लोक जनशक्ति पार्टी का विवाद रविवार को खुलकर सामने आ गया। पार्टी के पांच सांसदों ने चिराग पासवान के खिलाफ विद्रोह कर दिया। राजनीतिक हलकों में इस बात की चर्चा काफी दिनों से की जा रही थी कि पशुपति नाथ पारस और चिराग पासवान के बीच सबकुछ सही नहीं चल रहा है। रामविलास पासवान जब बीमार थे तब यह विवाद बढ़ता गया।
लोजपा की कमान चिराग के हाथों में आने के बाद पारस को साइड लाइन करने की तैयारी होती रही। पार्टी नेताओं का आरोप है कि चिराग पासवान एक तरफा फैसला पार्टी की तरफ से लेने लगे थे। साथ ही उनके सहयोगी और करीबी सौरभ पांडे से भी पूरी पार्टी नाराज चल रही थी। हालांकि चिराग पासवान को अपने चचेरे भाई और सांसद प्रिंस राज का साथ मिलता रहा था लेकिन राजू तिवारी को कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद वो भी उनसे नाराज हो गए।
2020 में पिता रामविलास पासवान के निधन के बाद लोजपा का कार्यभार संभालने वाले चिराग अब पार्टी में अलग-थलग पड़ते नजर आ रहे हैं। उनके करीबी सूत्रों ने जनता दल (यूनाइटेड) को इस बंटवारे के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि पार्टी लंबे समय से लोजपा अध्यक्ष को अलग-थलग करने की कोशिश कर रही थी क्योंकि 2020 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ जाने के चिराग के फैसले से सत्ताधारी पार्टी को काफी नुकसान पहुंचा था।
लोजपा को तोड़ने में जदयू नेताओं ने भी अहम भूमिका निभायी है। जदयू के वरिष्ठ नेता ललन सिंह को इस पूरे घटनाक्रम का सूत्रधार माना जा रहा है। बताते चलें कि पशुपति नाथ पारस नीतीश कुमार की सरकार में मंत्री रह चुके हैं। साथ ही वो जनता दल के दौर में भी नीतीश कुमार और लालू प्रसाद के साथ काम कर चुके हैं। यही कारण है कि नीतीश कुमार को लेकर वो बहुत अधिक कड़ा स्टैंड लेने से बचते रहे हैं।
संगठन पर है मजबूत पकड़: पशुपति नाथ पारस को एक अच्छा संगठन कर्ता माना जाता है। जब शरद यादव से अलग होकर रामविलास पासवान ने अलग राजनीतिक दल का निर्माण किया था तो संगठन को मजबूत करने में पारस ने अहम भूमिका निभायी थी।