज पर ‘एक घर एक नौकरी’ की पहल करनी चाहिए, जिससे देश के प्रत्येक घर में आर्थिक संपन्नता संभव हो सके।