उमा भारती बीजेपी की उन चुनिंदा नेताओं में शुमार हैं जो मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की राजनीति में बराबर का दखल रखती हैं। वो उन नेताओं में शामिल हैं जो दोनों सूबों से चुनाव जीत चुकी हैं। लेकिन आज के दौर में लोधी कौम की नेता अपना वजूद बचाने के लिए हाथ पैर मार रही हैं। उन्होंने सार्वजनिक मंचों से 2024 चुनाव से पहले एक्टिव पॉलिसी में आने की बात कही थी। लेकिन हाईकमान ने उनकी बात को अनसुना कर दिया।
उसके बाद में वो मध्य प्रदेश की राजनीति में लौटीं और वहां की शिवराज सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। कभी वो शराब की दुकान पर पत्थर फेंकती दिखीं तो कभी खुलेआम शिवराज सरकार की एक्साइज पॉलिसी की आलोचना करते नजर आईं। फिलहाल सरकार ने अहातों को बंद करने का फैसला लिया तो उमा इसे अपनी जीत मान रही हैं। लेकिन बीजेपी से जुड़े लोग कहते हैं कि उनका राजनीति में उठना फिलहाल असंभव है।
बीजेपी के नेता दबी जुबान में कहते हैं कि बेशक वो फायरब्रांड नेता रही हैं लेकिन फिलहाल राजनीति पूरी तरह से तब्दील हो गई है। जिस लोधी समाज को वो अपना बताती हैं उससे जुड़े प्रहलाद पटेल मोदी कैबिनेट में मंत्री हैं। जबकि यूपी के पूर्व सीएम कल्याण सिंह के बेटे राजबीर सिंह सांसद हैं। उनके लिए फिलहाल राजनीति में बहुत कम जगह बची है। वो शराब के मुद्दे पर खुद को विजेता मान रही हैं। लेकिन उनकी राह कांटों से भरी है।
हुबली मामले में वारंट जारी होने पर गई थी सीएम की कुर्सी
अयोध्या के राम मंदिर आंदोलन की उपज उमा भारती एक समय बीजेपी की टॉप नेताओं में शामिल थीं। 2003 में उमा भारती ने मध्य प्रदेश में तत्कालीन दिग्विजय सिंह की कांग्रेस सरकार के खिलाफ हुंकार भरी और फिर वो सत्ता के सीर्ष पायदान पर जा पहुंची। लेकिन उसके बाद के दौर में 1994 का हुबली मामला सामने आया। उमा के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी हुए तो उन्हें सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी। बीजेपी की फायरब्रांड नेता को हाईकमान का ये फैसला रास नहीं आया। यहां तक कि वो मीडिया के सामने ही बीजेपी दफ्तर में जाकर तब के सबसे हैवीवेट नेता लाल कृष्ण आडवाणी से जा भिड़ीं। उसके बाद वो बीजेपी से बाहर हो गईं। लेकिन फिर से वापसी हुई और वो केंद्रीय मंत्री भी बनीं।
आसान नहीं है मध्य प्रदेश की राजनीति में आना
उमा का राजनीतिक सफर कभी भी स्मूथ नहीं रहा। 2018 में उन्होंने केंद्रीय मंत्री का पद छोड़ा और गंगा अभियान के साथ राम मंदिर आंदोलन से जुड़ने की बात ही। आलाकमान ने उनकी बात को मान लिया। हालांकि उसके बाद के दौर में वो कई बार फिर से राजनीति में लौटने की इच्छा जता चुकी हैं पर केंद्रीय नेतृत्व मानता है कि उनमें अब पहले वाली बात नहीं है। उसके बाद से वो मध्य प्रदेश की राजनीति में अपने कदम जमाने के लिए तमाम हाथ पैर मार रही हैं। लिहाजा उनके लिए एक्टिव पॉलिटिक्स में आने का रास्ता दुश्वारी भरा होता जा रहा है।