दुनिया भर में श्रमिकों के सामाजिक-आर्थिक न्याय के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने भारत सरकार के नए ड्राफ्ट श्रम कानून की आलोचना की है और उसके प्रावधानों पर कई सवाल खड़े किए हैं। भारत सरकार ने इस ड्राफ्ट रूल पर आमलोगों से शनिवार तक अपने सुझाव मांगे थे।

आईएलओ ने “Discussion Paper: Wage Code and Rules” विषय पर एक चर्चा पत्र प्रकाशित किया है, जिसमें इस बात को उजागर किया गया है कि कैसे श्रमिकों की मजदूरी तय की जानी चाहिए और कैसे उसकी समीक्षा होनी चाहिए? आईएलओ ने घरेलू श्रमिकों के लिए उसे लागू करने के तरीकों पर भी सवाल उठाए हैं। चर्चा पत्र आईएलओ के मजदूरी विशेषज्ञ ज़ेवियर एस्टुपिनन ने वी.वी गिरी राष्ट्रीय श्रम संस्थान के शोध सहयोगी अनूप सत्पथी और भारतीय आर्थिक सेवा कैडर के अधिकारी बिकास के. मलिक के साथ मिलकर लिखा है।

इस पत्र में कहा गया है कि सभी राज्यों में न्यूनतम मजदूरी एक समान या उससे अधिक होनी चाहिए। सरकार अब ड्राफ्ट रूल पर लोगों से मिले सुझावों पर चर्चा करेगी और उसके बाद नए कानून अधिसूचित करेगी। ड्राफ्ट रूल के मुताबिक घरेलू सहायकों समेत सभी कामगारों को नई दरों पर भुगतान किया जाएगा लेकिन विवाद की स्थिति में कोई घरेलू सहायक कैसे एम्प्लॉय और एम्प्लॉयर का रिलशेन साबित कर पाएगा, यह एक बड़ी समस्या है क्योंकि कोई भी प्राइवेट हाउसहोल्ड इस बावत न तो कोई नियुक्ति पत्र देता है और न ही कोई लिखित दस्तावेज।

आईएलओ के चर्चा पत्र में आगे कहा गया है, “यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि कोई भी कर्मचारी या मजदूरी करने वाला शख्स प्रख्यापित सार्वभौमिक कवरेज के दायरे से बाहर न हो। इसके अलावा घरेलू कर्मचारियों, छोटे आर्थिक संस्थानों के कर्मी और होम वर्कर्स जैसे कमजोर और कम वेतन वाले अनौपचारिक श्रमिकों को भी इस कवरेज के तहत लक्षित किया जाना चाहिए।” अंग्रेजी अखबार ‘द टेलीग्राफ’ को सत्पथी ने बताया कि घरेलू कामगारों को काम पर रखने के दौरान किसी दस्तावेज पर हस्ताक्षर कराने की आवश्यकता वाले किसी कानूनी प्रावधान की भी जरूरत है। इसे नए ड्राफ्ट रूल में शामिल किया जाना चाहिए।

चर्चा पत्र में मजदूरी निर्धारण के लिए किसी विशेष फार्मूले की कमी पर भी सवाल उठाए गए हैं। ड्राफ्ट रूल में शायद ही मजदूरी निर्धारण के लिए व्यापक मानदंडों को अपनाया गया है। सत्पथी ने कहा कि  भोजन, कपड़े, आवास और इसी तरह के अन्य खर्चे के कारकों को भी मजदूरी निर्धारण में शामिल किया जाना चाहिए था।

भारत आईएलओ के संस्थापक सदस्यों में से एक है और 70 साल से उसके दिशा-निर्देशों पर अमल करता रहा है। चर्चा पत्र में इसका हवाला देते हुए कहा गया है, “भारत 70 साल से भी अधिक समय से न्यूनतम मजदूरी के नियमों का अनुपालन करता रहा है और पिछले 24 वर्षों से NFLMW को लागू करता रहा है, क्या ऐसे में वह न्यूनतम मजदूरी के निर्धारण में अस्पष्टता वाले मापदंड को नहीं छोड़ सकता है?”

सत्पथी ने साल 2018 में उस विशेषज्ञ समिति का नेतृत्व किया था, जिसने संतुलित आहार, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा की विशिष्ट मात्रा में व्यक्त किए गए भोजन के आधार पर प्रति दिन भोजन के खर्च की गणना करने के लिए एक फार्मूला तैयार किया था।

बता दें कि कोरोना और लॉकडाउन के बाद बंद पड़े कल-कारखानों को फिर से चालू कराने के लिए सरकार ने श्रम कानूनों में ढील देते हुए उनके प्रावधानो को हल्का कर दिया है। इस मामले में यूपी सबसे आगे है, जिसने एक अध्यादेश पारित कर सभी श्रम कानूनों पर तीन साल के लिए रोक लगा दी है। इसमें काम के घंटे को आठ से बढ़ाकर 12 घंटे कर दिया गया था। हालांकि, तमाम आलोचनाओं के बाद सरकार ने काम के घंटे बढ़ाने का प्रस्ताव वापस ले लिया है।